श्री कलिकुंड पार्श्वनाथ जिन पूजा – Shri Parshwnath Pooja
(अडिल्ल छन्द) ह्रूं कार अक्षरात्मक देव जो ध्यावते | देव मनुष्य पशु कृत सो व्याधि नशावते || कांसी तांबे पत्र […]
(अडिल्ल छन्द) ह्रूं कार अक्षरात्मक देव जो ध्यावते | देव मनुष्य पशु कृत सो व्याधि नशावते || कांसी तांबे पत्र […]
कविश्री ‘पुष्पेंदु’ हे पार्श्वनाथ! हे अश्वसेन-सुता! करुणासागर तीर्थंकर हे सिद्धशिला के नेता! हे ज्ञान-संपन्न तीर्थंकर || हम भावुकता से भर
कविश्री वृन्दावनदास (मत्त-गयंद छन्द) श्रीमत वीर हरें भव-पीर, भरें सुख-सीर अनाकुलताई | केहरि-अंक अरीकर-दंक, नयें हरि-पंकति-मौलि सुहाई || मैं तुमको
कवि श्री बख्तावरसिंह (गीता छन्द) वर स्वर्ग प्राणत सों विहाय सुमात वामा-सुत भये| अश्वसेन के पारस जिनेश्वर चरन जिनके सुर
जैतिजै जैतिजै जैतिजै नेमकी, धर्म औतार दातार श्यौचैनकी| श्री शिवानंद भौफंद निकन्द, ध्यावें जिन्हें इन्द्र नागेन्द्र ओ मैनकी|| परमकल्यान के
श्री नमिनाथ जिनेन्द्र नमौं विजयारथ नन्दन| विख्यादेवी मातु सहज सब पाप निकन्दन|| अपराजित तजि जये मिथिलापुर वर आनन्दन| तिन्हें सु
प्रानत-स्वर्ग विहाय लियो जिन, जन्म सु राजगृही-महँ आई। श्रीसुहमित्त पिता जिनके, गुनवान महा पदमा जसु माई।। बीस-धनू तन श्याम छवी,
अपराजित तें आय नाथ मिथलापुर जाये| कुंभराय के नन्द, प्रभावति मात बताये|| कनक वरन तन तुंग, धनुष पच्चीस विराजे| सो
तप तुरंग असवार धार, तारन विवेक कर| ध्यान शुकल असिधार शुद्ध सुविचार सुबखतर|| भावन सेना, धर्म दशों सेनापति थापे| रतन