वसंततिलका छंद – तभजज गण दो गुरु
श्रेयांस नाथ जिन सिद्ध विशुद्ध स्वामी,
आओ मदीय उर में जिनराज नामी।
पूजूँ तुम्हें विनय से उर में बिठा के,
जाके वसूँ विभव मोक्ष निजात्म ध्याके ॥
ॐ ह्रीं तीर्थंकर श्रेयांसजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम् ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणम् ।
क्षीराब्धि सा सलिल प्रासुक शुद्ध लाये,
भृंगार में भर लिये, पद में चढ़ाये ।
श्रेयांसनाथ जिन सिद्ध सदा समर्चं,
निःश्रेय प्राप्ति करने जिन पाद चचूँ ॥
ओं ह्रीं श्री श्रेयांसनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ।
गोक्षीर सार वर चन्दन घर्ष लाये,
श्रद्धा समेत जिनराज पदों चढ़ाये ।
श्रेयांसनाथ जिन सिद्ध सदा समचूँ
निःश्रेय प्राप्ति करने जिन पाद चचूँ ॥
ओं ह्रीं श्री श्रेयांसनाथजिनेन्द्राय संसारतापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा।
मुक्ता समान सित अक्षत पुञ्ज लाये,
धारें जिनेन्द्र पद में विपदा पलाये ।
श्रेयांसनाथ जिन सिद्ध सदा समचूँ
निःश्रेय प्राप्ति करने जिन पाद चचूँ ॥
ओं ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।
हैं केतकी प्रमुख पुष्प सजीव माने,
तो पीत तन्दुल लिये प्रभु को चढ़ाने ।
श्रेयांसनाथ जिन सिद्ध सदा समचूँ,
निःश्रेय प्राप्ति करने जिन पाद चचूँ ॥
यांसनाथजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
नैवेद्य सार जिनदेव तुम्हें चढ़ाके,
है भावना जिन बनूँ उपवास पाके
श्रेयांसनाथ जिन सिद्ध सदा समचूँ,
निःश्रेय प्राप्ति करने जिन पाद चचूँ ॥
ओं ह्रीं श्री श्रेयांसनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
है स्नेह पूरित सुदीप तुम्हें चढ़ाऊँ,
कैवल्य ज्योति प्रकटे श्रुत ज्ञान पाऊँ ।
श्रेयांसनाथ जिन सिद्ध सदा समचूँ,
निःश्रेय प्राप्ति करने जिन पाद चचूँ ॥
ओं ह्रीं श्री श्रेयांसनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
अध्यात्म सौरभ बसे दिन रात स्वामी,
हो कर्म धूप तप आग सुवास नामी ।
श्रेयांसनाथ जिन सिद्ध सदा समचूँ,
निःश्रेय प्राप्ति करने जिन पाद चचूँ ॥
ओं ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीतिस्वाहा।
द्राक्षा सुपक्व फल श्रीफल को चढ़ाऊँ,
पाऊँ सुमोक्ष फल को शिव सौख्य पाऊँ ।
श्रेयांसनाथ जिन सिद्ध सदा समचूँ,
निःश्रेय प्राप्ति करने जिन पाद चचूँ ॥
ओं ह्रीं श्री श्रेयांसनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
नीरादि द्रव्य वसु ले कर में सुहाये,
पाने अनर्घ हमने प्रभु को चढ़ाये ।
श्रेयांसनाथ जिन सिद्ध सदा समचूँ,
निःश्रेय प्राप्ति करने जिन पाद चचूँ ॥
ओं ह्रीं श्री श्रेयांसनाथजिनेन्द्राय अनर्घपदप्राप्तये अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
पंचकल्याणक अर्घ
(सखी छन्द)
श्रेयांस गर्भ में आये, माता सुनन्द हर्षाये।
छठ ज्येष्ठ कृष्ण की साजी, सिंहपुर नृप विष्णु पिताजी॥
ओं ह्रीं ज्येष्ठकृष्णाष्टम्यां गर्भकल्याणमण्डित श्री श्रेयांसनाथजिनेन्द्राय अर्घं।
कार्तिक कृष्णा ग्यारस को जन्मे श्रेयांस स्वहित को।
नारक क्षण भर सुख पाते, त्रिभुवन जन हर्ष मनाते॥
ओं ह्रीं कार्तिककृष्णैकादश्यां जन्मकल्याणमण्डित श्री श्रेयांसनाथजिनेन्द्राय अर्धं।
कार्तिक कलि ग्यारस आयी, प्रभु ने तप लक्ष्मी पायी।
ऋतु शोभा नश्वर जानी, तब तप लेने की ठानी॥
ओं ह्रीं कार्तिककृष्णैकादश्यां तपः कल्याणमण्डित श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय अर्घं।
दो वर्ष किया तप भारी, तब घाति कर्म विधि जारी।
जब माघ अमावस कारी, कैवल्य ज्ञान उजियारी
ओं ह्रीं माघकृष्णामावस्यायां ज्ञानकल्याणमण्डितश्री श्रेयांसनाथजिनेन्द्राय अर्घं ।
श्रावण की पूनम आयी, तब शिव रमणी परिणायी।
सम्मेद शिखर शिव पाया, हम सबने शीश झुकाया॥
ओं ह्रीं श्रावणशुक्लापूर्णिमायां मोक्षकल्याणमण्डित श्री श्रेयांसनाथजिनेन्द्राय अर्धं ।
जयमाला (यशोगान)
चौपाई छन्द
छ्यासठ लख छब्बीस हजारा, वर्ष हीन इक सागर प्यारा।
सौ सागर पल्यार्द्ध गुजारा, शीतल बाद श्रेय अवतारा॥
लख चौरासी वर्षायुष थी, अन्तराल में यह शामिल थी।
ऋतु परिवर्तन लख वैरागी, तप धरने प्रभु आतम जागी॥
विमल प्रभाख्य पालकी आयी, प्रभु आरूढ़ हुये मुस्कायी।
भूचर नर सत पग ले जाते, खेचर नर सत डग ले जाते॥
फिर सुर देव पालकी लेते, दीक्षा वन तक सेवा देते।
केशलोंच की विधि अपनायी, चन्द्रकान्त मणि शिला सुहायी॥
बेला साथ नियम तप धारा, सिद्धारथ गृह किया अहारा।
एक सहस नृप दीक्षित होते, कर्म मलों को तप से धोते॥
तुम्बुर तरु तल केवल पाया, भव्यों को शिव पथ दर्शाया।
घात अघाति मोक्ष को पाते, अजर अमर अव्यय हो जाते॥
चारों गति से छूट गये हैं, सदा सदा को सुखी हुए हैं।
हमको शीघ्र बुला लो स्वामी, मुझ मृदु घट के अन्तर्यामी॥
ओं ह्रीं श्री श्रेयांसनाथजिनेन्द्राय अनर्घपदप्राप्तये पूर्णार्थं निर्वपामीति स्वाहा।
दोहा
श्रेयोजिन निर्वाण दिन, रक्षाबन्धन पर्व।
दोनों पर्व मना रहे हित करने हम सर्व॥
गैंड़ा पद में शोभता, श्रेयोजिन पहचान।
विद्यासागर सूरि से, मृदुमति पाती ज्ञान॥
॥ इति शुभम् भूयात् ॥
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Note
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Swarn Jain
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