Acharya Shri Vidhya Sagar Ji Maharaj

आचार्य विद्यासागर का प्रारंभिक जीवन

राष्ट्रसंत आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज का जन्म कर्नाटक के बेलगाँव जिले के गाँव चिक्कोड़ी में आश्विन शुक्ल पूर्णिमा (शरद पूर्णिमा), 10 अक्टूबर 1946 को हुआ था। पिता- श्री मल्लप्पाजी अष्टगे तथा माता- श्रीमती अष्टगे के आँगन में जन्मे विद्याधर (घर का नाम पीलू) को आचार्य श्रेष्ठ ज्ञानसागरजी महाराज का शिष्यत्व पाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।

राजस्थान की ऐतिहासिक नगरी अजमेर में आषाढ़ सुदी पंचमी विक्रम संवत्‌ २०२५ को लगभग २२ वर्ष की आयु में संयम धर्म के परिपालन हेतु उन्होंने पिच्छी कमंडल धारण करके मुनि दीक्षा धारण की थी। नसीराबाद (अजमेर) में गुरुवर ज्ञानसागरजी ने शिष्य विद्यासागर को अपने करकमलों से मृगसर कृष्णा द्वितीय संवत्‌ २०२९ को संस्कारित करके अपने आचार्य पद से विभूषित कर दिया और फिर आचार्यश्री विद्यासागरजी के निर्देशन में समाधिमरण हेतु सल्लेखना ग्रहण कर ली।

आचार्य विद्यासागर संस्कृत, प्राकृत सहित विभिन्न आधुनिक भाषाओं हिन्दी, मराठी और कन्नड़ में विशेषज्ञ स्तर का ज्ञान रखते हैं। उन्होंने हिन्दी और संस्कृत के विशाल मात्रा में रचनाएँ की हैं। विभिन्न शोधार्थियों ने उनके कार्य का मास्टर्स और डॉक्ट्रेट के लिए अध्ययन किया है

जन्म नामविद्याधर(Shri Vidya Sagar Ji)
जन्मआश्विन शुक्ल पूर्णिमा (शरद पूर्णिमा) वि.सं. 2003, 10-10-1946, गुरुवार, रात्रि 12.30चिक्कोड़ी (ग्राम- सदलगा के पास), बेलगांव (कर्नाटक)
निर्वाण18 फरवरी 2024
पिताश्री मल्लप्पाजी अष्टगे (मुनिश्री मल्लिसागरजी)
माताश्रीमती मंती अष्टगे(आर्यिकाश्री समयमतिजी)
भाई
  • (विद्याधर)आचार्य विद्यासागर
  • (अनंतनाथ) मुनि योगसागर
  • (शांतिनाथ) मुनि समयसागर
  • मुनि उत्कृष्ट सागर जी
बहनदो बहन
शिक्षा9वीं मैट्रिक (कन्नड़ भाषा में)
भाषाहिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी, मराठी और कन्नड़ आदि 8 भाषाओं के ज्ञाता हैं 
ब्रह्मचर्य व्रतश्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, चूलगिरि (खानियाजी), जयपुर
मुनि दीक्षा30-06-1968, रविवार, अजमेर (राजस्थान)
आचार्य पददिनांक 22-11-1972, बुधवार, नसीराबाद (राजस्थान)

विद्यासागर जी को ३० जून १९६८ में अजमेर में २२ वर्ष की आयु में आचार्य ज्ञानसागर ने दीक्षा दी जो आचार्य शांतिसागर के वंश के थे। आचार्य विद्यासागर को २२ नवम्बर १९७२ में ज्ञानसागर जी द्वारा आचार्य पद दिया गया था। उनके भाई सभी घर के लोग संन्यास ले चुके हैं। उनके भाई अनंतनाथ और शांतिनाथ ने आचार्य विद्यासागर से दीक्षा ग्रहण की और मुनि योगसागर और मुनि समयसागर कहलाये।उनके बङे भाई भी उनसे दीक्षा लेकर मुनि उत्कृष्ट सागर जी महाराज कहलाए

1972 में उन्हें आचार्य का दर्जा दिया गया। एक आचार्य पारंपरिक रूप से निषिद्ध (जैसे प्याज) के अलावा नमक, चीनी, फल, दूध नहीं खाता है। वह रात्रि 9:30 बजे -10: 00 बजे, (मतदाता रखना) से भोजन के लिए बाहर जाता है। वह अपने हाथ की हथेली में एक दिन में एक बार भोजन लेता है, एक समय में एक निवाला।  1999 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने आचार्य जी से उनके गोमुगिरी इंदौर की यात्रा के दौरान भेंट की।

आपका संस्कृत पर वर्चस्व है ही, शिक्षा कन्नड़ भाषा में होते हुए भी आपका हिन्दी पर असाधारण अधिकार है। हिन्दी में आपने दो प्रकार की रचनाएँ की हैं – पहली प्राचीन आचार्यों की रचनाओं का पद्यात्मक अनुवाद। योगसार, इष्टोपदेश, समाधितन्त्र, एकीभाव स्तोत्र, कल्याणमंदिर स्तोत्र, पात्रकेसरी स्तोत्र, आत्मानुशासन (गुणोदय), समणसुत्तं (जैन गीता), समयसार (कुन्दकुन्द का कुन्दन), समयसार कलश (निजामृतपान), रत्नकरण्ड श्रावकाचार (रयण-मंजूषा), स्वयंभू स्तोत्र (समन्तभद्र की भद्रता), द्रव्यसंग्रह, प्रवचनसार, नियमसार, पंचास्तिकाय, नन्दीश्वर भक्ति, गोमटेश थुदि (गोमटेश अष्टक) अष्टपाहुड, द्वादश-अनुप्रेक्षा, देवागम स्तोत्र आदि का पद्यमय विभिन्न छन्दों में कमनीय शैली में अनुवाद किया है।

उनके सारे महाकाव्यों में अनेक सूक्तियाँ भरी पड़ी हैं, जिनमें आधुनिक समस्याओं की व्याख्या तथा समाधान भी है, जीवन के सन्दर्भों में मर्मस्पर्शी वक्तव्य भी है। सामाजिक, राजनीतिक व धार्मिक क्षेत्रों में व्याप्त कुरीतियों का निदर्शन भी है। आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज वीतराग, निस्पृह, करुणापूरित, परीषहजयी समदृष्टि-साधु के आदर्श मार्ग के लिए परम-आदर्श हैं, उनके चरणों में कोटिशः नमन।

फ्रांसीसी राजनयिक अलेक्जेंड्रे ज़िगलर ने 2018 में अपने परिवार के साथ खजुराहो का दौरा किया और आचार्य विद्यासागर जी से मिलने के बाद “शांतिपूर्ण और धन्य” महसूस किया। उन्होंने शाकाहारी बनने की कसम खाई थी। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विद्यासागर जी महाराज को राज्य अतिथि सम्मान देने की घोषणा की है। इस संबंध में, यूपी सरकार ने एक प्रोटोकॉल भी जारी किया।

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