(कविवर ज्ञानतराय जी)
परमपूज्य चौबीस, जिहँ जिहँ थानक शिव गये|
सिद्धभूमि निशदीस, मन-वच-काय पूजा करों|
ॐ ह्रीं श्रीचतुर्विंशति तीर्थंकर निर्वाणक्षेत्रा:! अत्र अवतर अवतर संवौषट आह्वाह्न्म |
ॐ ह्रीं श्रीचतुर्विंशति तीर्थंकर निर्वाणक्षेत्रा:! अत्र तिष्ठ: ठ: ठ: स्थापनम|
ॐ ह्रीं श्रीचतुर्विंशति तीर्थंकर निर्वाणक्षेत्रा:! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट सन्निधिकरणम|
शुचि छीर दधि सम नीर निर्मल, कनकझारी में भरों |
संसार पार उतार स्वामी, जोरकर विनती करों ||
सम्मेदगढ़ गिरनार चम्पा, पावापुर कैलाश कौं |
पूजौं सदा चौबीस जिन, निर्वाण भूमि निवास कौं ||
ॐ ह्रीं श्रीचतुर्विंशति तीर्थंकर निर्वाणक्षेत्रेभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा|
केशर कपूर सुगंध चन्दन, सलिल शीतल विस्तरों |
भवताप कौं संताप मेटो, जोरकर विनती करों ||
सम्मेदगढ़ गिरनार चम्पा, पावापुर कैलाश कौं |
पूजौं सदा चौबीस जिन, निर्वाण भूमि निवास कौं ||
ॐ ह्रीं श्रीचतुर्विंशति तीर्थंकर निर्वाणक्षेत्रेभ्यो भवातापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा |
मोतीसमान अखंड तंदुल, अमल आनन्द धरि तरों |
औगुन हरौ करौ हमको, जोरकर विनती करों ||
सम्मेदगढ़ गिरनार चम्पा, पावापुर कैलाश कौं |
पूजौं सदा चौबीस जिन, निर्वाण भूमि निवास कौं ||
ॐ ह्रीं श्रीचतुर्विंशति तीर्थंकर निर्वाणक्षेत्रेभ्यो अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान निर्वपामीति स्वाहा।
शुभफूल रास सुवास वासित, खेद सब मन की हरों |
दुख धाम काम विनाश मेरौ, जोरकर विनती करों ||
सम्मेदगढ़ गिरनार चम्पा, पावापुर कैलाश कौं |
पूजौं सदा चौबीस जिन, निर्वाण भूमि निवास कौं ||
ॐ ह्रीं श्रीचतुर्विंशति तीर्थंकर निर्वाणक्षेत्रेभ्यो कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
नेवज अनेक प्रकार जोग, मनोग धरि भय परिहरों |
यह भूख दूखन टार प्रभुजी, जोरकर विनती करों ||
सम्मेदगढ़ गिरनार चम्पा, पावापुर कैलाश कौं |
पूजौं सदा चौबीस जिन, निर्वाण भूमि निवास कौं ||
ॐ ह्रीं श्रीचतुर्विंशति तीर्थंकर निर्वाणक्षेत्रेभ्यो क्षुधारोगविनाशनाय नेवैद्यम निर्वपामीति स्वाहा ।
दीपक प्रकाश उजास उज्ज्वल, तिमिरसेती नहिं डरों |
संशय विमोह बिभरम तमहर, जोरकर विनती करों ||
सम्मेदगढ़ गिरनार चम्पा, पावापुर कैलाश कौं |
पूजौं सदा चौबीस जिन, निर्वाण भूमि निवास कौं ||
ॐ ह्रीं श्रीचतुर्विंशति तीर्थंकर निर्वाणक्षेत्रेभ्यो मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।
शुभ धुप परम अनूप पावन, भाव पावन आचरों |
सब करम पुंज जलाय दीज्यो, जोरकर विनती करों ||
सम्मेदगढ़ गिरनार चम्पा, पावापुर कैलाश कौं |
पूजौं सदा चौबीस जिन, निर्वाण भूमि निवास कौं ||
ॐ ह्रीं श्रीचतुर्विंशति तीर्थंकर निर्वाणक्षेत्रेभ्यो अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।
बहु फल मंगाय चढाय उत्तम, चार गतिसों निरवरों |
निहचै मुकति फल देहू मोकों, जोरकर विनती करों ||
सम्मेदगढ़ गिरनार चम्पा, पावापुर कैलाश कौं |
पूजौं सदा चौबीस जिन, निर्वाण भूमि निवास कौं ||
ॐ ह्रीं श्रीचतुर्विंशति तीर्थंकर निर्वाणक्षेत्रेभ्यो मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा ।
जल गंध अक्षत फूल चरू, फल दीप धूपायन धरों |
द्यानत करो निर्भय जगतसों, जोरकर विनती करों ||
सम्मेदगढ़ गिरनार चम्पा, पावापुर कैलाश कौं |
पूजौं सदा चौबीस जिन, निर्वाण भूमि निवास कौं ||
ॐ ह्रीं श्रीचतुर्विंशति तीर्थंकर निर्वाणक्षेत्रेभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
जयमाला
(सोरठा)
श्री चौबीस जिनेश, गिरि कैलाश नमों |
तीरथ महाप्रदेश, महापुरुष निरवाणतैं ||
नमों ऋषभ कैलाशपहारं, नेमिनाथ गिरनार निहारं |
वासुपूज्य चम्पापुर वन्दौं, सन्मति पावापुर अभिनन्दों ||
वन्दौं अजित अजितपद दाता, वन्दौं सम्भव भवदुख घाता |
वन्दौं अभिनन्दन गण नायक, वन्दौं सुमति सुमति के दायक ||
वन्दौं पद्म मुकति पद्माकर, वन्दौं सुपास आश पासाहर |
वन्दौं चन्द्रप्रभ प्रभुचंदा, वन्दौं सुविधि सुविधि निधिकंदा ||
वन्दौं शीतल अघ तप शीतल, वन्दौं श्रेयांस महीतल |
वन्दौं विमल विमल उपयोगी, वन्दौं अनंत अनंत सुखभोगी ||
वन्दौं धर्म धर्म विस्तारा, वन्दौं शांति शांति मनधारा |
वन्दौं कुन्थु कुन्थु रखवालं, वन्दौं अर अरि हर गुणमालं ||
वन्दौं मल्लि काम मल चूरन, वन्दौं मुनिसुव्रत व्रत पूरन |
वन्दौं नमिजिन नमति सुरासुर, वन्दौं पार्श्व पार्श्व भ्रम जगहर ||
बीसों सिद्ध भूमि आ ऊपर, शिखर सम्मेद महागिरी भूपर |
एकबार वन्दे जो कोई, ताहि नरक पशु गति नहिं होई ||
नरपति नृपसुर शक्र कहावै, तिहुं जगभोगि भोग शिव पावै |
विघन विनाशन मंगलकारी, गुण विलास वन्दौं भवतारी ||
(घत्ता)
जो तीरथ जावैं पाप मिटावें, ध्यावें गावैं भगति करें |
ताको जस कहिये सम्पति लहिये, गिरि के गुण को भक्त उचरें ||
ॐ ह्रीं श्रीचतुर्विंशति तीर्थंकर निर्वाणक्षेत्रेभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
पुष्पांजलि क्षिपेत
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