Samadhi Bhakti in Sanskrit – समाधी भक्ति संस्कृत

Acharya shri Vidhyasagar ji maharaj

स्वात्माभिमुख-संवित्ति, लक्षणं श्रुत-चक्षुषा। पश्यन्पश्यामि देव त्वां केवलज्ञान-चक्षुषा॥ शास्त्राभ्यासो, जिनपति-नुति: सङ्गति सर्वदार्यै:। सद्वृत्तानां,गुणगण-कथा,दोषवादे च मौनम्॥ १॥ सर्वस्यापि प्रिय-हित-वचो भावना चात्मतत्त्वे। संपद्यन्तां, मम भव-भवे यावदेतेऽपवर्ग:॥ २॥ जैनमार्ग-रुचिरन्यमार्ग निर्वेगता, जिनगुण-स्तुतौ मति:। निष्कलंक विमलोक्ति भावना: संभवन्तु मम जन्मजन्मनि॥ ३॥ गुरुमूले यति-निचिते, – चैत्यसिद्धान्त वार्धिसद्घोषे। मम भवतु जन्मजन्मनि,सन्यसनसमन्वितं मरणम्॥ ४॥ जन्म जन्म कृतं पापं, जन्मकोटि समार्जितम्। जन्म मृत्यु जरा मूलं, हन्यते जिनवन्दनात्॥ ५॥ आबाल्याज्जिनदेवदेव! भवत:, श्रीपादयो: सेवया, सेवासक्त-विनेयकल्प-लतया,कालोऽद्यया-वद्गत:। … Read more

समाधि-भक्ति (तेरी छत्रच्छाया) – Samadhi Bhakti

Shree Brahmeshwar Parshwanath, chitoor, andra pradesh

तेरी छत्रच्छाया भगवन्! मेरे शिर पर हो। मेरा अन्तिम मरणसमाधि, तेरे दर पर हो॥ जिनवाणी रसपान करूँ मैं, जिनवर को ध्याऊँ। आर्यजनों की संगति पाऊँ, व्रत-संयम चाहू ॥ गुणीजनों के सद्गुण गाऊँ, जिनवर यह वर दो। मेरा अन्तिम मरणसमाधि, तेरे दर पर हो॥ १॥ तेरी.. ॥ परनिन्दा न मुँह से निकले, मधुर वचन बोलूँ। हृदय … Read more

समाधि भक्ति पाठ (तेरी छत्र छाया)

bhagwan shantinath

समाधि भक्ति तेरी छत्रच्छाया भगवन्! मेरे शिर पर हो। मेरा अन्तिम मरणसमाधि, तेरे दर पर हो॥ जिनवाणी रसपान करूँ मैं, जिनवर को ध्याऊँ। आर्यजनों की संगति पाऊँ, व्रत-संयम चाहू ॥ गुणीजनों के सद्गुण गाऊँ, जिनवर यह वर दो। मेरा अन्तिम मरणसमाधि, तेरे दर पर हो॥ १॥ तेरी.. ॥ परनिन्दा न मुँह से निकले, मधुर वचन … Read more