adinath bhagwan rishabhdev

भगवान ऋषभदेव जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर हैं। तीर्थंकर का अर्थ होता है जो तीर्थ की रचना करें। जो संसार सागर (जन्म मरण के चक्र) से मोक्ष तक के तीर्थ की रचना करें, वह तीर्थंकर कहलाते हैं। तीर्थंकर के पांच कल्याणक होते हैं। भगवान ऋषभनाथ जी को आदिनाथ भी कहा जाता है। भगवान ऋषभदेव वर्तमान हुडाअवसर्पिणी काल के प्रथम तीर्थंकर हैं। भगवान ऋषभदेव का जन्म एक इक्ष्वाकुवंशी क्षत्रिय परिवार में हुआ था। उन्हें ऋषभनाथ, ऋषभदेव, आदिब्रह्मा, पुरुदेव और वृषभदेव भी कहा जाता है।

भगवान आदिनाथ का जीवन परिचय

भगवान आदिनाथ का जन्म (Rishabhdev)

भगवान ऋषभनाथ का जन्म भारत के पावन शहर अयोध्या की भूमि पर हुआ था। वही अयोध्या भूमि जहाँ मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने माता कौशल्या के गर्भ से जन्म लिया था। आदिनाथ का जन्म चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को उत्तरषाढ़ा नक्षत्र में हुआ था। जैन धर्म के अनुसार यह तृतीय काल था। इनका जन्म इश्वाकु वंश में हुआ था।

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जैन धर्म की मान्यता के अनुसार किसी भी तीर्थंकर (Bhagwan Rishabh Dev) का जन्म उसकी माता को शुभ स्वप्न आने से होता है। इसी कारण आदिनाथ जी की माता को भी उनके जन्म से पहले 14 शुभ स्वप्न आये थे और उसके पश्चात ही उनका जन्म हुआ था।

आदिनाथ भगवान का इतिहास

इसमें हम आदिनाथ भगवान के शरीर, आयु, गणधर इत्यादि के बारे में जानेंगे।

  • आदिनाथ भगवान से पहले तीर्थंकर- इस युग के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ ही थे किंतु पिछले युग के अंतिम तीर्थंकर भगवान सम्प्रत्ति थे। भगवान सम्प्रत्ति उस युग के अंतिम (चौबीसवें) तीर्थंकर थे।
  • आदिनाथ भगवान के बाद के तीर्थंकर- भगवान आदिनाथ के बाद के तीर्थंकर भगवान अजीतनाथ बने थे जो जैन धर्म के दूसरे तीर्थंकर कहलाए।
  • भगवान आदिनाथ का चिन्ह- उनका चिन्ह वृषभ था जिसे बैल भी कहा जाता है।
  • अन्य नाम – आदिनाथ, ऋषभनाथ, वृषभनाथ
  • जन्म स्थान – अयोध्या
  • जन्म कल्याणक – चैत्र कृष्ण नवमी (तीर्थंकर दिवस)
  • केवल ज्ञान स्थान –सहेतुक वन अयोध्या
  • दीक्षा स्थान – चैत्र कृष्ण नवमी
  • पिता – नाभिराय
  • माता – मरुदेवी
  • पुत्र – भरत चक्रवर्ती, बाहुबली और वृषभसेन,अनन्तविजय,अनन्तवीर्य आदि 98 पुत्र
  • पुत्री – ब्राह्मी और सुंदरी
  • देहवर्ण- स्वर्ण रंग (नारंगी-पीला)
  • भगवान आदिनाथ का वर्ण- क्षत्रिय (इश्वाकू वंश)
  • लंबाई/ ऊंचाई- 500 तीर के बराबर/ 4920 फीट/ 1500 मीटर/ 1312 एल्स
  • आयु- 84 लाख वर्ष पूर्व
  • वृक्ष- वट वृक्ष
  • प्रथम गणधर – वृषभसेन
  • गणधरों की संख्या – चौरासी 84

जैन पुराणों के अनुसार अन्तिम कुलकर राजा नाभिराज और महारानी मरुदेवी के पुत्र भगवान ऋषभदेव का जन्म चैत्र कृष्ण नवमी को अयोध्या में हुआ। वह वर्तमान अवसर्पिणी काल के प्रथम तीर्थंकर थे। भगवान ऋषभदेव का विवाह नन्दा और सुनन्दा से हुआ। ऋषभदेव के 100 पुत्र और दो पुत्रियाँ थी। उनमें भरत चक्रवर्ती सबसे बड़े एवं प्रथम चक्रवर्ती सम्राट हुए जिनके नाम पर इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ा। दूसरे पुत्र बाहुबली भी एक महान राजा एवं कामदेव पद से बिभूषित थे।

इनके आलावा ऋषभदेव के वृषभसेन, अनन्तविजय, अनन्तवीर्य, अच्युत, वीर, वरवीर आदि 98 पुत्र तथा ब्राम्ही और सुन्दरी नामक दो पुत्रियां भी हुई, जिनको ऋषभदेव ने सर्वप्रथम युग के आरम्भ में क्रमश: लिपिविद्या (अक्षरविद्या) और अंकविद्या का ज्ञान दिया। बाहुबली और सुंदरी की माता का नाम सुनंदा था। भरत चक्रवर्ती, ब्रह्मी और अन्य 98 पुत्रों की माता का नाम यशावती था। ऋषभदेव भगवान की आयु 84 लाख पूर्व की थी जिसमें से 20 लाख पूर्व कुमार अवस्था में व्यतीत हुआ और 63 लाख पूर्व राजा की तरह|

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🙏 भगवान को केवलज्ञान की प्राप्ति

हजार वर्ष तपश्चरण करते हुए भगवान को पूर्वतालपुर के उद्यान में-प्रयाग में वटवृक्ष के नीचे ही फाल्गुन कृष्णा एकादशी के दिन केवलज्ञान प्रकट हो गया। इन्द्र की आज्ञा से कुबेर ने बारह योजन प्रमाण समवसरण की रचना की। समवसरण में बारह सभाओं में क्रम से 

  • 1.सप्तऋद्धि समन्वित गणधर देव और मुनिजन 
  • 2. कल्पवासी देवियाँ 
  • 3. आर्यिकायें और श्राविकायें 
  • 4. भवनवासी देवियाँ 
  • 5. व्यन्तर देवियाँ 
  • 6. ज्योतिष्क देवियाँ 
  • 7. भवनवासी देव 
  • 8. व्यन्तर देव 
  • 9. ज्योतिष्क देव 
  • 10. कल्पवासी देव 
  • 11. मनुष्य और 
  • 12. तिर्यंच बैठकर उपदेश सुनते थे।

पुरिमताल नगर के राजा श्री ऋषभदेव भगवान के पुत्र ऋषभसेन प्रथम गणधर हुए। ब्राह्मी भी आर्यिका दीक्षा लेकर आर्यिकाओं में प्रधान गणिनी हो गयीं। भगवान के समवसरण में 84 गणधर, 84000 मुनि, 350000 आर्यिकायें, 300000 श्रावक, 500000 श्राविकायंअसंख्यातों देव देवियाँ और संख्यातों तिर्यंच उपदेश सुनते थे।

🙏ऋषभदेव का निर्वाण

जब भगवान की आयु चौदह दिन शेष रही तब कैलाश पर्वत (अष्टापद) पर जाकर योगों का निरोध कर माघ कृष्ण चतुर्दशी के दिन सूर्योदय के समय भगवान पूर्व दिशा की ओर मुँह करके अनेक मुनियों के साथ सर्वकर्मों का नाशकर एक समय में सिद्धलोक में जाकर विराजमान हो गये। उसी क्षण इन्द्रों ने आकर भगवान का निर्वाण कल्याणक महोत्सव मनाया थाऐसे ऋषभदेव जिनेन्द्र सदैव हमारी रक्षा करें। भगवान के मोक्ष जाने के बाद तीन वर्षआठ माह और एक पक्ष व्यतीत हो जाने पर चतुर्थ काल प्रवेश करता है।

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भगवान ऋषभदेव जी की एक ८४ फुट की विशाल प्रतिमा भारत में मध्य प्रदेश राज्य के बड़वानी जिले में बावनगजा नामक स्थान पर है और मांगीतुंगी (महाराष्ट्र) में भी भगवान ऋषभदेव की 108 फुट की विशाल प्रतिमा है। उदयपुर जिले के एक प्रसिद्ध शहर का नाम भी “ऋषभदेव” है जो भगवान ऋषभदेव के नाम पर ऋषभदेव पड़ा। इस ऋषभदेव शहर में भगवान ऋषभदेव का एक विशाल जैन मंदिर तीर्थ क्षेत्र विद्यमान हैं । भगवान आदिनाथ ऋषभदेव की विशाल पद्मासन प्रतिमा मूलनायक के रूप में सिद्ध क्षेत्र कुंडलपुर जिला दमोह में एक विशाल नागौरी शैली में निर्मित लाल पाषाण के मंदिर में विराजमान है इस प्रतिमा को बड़े बाबा के नाम से जाना जाता है।

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