श्री मज्जिनसहस्रनाम स्तोत्र – Shri Majjinasahasranama Stotra

Dev Shastra Guru Pooja

जिनस्तोत्रम् (प्रस्तावना) स्वयंभूवे नमस्त्युभ्यमुत्पाद्यात्मान मात्मनि। स्वात्मनैव तथोद्भूत वृत्तयेऽचिन्त्यवृत्तये ॥१॥ अन्वयार्थ : हे भगवन् ! आपने स्वयम् अपने आत्मा को प्रकट किया है, अर्थात् आप अपने आप उत्पन्न हुए हैं, इसलिए आप स्वयंभू कहलाते हैं। आपको आत्मवृत्ति अर्थात् आत्मा में ही लीन अथवा तल्लीन रहने योग्य चारित्र तथा अचिन्त्य महात्म्य की प्राप्ति हुई है, इसलिये आपको … Read more

छह ढाला || Chah Dhala

Siddhapuja hirachand

कविवर दौलतराम जी कृत मंगलाचरण (सोरठा) तीन भुवन में सार, वीतराग विज्ञानता । शिवस्वरूप शिवकार, नमहुँ त्रियोग सम्हारिकैं॥ —–पहली ढाल—– जे त्रिभुवन में जीव अनन्त, सुख चाहैं दु:खतैं भयवन्त । तातैं दु:खहारी सुखकार, कहैं सीख गुरु करुणा धार॥(1) ताहि सुनो भवि मन थिर आन, जो चाहो अपनो कल्यान। मोह-महामद पियो अनादि, भूल आपको भरमत वादि॥(2) … Read more

तुम से लागी लगन || Tum se Lagi Lagan

siddha puja bhasha

(मणिक लाल पाटनी ‘पंकज’) तुम से लागी लगन, ले लो अपनी शरण, पारस प्यारा, मेटो मेटो जी संकट हमारा।॥टेक॥ निशदिन तुमको जपूँ, पर से नेह तजूँ, जीवन सारा, तेरे चरणों में बीत हमारा ॥1॥ अश्वसेन के राजदुलारे, वामा देवी के सुत प्राण प्यारे। सबसे नेह तोड़ा, जग से मुँह को मोड़ा, संयम धारा ॥ मेटो … Read more

तत्त्वार्थ सूत्र अर्थ – Tattvartha Sutra

Sanskrit Bhaktamar Stotra

संस्कृत तत्त्वार्थ सूत्र अर्थ हिंदी मोक्षमार्गस्य नेतारं भेत्तारं कर्मभूभृतां। ज्ञातारं विश्वतत्वानां बंदे तद्गुणलब्धये।। त्रैकाल्यं द्रव्यषट्कं नवपदसहितं जीवषट्कायलेश्या:। पंचान्ये चास्तिकाया व्रतसमितिगतिज्ञानचारित्रभेदाः।। इत्येतन्मोक्षमूलं त्रिभुवनमहितैः प्रोक्तमर्हद्भिरीशैः। प्रत्येति श्रद्दधाति स्पृशति च मतिमान् यः स वै शुद्धदृष्टिः।।१।। सिद्ध जयप्पसिद्धे, चउविहाराहणाफलं पत्ते। वंदित्ता अरहंते, वोच्छं आराहणा कमसो।।२।। उज्झोवणमुज्झवणंणिव्बाहणं साहणं च णिच्छरणं। दसणणाण चरित्तं तवाणमाराहणा भणिया।।३।। ।।अध्याय 1।। सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः।।१।। सम्यग्दर्शन, सम्यगान … Read more

MAHAVIRASHTAK STOTRA – महावीराष्टक स्तोत्र

Mahaveer Bhagwan pooja

यदीये चैतन्ये मुकुर इव भावाश्चिदचित:, समं भान्ति ध्रौव्य-व्यय-जनि-लसन्तोन्तरहिता:| जगत्साक्षी मार्ग-प्रकटनपरो भानुरिव यो, महावीर-स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे ||१|| अताम्रं यच्चक्षु: कमल-युगलं स्पन्द-रहितम्, जनान्कोपापायं प्रकटयति बाह्यान्तरमपि| स्फुटं मूर्तिर्यस्य प्रशमितमयी वातिविमला, महावीर-स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे ||२|| नमन्नाकेन्द्राली-मुकुट-मणि-भा-जाल-जटिलम्, लसत्पादाम्भोज-द्वयमिह यदीयं तनुभृताम्| भवज्ज्वाला-शान्त्यै प्रभवति जलं वा स्मृतमपि, महावीर-स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे||३|| यदर्चा-भावेन प्रमुदित-मना दर्दुर इह, क्षणादासीत्स्वर्गी गुण-गण-समृद्ध: सुख-निधि:| लभन्ते सद्भक्ता: … Read more