तीर्थंकर भगवान श्रेयांसनाथ का जीवन परिचय
Bhagwan Shrayanshnath श्रेयांसनाथ, जैन धर्म में वर्तमान अवसर्पिणी काल के ११वें तीर्थंकर थे। श्रेयांसनाथ जी के पिता का नाम विष्णु और माता का वेणुदेवी था। उनका जन्मस्थान सिंहपुर(वाराणसी) और निर्वाणस्थान संमेदशिखर माना जाता है। इनका चिन्ह गैंडा है। श्रेयांसनाथ के काल में जैन धर्म के अनुसार अचल नाम के प्रथम बलदेव, त्रिपृष्ठ नाम के प्रथम वासुदेव और अश्वग्रीव नाम के प्रथम प्रतिवासुदेव का जन्म हुआ। ग्यारह अंगों का अध्ययन किया और तीर्थंकर प्रकृति का बंध करके समाधिमरणपूर्वक अच्युत स्वर्ग के पुष्पोत्तर विमान में अच्युत नाम का इन्द्र हुआ।
केवल ज्ञान की प्राप्ति
छद्मस्थ अवस्था के दो वर्ष बीत जाने पर मनोहर नामक उद्यान में तुंबुरू वृक्ष के नीचे माघ कृष्णा अमावस्या के दिन सायंकाल के समय भगवान को केवलज्ञान प्रगट हो गया।
भगवान श्रेयांसनाथ का इतिहास
- भगवान का चिन्ह – उनका चिन्ह गैंडा है।
- जन्म स्थान – सिहपुरी (जिला-वाराणसी)
- जन्म कल्याणक – फाल्गुन कृ. ११
- केवल ज्ञान स्थान – मनोहर उद्यान
- दीक्षा स्थान – मनोहर उद्यान
- पिता – महाराजा विष्णुमित्र
- माता – महारानी नन्दा
- देहवर्ण –तप्त स्वर्ण सदृश
- मोक्ष – श्रावण शु. १५, सम्मेद शिखर पर्वत
- भगवान का वर्ण – क्षत्रिय (इश्वाकू वंश)
- लंबाई/ ऊंचाई- ८० धनुष (२४० मीटर)
- आयु – ८४,००,००० वर्ष
- वृक्ष –तुुंबुरू वृक्ष
- यक्ष – कुमार देव
- यक्षिणी – गौरी देवी
- प्रथम गणधर – श्री कुन्थु
- गणधरों की संख्या – 77
🙏 श्रेयांसनाथ का निर्वाण
धर्म का उपदेश देते हुए सम्मेदशिखर पर पहुँचकर एक माह तक योग का निरोध करके श्रावण शुक्ला पूर्णिमा के दिन भगवान श्रेयांसनाथ नि:श्रेयसपद को प्राप्त हो गये।
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Note
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