Samuchchay Puja

श्री पंचपरमेष्ठी वंदन

अरिहन्तो-भगवन्त इन्द्रमहिता: सिद्धाश्च सिद्धीश्वरा:,
आचार्या: जिनशासनोन्नतिकरा: पूज्या उपाध्यायका:|
श्रीसिद्धान्त-सुपाठका: मुनिवरा: रत्नत्रयाराधका:,
पंचैते परमेष्ठिन: प्रतिदिनं कुर्वन्तु ते मंगलम्||

श्रीमन्नम्र – सुरासुरेन्द्र – मुकुट – प्रद्योत – रत्नप्रभा
भास्वत्पाद – नखेन्दव: प्रवचनाम्भोधीन्दव: स्थायिन:|
ये सर्वे जिन-सिद्ध-सूर्यनुगतास्ते पाठका: साधव:,
स्तुत्या योगीजनैश्च पंचगुरव: कुर्वन्तु ते मंगलम् ||१||
अर्थ- शोभायुक्त और नमस्कार करते हुए देवेन्द्रों और असुरेन्द्रों के मुकुटों के चमकदार रत्नों की कान्ति से जिनके श्री चरणों के नखरूपी चन्द्रमा की ज्योति स्फुरायमान हो रही है। और जो प्रव- चन रूप सागर की वृद्धि करने के लिए स्थायी चन्द्रमा हैं एवं योगिजन जिनकी स्तुति करते रहते हैं, ऐसे अरिहन्त सिद्ध आचार्य उपाध्याय और साधु ये पाँचों परमेष्ठी तुम्हारे पापों को क्षालित करें तुम्हें सुखी करें ।। १ ।।

सम्यग्दर्शन – बोध – वृत्तममलं रत्नत्रयं पावनं,
मुक्तिश्री – नगराधिनाथ – जिनपत्युक्तोऽपवर्गप्रद:|
धर्म-सूक्तिसुधा च चैत्यमखिलं चैत्यालयं श्रयालयं,
प्रोक्तं च त्रिविधं चतुर्विधममी कुर्वन्तु ते मंगलम् ||२||

नाभेयादि जिनाधिपास्त्रिभुवन ख्याताश्चतुर्विंशति:,
श्रीमन्तो भरतेश्वर – प्रभृतयो ये चक्रिणो द्वादश |
ये विष्णु – प्रतिविष्णु – लांगलधरा: सप्तोत्तरा विंशति:,
त्रैकाल्ये प्रथितास्त्रिषष्टिपुरुषा: कुर्वन्तु ते मंगलम् ||३||
अर्थ- तीनों लोकों में विख्यात और बाह्य तथा आभ्यन्तर लक्ष्मी सम्पन्न ऋषभनाथ भगवान आदि चौबीस तीर्थंकर, श्रीमान् भरतेश्वर आदि १२ चक्रवर्ती, नव नारायण नव प्रतिनारायण और नव बलभद्र ये ६३ शलाका महापुरुष तुम्हारे पापों का क्षय करें और तुम्हें सुखी करें ।। ३ ।।

ये सर्वोपधिऋद्धयः सुतपसां वृद्धिंगताः पञ्च ये,
ये चाष्टांगमहानिमित्त – कुशलाश्चाष्टौ वियच्चारिणः ।
पञ्चज्ञानधरास्त्रयोऽपि बलिनो ये बुद्धिऋद्धीश्वराः,
सप्तैते सकलार्चिता मुनिवराः कुर्वन्तु ते मङ्गलम् ।।४।।
अर्थ- सभी औषधि ऋद्धिधारी, उत्तम तप ऋद्धिधारी, अवधृत क्षेत्र से भी दूरवर्ती विषय के आस्वादन दर्शन स्पर्शन घ्राण और श्रवण की समर्थता की ऋद्धि के धारी, अष्टाङ्ग महानिमित्त विज्ञता की ऋद्धि के धारी, आठ प्रकार की चारण ऋद्धि के धारी, पांच प्रकार के ज्ञान की ऋद्धि के धारी, तीन प्रकार के बलों की ऋद्धि के धारी और बुद्धि-ऋद्धीश्वर, ये सातों जगत्पूज्य गणनायक तुम्हारे पापों को क्षालित करें और तुम्हें सुखी बनावें बुद्धि, क्रिया, विक्रिया, तप, बल, औषध, रस और क्षेत्र के भेद से ऋद्धियों के आठ भेद हैं ।।४।।

ज्योतिर्व्यतरभावनामरगृहे मेरौ कुलाद्रौ स्थिताः,
जम्बूशाल्मलि चैत्यशाखिषु तथा वक्षार – रूप्याद्रिषु ।
इष्वाकारगिरौ च कुण्डलनगे द्वीपे च नन्दीश्वरे,
शैले ये मनुजोत्तरे जिनगृहाः कुर्वन्तु ते मङ्गलम् ।।५।।
अर्थ- ज्योतिषी, व्यंतर, भवनवासी और वैमानिकों के आवासों के, मेरुओं, कुलाचलों, जम्बू वृक्षों और शाल्मलिवृक्षों, वक्षारों, विजयार्ध पर्वतों इष्वाकार पर्वतों, कुण्डल पर्वत, नन्दीश्वर द्वीप, और मानुषोत्तर पर्वत (तथा रुचिक वर पर्वत) के सभी अकृत्रिम जिन चैत्यालय तुम्हारे पापों का क्षय करें और तुम्हें सुखी बनावें ।।५।।

कैलासे वृषभस्य निर्वृति मही वीरस्य पावापुरी,
चम्पायां वसुपूज्य-सज्जिनपतेः सम्मेदशैलेऽर्हताम्
शेषाणामपि चोर्जयन्तशिखरेनेमीश्वरस्यार्हतो,
निर्वाणावनयः प्रसिद्धविभवाः कुर्वन्तु ते मङ्गलम् ।।६।।
अर्थ- भगवान ऋषभदेव की निर्वाणभूमि-कैलाश पर्वत पर है। महावीर स्वामी की पावापुर में है। वासुपूज्य स्वामी की चम्पापुरी में है। नेमिनाथ स्वामी की ऊर्जयन्त पर्वत के शिखर पर और शेप बीस तीर्थकरों की निर्वाणभूमि श्री सम्मेदशिखर पर्वत पर हैं. जिनका अतिशय और वैभव विख्यात है। ऐसी ये सभी निर्वाण भूमियाँ तुम्हें निष्पाप बनादें और तुम्हें सुखी करें ।।६।।

यो गर्भावतरोत्सवो भगवतां जन्माभिषेकोत्सवो,
यो जातः परिनिष्क्रमेण विभवो यः केवलज्ञानभाक् ।
यः कैवल्यपुर – प्रवेशमहिमा सम्पादितः स्वर्गिभिः
कल्याणानि च तानि पञ्च सततं कुर्वन्तु ते मङ्गलम् ।।७।।
अर्थ- तीर्थंकरों के गर्भकल्याणक, जन्माभिषेक कल्याणक, दीक्षा कल्याणक, केवलज्ञान कल्याणक और कैवल्यपुर प्रवेश (निर्वाण) कल्याणक के देवों द्वारा सम्भावित महोत्सव तुम्हें सर्वथा माङ्गलिक रहें ।।७।।

सर्पोहार-लता भवति असिलता, सत्पुष्पदामायते,
सम्पद्येत रसायनं विषमपि प्रीतिं विधत्ते रिपु:|
देवा: यान्ति वशं प्रसन्नमनस: किं वा बहु ब्रूमहे,
धर्मादेव नभोऽपि वर्षति नगै: कुर्वन्तु ते मंगलम् ||८||
अर्थ- धर्म के प्रभाव से सर्प माला बन जाता है, तलवार फूलों समान कोमल बन जाती है, विष अमृत बन जाता है, शत्रु प्रेम करने वाला मित्र बन जाता है और देवता प्रसन्न मन से धर्मात्मा के वश में हो जाते हैं। अधिक क्या कहें धर्म से ही आकाश से रत्नों की वर्षा होने लगती है वही धर्म तुम सबका कल्याण करे ।।८।।

इत्थं श्रीजिनमङ्गलाष्टकमिदं सौभाग्यसंपत्करम्
कल्याणेषु महोत्सवेषु सुधियस्तीर्थंकराणांमुपः ।
ये शृण्वन्ति पठन्ति तैश्च सुजनै – र्धर्मार्थकामान्विता,
लक्ष्मीराश्रयते व्यपायरहिता निर्वाणलक्ष्मीरपि ।।९।।
अर्थ- सौभाग्यसम्पत्ति को प्रदान करने वाले इस श्री जिनेन्द्र- मङ्गलाष्टक को जो सुधी तीर्थंकरों के पंचकल्याणक के महोत्सवों के अवसर पर तथा प्रभातकाल में भावपूर्वक सुनते और पढ़ते हैं, वे सज्जन धर्म, अर्थ और काम से समन्वित लक्ष्मी के आश्रय बनते हैं और पश्चात् अविनश्वर मुक्तिलक्ष्मी को भी प्राप्त करते हैं ।।९।।

*****

Note

Jinvani.in मे दिए गए सभी स्तोत्र, पुजाये और आरती Shri Mangalashtak Stotram Lyrics in Hindi जिनवाणी संग्रह के द्वारा लिखी गई है, यदि आप किसी प्रकार की त्रुटि या सुझाव देना चाहते है तो हमे Comment कर बता सकते है या फिर Swarn1508@gmail.com पर eMail के जरिए भी बता सकते है। 

1 COMMENT

  1. JAI JINENDRA. Manglashtak Stotra is a frontline stotra among the stotras which are widely recited daily by Jains.It is recited on every auspicious occasion. It is therefore desirable to learn its meaning. Producing it here Sanskrit text with Hindi translation serves the purpose. Thanks.
    Another composition MANGLASHTAK STOTRA (Hindi Padyaanuvaad) is given on YouTube channel as STOTRAAMRAT KALASH@prakashsoorajputra289 recited by Mrs Smrati Jain may be viewed/listened and applauded,

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here