अर्ध्यावली पूजा – Arghyawali Puja
बीस तीर्थंकर जल फल आठों दर्व अरघ कर प्रीति धरी है, गणधर इन्द्रनिहू-तैं श्रुति पूरी न करी है। धानत सेवक जानके (हो) जगतें लेहु निकार, सीमन्धर जिन आदि दे बीस विदेह मँझार। (श्री जिनराज हो भव तारण तरण जहाज॥) ॐ ह्रीं श्रीसीमन्धरादिविद्यमानविंशतितीर्थङ्करेभ्यो अनर्घपदप्राप्तये अर्घं निर्वपामीति०। कृत्रिमाकृत्रिम जिनबिम्ब कृत्याकृत्रिमचारुचैत्यनिलयान् नित्यं त्रिलोकीगतान्, वन्दे भावन-व्यन्तरान् द्युतिवरान् कल्पामरावासगान्।। सद्-गन्धाक्षत-पुष्पदामचरुकैः … Read more