Samuchchay Puja

दोहा

बंदौ श्री भगवान् को, भाव भगति सिर नाय ।

पूजा श्री निर्वाण की, सिद्धक्षेत्र सुखदाय ।।१।।

द्वीप अढाई के विषै, सिद्धक्षेत्र को जान।

तिनको मैं वंदन करौं, भव भव होइ सहाय।।२।।

अथ स्थापना (अडिल्ल छन्द)

परम महा उत्कृष्ट मोक्ष मंगल सही,

आदि अनादि संसार भानि मुक्ति लही।

तिनिके चरन अरु क्षेत्र जजों शिवदायही।

आव्हानन विधि ठानि बार त्रय गायही ।।१।।

ॐ ह्रीं भरत क्षेत्रस्य आर्य खण्ड सम्बन्धी सिद्ध क्षेत्र अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननं । ॐ ह्रीं भरत क्षेत्रस्य आर्य खंड सम्बन्धी सिद्ध क्षेत्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापन्म ।

ॐ ह्रीं भरत क्षेत्रस्य आर्य खंड सम्बन्धी सिद्ध क्षेत्र अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणं ।

अथ अष्टक (ढाल पंचमेरु पूजा भाषा की चाल में)

शीतल उज्ज्वल निर्मलनीर, पूजौं सिद्धक्षेत्र गम्भीर।

लहों निर्वाण, पूजों मन वच तन धरि ध्यान।।

अब मै शरण गही तुम आन, भवदधिपार उतारन जान।। ल०

ॐ ह्रीं भरत क्षेत्रस्य आर्य खंड सम्बन्धी सिद्ध क्षेत्रेभ्यो जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ।।१।।

चंदन घिसौं कपूर मिलाय, भव आताप तुरति मिट जाय।

लहों  निर्वाण,  पूजों  मन  वच  तन  धरि  ध्यान।।

अब मै शरण गही तुम आन, भवदधि पार उतारन जान| ल०

ॐ ह्रीं भरत क्षेत्रस्य आर्य खंड सम्बन्धी सिद्ध क्षेत्रेभ्यो भवाताप-विनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ।।२।।

अमल अखंडित अक्षत धोय, पूजों सिद्ध क्षेत्र सुख होय।

लहों निर्वाण, पूजों मन वच तन धरि ध्यान।।

अब मैं शरण गही तुम आन, भवदधि पार उतारन जान ।। ल०

ॐ ह्रीं भरत क्षेत्रस्य आर्य खंड सम्बन्धी सिद्धक्षेत्रेभ्यो अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा ।।३।।

पुष्प सुगंध मधुप झंकार, पूजों सिद्ध क्षेत्र मंझार।

लहों निर्वाण, पूजों मन वच तन धरि ध्यान।।

अब मै शरण गही तुम आन, भवदधि पार उतारन जान।। ल०

ॐ ह्रीं भरत क्षेत्रस्य आर्य खंड सम्बन्धी सिद्धक्षेत्रेभ्यो कामबाण विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।।४।।

अब मैं वर नैवेद्य मिष्ट अधिकाय, पूजों सिद्ध क्षेत्र समभाय।

लहों निर्वाण, पूजों मन वच तन धरि ध्यान।।

शरण गही तुम आन, भवदधि पार उतारन जान।। ल०

ॐ ह्रीं भरत क्षेत्रस्य आर्य खंड सम्बन्धी सिद्धक्षेत्रेभ्यो क्षुधावेदनीय रोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।५।।

दीप रतनमय तेज सुहाय, पूजों सिद्ध क्षेत्र समझाय।

लहों निर्वाण, पूजों मन वच तन धरि ध्यान।।

मै शरण गही तुम आन, भवदधि पार उतारन जान।। ल०

ॐ ह्रीं भरत क्षेत्रस्य आर्य खंड सम्बन्धी सिद्धक्षेत्रेभ्यो मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।।६।।

धूप सुगंध लहै दश अंग, पूजों सिद्ध क्षेत्र सरवंग।

लहों निर्वाण, पूजों मन वच तन धरि ध्यान।।

अब मैं शरण गही तुम आन, भवदधि पार उतारन जान।। ल०

ॐ ह्रीं भरत क्षेत्रस्य आर्य खंड सम्बन्धी सिद्धक्षेत्रेभ्यो अष्टकर्म दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।।७।।

वच फल प्रासुक उत्तम अतिसार । सिद्ध क्षेत्र वाँछित दातार।

लहों  निर्वाण,  पूजों  मन  तन  धरि  ध्यान।।

अब मैं शरण गही तुम आन, भवदधि पार उतारन जान।। ल०

ॐ ह्रीं भरत क्षेत्रस्य आर्य खंड सम्बन्धी सिद्धक्षेत्रेभ्यो मोक्षफल प्राप्तायं फलं निर्वपामीति स्वाहा ।।८।।

अर्घ करों निज माफिक शक्ति, पूजों सिद्धक्षेत्र करि भक्ति।

लहों निर्वाण, पूजों मन तन धरि ध्यान।।

अब मैं शरण गही तुम आन, भवदधि पार उतारन जान|| ल०

ॐ ह्रीं भरत क्षेत्रस्य आर्य खंड सम्बन्धी सिद्धक्षेत्रेभ्यो अनर्घ पद प्राप्तये अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।।९।।

तीरथ सिद्ध क्षेत्र के सबै, बांछा मेरी पूरो अबै।

लहों निर्वाण, पूजों मन वच तन धरि ध्यान।।

अब मैं शरण गही तुम आन, भवदधि पार उतारन जान ।। ल०

ॐ ह्रीं भरत क्षेत्रस्य के आर्य खंड सम्बन्धी सिद्धक्षेत्रेभ्यो अ• महार्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।१०।।

अथ प्रत्येक निर्वाण क्षेत्र के अर्घ (अडिल्ल छन्द)

श्री आदिश्वरदेव भये निर्वाणजू।

श्री कैलाश शिखर के ऊपर मानजू।।

तिन के चरण जजों मैं मन वच काय के ।

भवदधि उतरों पार शरण तुम आय कै।।

ॐ ह्रीं कैलाश पर्वत सेती श्री ऋषभदेव तीर्थंकर दश हजार मुनि सहित मुक्ति पधारे और वहाँ तें और मुक्ति पधारे होहिं तिनको अर्घ महार्ष निर्वपामीति स्वाहा ।।१।।

चंपापुर तें मुक्ति भये जिनराजजी।

वासपूज्य महाराज करम क्षयकारजी।।

तिनि के चरण जजों मैं मन वच काय कै।

भवदधि उतरों पार शरण तुम आय के ।।

ॐ ह्रीं चंपापुर सेती श्री वासपूज्य तीर्थकर हजार मुनि सहित मुक्ति पधारे और वहाँ तें और मुनि मुक्ति पधारे होहिं तिनको को अ. महार्घ निर्वपामीति स्वाहा ।।२।।

श्री गिरनार शिखर जग में विख्यात जी।

सिद्ध वधू के नाथ भये नेमिनाथजी।।

तिनि के चरण जजों मैं मन वच काय कै।

भवदधि उतरों पार शरण तुम आय कै।।

ॐ ह्रीं गिरनार शिखर सेती श्री नेमिनाथ तीर्थंकर पांच सौ छत्तीस मुनि सहित मुक्ति पधारे अर बहत्तर कोड़ि सात सौ मुनि मुक्ति पधारे तिनको अर्ध महार्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।३।।

पावापुर सरवर के बीच महावीरजी।

सिद्ध भये हनि कर्म करें सुरसेवजी।।

तिनि के चरण जजों मैं मन वच काय कै।

भवदधि उतरों पार शरण तुम आय कै।।

ॐ ह्रीं पावापुर के पदम सरोवर मध्य सेती श्री महावीर तीर्थंकर छत्तीस मुनि सहित मुक्ति पधारे और वहाँ तें और मुनि मुक्ति पधारे होहिं तिनको अर्घं महार्घं निर्वपामीति स्वाहा।।४।।

श्री सम्मेद शिखर शिवपुर को द्वार जी।

बीस जिनेश्वर मुक्ति भये भवतारजी।।

तिनि के चरण जजों मैं मन वच काय कै।

भवदधि उतरों पार शरण तुम आय कै।।

ॐ ह्रीं सम्मेद शिखर सेती श्री बीस तीर्थंकर मुक्ति पधारे और उस शिखरतें और मुनि पधारे होहिं तिनको अर्घं महार्घ निर्वपामीति स्वाहा ।।५।।

नंगानंग कुमार दोयराजकुमार जू।

मुक्ति भये सोनागिर जग हितकार जू।।

साढ़े पांच कोडि भये शिवराजजी।

पूजों मन वच काय लहो सुखसारजी।।

ॐ ह्रीं सोनागिर पर्वत सेती नंगानंग कुमारादि साढ़े पांच कोड़ि मुनि मुक्ति पधारे तिनको अर्घं महार्घ निर्वपामीति स्वाहा ।।६।।

राम हनू, सुग्रीव नील महानील जी।

गवय गवाक्ष इत्यादि गये शिवतीरजी।।

कोडि निन्यानवें मुक्ति तुंगीगिर पाय कै।

तिनि के चरण जजों मैं मन वच काय कै।।

ॐ ह्रीं तुंगीगिरि पर्वत सेती श्रीरामचन्द्र हनुमान सुग्रीव नील महानील गवय गवाक्ष इत्यादि निन्यानवें कोड़ि मुनि मुक्ति पधारे होहि तिनको अर्घं महार्घं निर्वपामीति स्वाहा।।७।।

वरदत्तादि वरंग मुनीन्द्र सुनामजी।

सायरदत्त महान महा गुणधामजी।

तारवर नगरतें मुक्ति भये सुखदायजी।

तीन कोड़ि अरु लाख पचास सुगाय जी।।

ॐ ह्रीं तारवर-नगर सेती वरदत्तादि साढ़े तीन कोड़ि मुनि मुक्ति पधारे तिनको अर्घं महार्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।१८।।

श्री गिरनार शिखर जग में विख्यात है।

कोटि बहत्तर अधिकै अरु सौ सात हैं।।

संबु प्रद्युम्न अनिरुद्ध मुक्ति को पाय कै

तिनके चरण जजों मैं मन वच काय कै।।

ॐ ह्रीं श्री गिरिनार शिखर सेती संबुकुमार पद्युमनकुमार अनिरुद्धकुमारादि बहत्तर कोड़ि सात सौ मुनि मुक्ति पधारे तिनको अर्घं महार्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।९।।

रामचंद्र के सुत दोय जिन दीक्षा धरी।

लाड नरिंद आदि मुनि सब कर्मन हरी।।

पावागिरि के शिखर ध्यान धरिके सही

पांच कोडि मुनि सहित परम पदवी लही ।।

ॐ ह्रीं पावागिरि शिखर सेती लाडनरिद आदि पांच कोड़ि मुनि मुक्ति पधारे तिनको अर्घं महार्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।१०।।

पांडव तीन बड़े राजा तुम जानियो।

आठ कोडि मुनि चरम शरीरी मानियो।।

श्री शत्रुंजय शिखर मुक्ति वर पाय के।

तिनके चरण जजों मैं मन वच काय कै।।

ॐ ह्रीं शत्रुंजय शिखर सेती तीन पांडव को आदि आठ कोड़ि मुनि मुक्ति पधारे तिनको अर्घं महार्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।११।।

श्री गजपंथ शिखर पर्वत सुखधाम है।

मुक्ति गये बलभद्र सात अभिराम है।।

कोड़ि मुनि सहित नमों मन लाय के ।

तिनि के चरण जजों मैं मन वच काय कै।।

ॐ ह्रीं गजपंथ शिखर सेती सात बलभद्र को आदि दे आठ कोड़ि मुनि मुक्ति पधारे तिनको अर्घं महार्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।१२।।

रावण के सुत आदि पंच कोड़ि जानिये।

ऊपर लाख पचास परम सुख मानिये।।

रेवा नदी के तीर मुक्ति में जाय के।

तिनि के चरण जजों मैं मन वच काय कै।।

ॐ ह्रीं रेवा नदी के तीर सेती रावण के सुतों को आदि दे साढ़े पांच कोड़ि मुनि मुक्ति पधारे तिनको अर्घं महार्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।१३।।

द्वै चक्री दश काम कुमार महाबली।

रेवा नदी के पच्छिम कूट सिद्ध हैं भली।।

साढ़े तीन कोड़ि मुनि शिव को पाय के ।

तिनि के चरण जजों मैं मन वच काय कै।।

ॐ ह्रीं रेवा नदी के पश्चिम भाग तें सिद्ध कूट सेती द्वैचक्री दश कामदेव को आदि दे साढ़े तीन कोडि मुनि मुक्ति पधारे तिनको अर्घं महार्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।१४।।

दक्षिण दिशि में चूल उतंग शिखर जहाँ।

बड़नयरी बडनयर तहां शोभित महा ।।

इन्द्रजीत अरु कुंभकरण व्रत धारि के ।

मुक्ति गये वसु कर्म जीति सुख कारिके।।

ॐ ह्रीं दक्षिण दिशा में चूलगिरि उतंग शिखर सेती इन्द्रजीत कुंभकरण मुनि मुक्ति पधारे तिनको अर्घं महार्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।१५।।

अचला नदी के तीर व पावाशिखरजी।

स्वर्णभद्र मुनिचार बड़ी है ऋद्धिजी।।

तहाँ तें परम धाम के सुख को पाय के।

तिनके चरण जजों मैं मन वच काय कै।।

ॐ ह्रीं अचला नदी के तीर पावागिरि शिखर सेती स्वर्णभद्र चार मुनि मुक्ति पधारे तिनको अर्घं महार्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।१६।।

फल होड़ी बड़गांव अनूप जहाँ बसे।

पच्छिम दिसि में द्रोण महा पर्वत लसे ।।

गुरुदत्तादि मुनीश्वर शिव को पाय के।

तिनि के चरण जजों मैं मन वच काय कै ।।

ॐ ह्रीं फलहोड़ी बड़गांव की पच्छिम दिशा में द्रोणगिरि पर्वत सेती गुरुदत्तादि मुनि मुक्ति पधारे तिनको अर्घं महार्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।१७।।

व्याल महाव्याल मुनीश्वर दोय हैं।

नागकुमार मिलाय तीन ऋषि होय है।।

श्री अष्टापद शिखर तें मुक्ति में जाय के ।

तिनके चरण जजों मैं मन वच काय कै।।

ॐ ह्रीं श्री अष्टापद सेती व्याल महाव्याल नागकुमार तीन मुनि मुक्ति पधारे अर वहांत और जे जिन मुनि मुक्ति पधारे होहिं तिनको अर्ध महार्घ निर्वपामीति स्वाहा ।।१८।।

अचलापुर की दिशि ईशान महा बसे ।

तहाँ मेढ़गिरि शिखर महा पर्वत लसे ।।

तीन कोड़ि अरु लाख पचास महामुनी ।

मुक्ति गये धरि ध्यान करम अरि तिन हनी ।।

ॐ ह्रीं अचलापुर की ईशान दिशा मेढ़गिर पर्वत के शिखर सेती साढ़े तीन कोड़ि मुनि मुक्ति पधारे तिनको अर्घं महार्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।१९।।

वंश स्थल वन पश्चिम कुंथ पहार है।

कूलभूषण देशभूषण मुनि सुखकार है।।

तहां तें शुक्ल ध्यान धरि मुक्ति में जाय के।

तिनि के चरण जजों मैं मन वच काय कै।।

ॐ ह्रीं वंशस्थल वन की पच्छिमदिशा में कुंथलगिरि शिखर सेती कुलभूषण देशभूषण मुनि मोक्ष पधारे तिनको अर्घं महार्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।२०।।

जसहर राजा के सुत पंच सतक कहे।

देश कलिंग मझार महा मुनि ते भये।।

शुक्ल ध्यान तें मुक्ति रमनि सुख पाय के।

तिनिके चरण जजों मैं मन वच काय कै।।

ॐ ह्रीं कलिंग देश सेती जसहर राजा के पांच सौ पुत्र मुनि होय मुक्ति पधारे तिनको अर्ध महार्घ निर्वपामीति स्वाहा ।।२१।।

कोटि शिला एक दक्षिण दिशि में है सही।

निहचै सिद्ध क्षेत्र है श्री जिनवर कही ।।

कोटि मुनीश्वर मुक्ति गये सुख पाय के ।

तिनके चरण जजों मैं मन वच काय कै।।

ॐ ह्रीं दक्षिण दिशि में कोटि शिला सेती कोड़ि मुनि मुक्ति पधारे तिनको अर्ध महार्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।२२।।

समवशरण श्री पार्श्व जिनेश्वर देव को।

करें सुरासुर सेव परम पद लेव को।।

रेसिंदीगिर उत्तम थान सुपाय के।

वरदत्तादि पाँच मुनि मुक्ति सुजाय के।।

ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनाथ स्वामी के समवशरण पासि रेसिंदीगिर शिखर सेती वरदत्तादि पांच मुनि मुक्ति पधारे तिनको अर्घं महा निर्वपामीति स्वाहा ।।२३।।

पोदनपुर को राज त्याग मुनि जे भये।

बाहुबलि स्वामी तहाँ तें सिद्ध भये।।

तिन के चरण जजों मैं मन वच काय के।

भवदधि उतरों पार शरण तुम आय के ।।

ॐ ह्रीं पोदनपुर का राजत्याग बाहुबलि जी मुनि हो मुक्ति पधारे तिनि को अर्घं महार्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।२४।।

श्री तीर्थंकर चतुर बीस भगवान है।

गर्भ जन्म तप ज्ञान भये निरवान है।।

तिनि के चरण जजों मैं मन वच काय के।

भवदधि उतरों पार शरण तुम आय के ।।

ॐ ह्रीं पंचकल्याणकारी चौबीस तीर्थंकर भगवान तिनको अर्घ महार्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।२५।।

तीन लोक में तीर्थ जे सुखदाय है।

तिनि प्रति वंदों भाव सहित सिरनाय हैं।।

तिन की भक्ति करूं मैं मन वच काय के।

भवदधि उतरों पार शरण तुम आय के।।

ॐ ह्रीं तीन लोक में जे जे तीर्थ हैं तिनको अर्ध महार्घ निर्वपामीति स्वाहा।।२६।। पूर्णाघ ।

अथ जयमाला – पद्धड़ी छंद

श्री आदीश्वर वंदों महान, कैलाश शिखर तें मोक्ष जान ।

चंपापुरतें श्री वासुपूज्य, तिन मुक्ति लही अति हर्ष हूज्य ।

गिरिनार नेमजी मुक्ति पाय, पावापुर तें श्री वीर राय ।

सम्मेद शिखर श्री मुक्ति द्वार, श्री बीस जिनेश्वर मोक्ष धार ।

सोनागिर साढ़े पांच कोड़ि, तुंगीगिरि राम हनू सुजोड़ि ।

निन्यानवें कोड़ि मुक्ति मझार, तिनिके हम चरण नमें त्रिकाल ।

वरदत्तादि वरंग मुनेन्द्र चंद्र, तहां सायरदत्त महान विंद ।

तारवर-नयरतें मोक्ष पाय, तिनिके चरननि हम सिर नमाय ।

संबू प्रदुमन अनिरुद्ध भाय, गिरिनार शिखर तें मोक्ष पाय ।

बहत्तर कोड़ि सौ सात जान, तिनका मैं मन वच करूँ ध्यान ।

श्रीरामचंद्र के दोइ पूत, अरु पांच कोड़ि मुनि सहित हूत ।

लाडनरिंद इत्यादि जान, श्री पावागिर तें मोक्ष थान ।

श्री अष्ट कोड़ि मुनिराज जान, पांडव त्रय बड़ि राजा महान ।

श्री शत्रुंजयतें मुक्ति पाय, तिनि को मैं वंदों सिर नमाय ।

गजपंथ शिखर जग में विशाल, मुनि आठ कोड़ि हूजे दयाल |

बलभद्र सात मुक्तै सुजाय, तिनिको हम मन वच शीश नाय ।

रावण के सुत अरु पाँच कोड़ि, पचास लाख ऊपरि सु जोड़ि ।

रेवा तट तें तिन मुक्ति लीन, करि शुक्ल ध्यान तें कर्म क्षीन ।

द्वै चक्रवर्ति दश कामदेव, आहूत कोड़ि मुनिवर सुएव ।

रेवा के पच्छिम कूट जानि, तिन वरी मुक्ति वसुकर्म हानि ।

दक्षिण दिशमें गिरिचूल जानि, तहाँ इन्द्रजीत कुंभकरण मानि ।

ते मुक्ति गए वसु कर्म जीत, सो सिद्धक्षेत्र वंदौं विनीत ।

पावागिर शिखर मंझार जान, तहां स्वर्णभद्र मुनि चार मान ।

तिनि मुक्तिपुरी को गमन कीन, शिवमारग हमको सोधि दीन ।

फल होड़ी बड़गांव सु अनूप, पश्चिम दिसि द्रोणागिरि रूप ।

गुरुदत्तादिक शिव पद लहाय, तिनि को हम वंदें सीस नाय ।

व्याल महाव्याल मुनीश दोइ, श्री नागकुमार मिलि तीन होइ ।

श्री अष्टापद तें मुक्ति होइ, तिनि आठ कर्म मल को सुधोइ ।

अचलापुर की दिसि में ईशान, तहाँ मेढगिरि नाम प्रधान ।

मुनि तीन कोड़ि ऊपरि सुजोई, पंचास लाख मिलि मुक्ति होइ ।

वंशस्थलवन कुंथु पहार, कुलभूषण देशभूषण कुमार ।

भारी उपसर्ग कर वितीत, तिनि मुक्ति लई अरि कर्म जीत ।

जसहर के सुत सत पंच सार, कलिंग देश तें मुक्ति धार ।

मुनि कोटि शिला तें मुक्ति लीन, तिनको वंदन मन वचन कीन ।

वरदत्तादिक पाँचों मुनीश, तिनि मुक्ति लई नित नमूं शीश ।

श्री बाहुबलि बल अधिक जान, वसु कर्म नाशि के मोक्षथान ।

जहाँ पंचकल्याण जिनेन्द्रदेव, तिनिकी हम निति मांगें सुसेव ।

यह अरज गरीबन की दयाल, निर्वाण देऊ हमको सु हाल ।

ॐ ह्रीं भरत क्षेत्रस्य आर्य खण्ड सम्बन्धी सिद्ध क्षेत्रेभ्यः पूर्णार्घ निर्वपामीति स्वाहा ।

अडिल्ल– यह गुण माल महान सु भविजन गाइयो।

स्वर्ग मुक्ति सुखदाय कंठ में लाइयो।।

यातें सब सुख होय सुजस को पाय के।

भवदधि उतरों पार शरण प्रभु आय के।।

इत्याशीर्वाद

दोहा – नर भव उत्तम पाय के, अवसर मिलियो मोहि।

चोखा ध्यान लगाय के, सरन गही प्रभु तोहि ।।१।।

बालक सम हम बुद्धि है, भक्ति थकी गुणगाय।

भूल चूक तुम सोधियो, सुनियो सज्जन भाय ।।२।।

‘औगुन तुम मति ं लीजियो, गुण गह लीजो मीत।

पूजा निज प्रति कीजियो, कर जीवन सों प्रीति ।।३।।

संवत अष्टादश शतक, सत्तरि एक महान ।

भादों कृष्ण जु सप्तमी, पूरण भयो सुजान ।।४।।

इति श्री निर्वाण क्षेत्र पूजा सम्पूर्णम् ।।

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Note

Jinvani.in मे दिए गए सभी श्री निर्वाण लड्डू पूजा स्तोत्र, पुजाये और आरती जिनवाणी संग्रह के द्वारा लिखी गई है, यदि आप किसी प्रकार की त्रुटि या सुझाव देना चाहते है तो हमे Comment कर बता सकते है या फिर Swarn1508@gmail.com पर eMail के जरिए भी बता सकते है।

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