Siddhapuja hirachand

कविश्री बख्तावरसिंह
(अडिल्ल छंद)
सर्वारथ सुविमान त्याग गजपुर में आये|
विश्वसेन भूपाल तासु के नंद कहाये||
पंचम-चक्री भये मदन-द्वादशवें राजे|
मैं सेवूँ तुम चरण तिष्ठये ज्यों दु:ख भाजे||
ॐ ह्रीं श्री शांतिनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर! अवतर! संवौषट्! (इति आह्वाननम्)
ॐ ह्रीं श्री शांतिनाथजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ! तिष्ठ! ठ:! ठ:! (इति स्थापनम्)
ॐ ह्रीं श्री शांतिनाथ जिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्! (इति सन्निधिकरणम्)

(अष्टक)
पंचम-उदधि तनो जल निरमल, कंचन-कलश भरे हरषाय|
धार देत ही श्रीजिन-सन्मुख, जन्म-जरा-मृतु दूर भगाय||
शांतिनाथ पंचम-चक्रेश्वर, द्वादश-मदन तनो पद पाय|
तिनके चरण-कमल के पूजे, रोग-शोक-दु:ख-दारिद जाय||
ॐ ह्रीं श्री शांतिनाथजिनेन्द्राय जन्म-जरा-मृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।१।

मलयागिर चंदन कदली-नंदन, कुंकुम जल के संग घिसाय|
भव-आताप विनाशन-कारण, चरचूँ चरण सबै सुखदाय||
शांतिनाथ पंचम-चक्रेश्वर, द्वादश-मदन तनो पद पाय|
तिनके चरण-कमल के पूजे, रोग-शोक-दु:ख-दारिद जाय||
ॐ ह्रीं श्री शांतिनाथजिनेन्द्राय संसारताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।२।

पुण्यराशि-सम उज्ज्वल अक्षत, शशि-मरीचि तसु देख लजाय|
पुंज किये तुम चरणन आगे, अक्षय-पद के हेतु बनाय||
शांतिनाथ पंचम-चक्रेश्वर, द्वादश-मदन तनो पद पाय|
तिनके चरण-कमल के पूजे, रोग-शोक-दु:ख-दारिद जाय||
ॐ ह्रीं श्री शांतिनाथजिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।३।

सुर-पुनीत अथवा अवनी के, कुसुम मनोहर लिए मँगाय|
भेंट धरी तुम चरणन के ढिंग, ततछिन कामबाण नस जाय||
शांतिनाथ पंचम-चक्रेश्वर, द्वादश-मदन तनो पद पाय|
तिनके चरण-कमल के पूजे, रोग-शोक-दु:ख-दारिद जाय||
ॐ ह्रीं श्री शांतिनाथजिनेन्द्राय कामबाण- विध्वन्सनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।४।

भाँति-भाँति के सद्य मनोहर, कीने मैं पकवान संवार|
भर थारी तुम सन्मुख लायो, क्षुधा वेदनी वेग निवार||
शांतिनाथ पंचम-चक्रेश्वर, द्वादश-मदन तनो पद पाय|
तिनके चरण-कमल के पूजे, रोग-शोक-दु:ख-दारिद जाय||
ॐ ह्रीं श्री शांतिनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।५।

घृत सनेह करपूर लाय कर, दीपक ताके धरे प्रजार|
जगमग जोत होत मंदिर में, मोह-अंध को देत सुटार||
शांतिनाथ पंचम-चक्रेश्वर, द्वादश-मदन तनो पद पाय|
तिनके चरण-कमल के पूजे, रोग-शोक-दु:ख-दारिद जाय||
ॐ ह्रीं श्री शांतिनाथजिनेन्द्राय मोहांधकार -विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।६।

देवदारु कृष्णागरु चंदन तगर कपूर सुगन्ध अपार|
खेऊँ अष्ट-करम जारन को, धूप धनंजय-माँहि सुडार||
शांतिनाथ पंचम-चक्रेश्वर, द्वादश-मदन तनो पद पाय|
तिनके चरण-कमल के पूजे, रोग-शोक-दु:ख-दारिद जाय||
ॐ ह्रीं श्री शांतिनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।७।

नारंगी बादाम सु केला एला दाड़िमफल सहकार|
कचंन-थाल माँहिं धर लायो, अर्चत ही पाऊँ शिवनार||
शांतिनाथ पंचम-चक्रेश्वर, द्वादश-मदन तनो पद पाय|
तिनके चरण-कमल के पूजे, रोग-शोक-दु:ख-दारिद जाय||
ॐ ह्रीं श्री शांतिनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।८।

जल-फलादि वसु द्रव्य संवारें, अर्घ चढ़ायें मंगल गाय|
‘बखत रतन’ के तुम ही साहिब, दीज्यो शिवपुर-राज कराय||
शांतिनाथ पंचम-चक्रेश्वर, द्वादश-मदन तनो पद पाय|
तिनके चरण-कमल के पूजे, रोग-शोक-दु:ख-दारिद जाय||
ॐ ह्रीं श्री शांतिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।९।

पंचकल्याणक
(छन्द उपगति)
भादव-सप्तमि-श्यामा, सर्वारथ त्याग गजपुर आये|
माता ऐरा नामा, मैं पूजूँ ध्याऊँ अर्घ शुभ लाये||
ॐ ह्रीं भाद्रपद-कृष्ण-सप्तम्यां गर्भकल्याणक-प्राप्ताय श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।१।

जन्मे तीरथ-नाथं, वर जेठ-असित-चतुर्दशी सोहे|
हरिगण नावें माथं, मैं पूजूँ शांति चरण-युग जोहे||
ॐ ह्रीं ज्येष्ठ-कृष्ण-चतुर्दश्यां जन्म-कल्याणक-प्राप्ताय श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।२।

चौदस-जेठ-अंधियारी, कानन में जाय योग प्रभु लीन्हा|
नवनिधि-रत्न सु छांरी, मैं वंदूं आत्मसार जिन चीन्हा||
ॐ ह्रीं ज्येष्ठ-कृष्ण-चतुर्दश्यां तप:कल्याणक-प्राप्ताय श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।३।

पौष-दसैं-उजियारा, अरि-घाति ज्ञान-भानु जिन पाया|
प्रातिहार्य-वसु धारा, मैं सेऊँ सुर-नर जासु यश गाया||
ॐ ह्रीं पौष-शुक्ल-दशम्यां ज्ञान-कल्याणक-प्राप्ताय श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।४।

सम्मेद-शैल भारी, हन कर अघाति मोक्ष जिन पाई|
जेठ-चतुर्दशि-कारी, मैं पूजूँ सिद्धथान सुखदाई||
ॐ ह्रीं ज्येष्ठ-कृष्ण-चतुर्दश्यां मोक्ष-कल्याणक-प्राप्ताय श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।५।

जयमाला
(छप्पय छन्द)
भये आप जिनदेव जगत में सुख विस्तारे|
तारे भव्य अनेक तिन्हों के संकट टारे||
टारे आठों कर्म मोक्ष-सुख तिनको भारी|
भारी विरद निहार लही मैं शरण तिहारी||

(सोरठा छन्द)
तिहारे चरणन को नमूँ दु:ख दारिद-संताप हर|
सकल-कर्म छिन-एक में, शांति-जिनेश्वर शांतिकर ||१||

(दोहा)
सारंग-लक्षण चरण में, उन्नत धनु-चालीस|
हाटक-वर्ण शरीर-द्युति, नमूँ शांति जग-ईश ||२||

(छन्द भुजंग-प्रयात)
प्रभो! आपने सर्व के फंद तोड़े,
गिनाऊँ कछु मैं तिनों नाम थोड़े|
पड़ो अंबु के बीच श्रीपाल राई,
जपो नाम तेरो भए थे सहाई ||३||

धरो राय ने सेठ को सूलिका पै,
जपी आपके नाम की सार जापै|
भये थे सहाई तबै देव आये,
करी फूल-वर्षा सिंहासन बनाये ||४||

जबै लाख के धाम वह्नि प्रजारी,
भयो पांडवों पे महाकष्ट भारी|
जबै नाम तेरे तनी टेर कीनी,
करी थी विदुर ने वहीं राह दीनी ||५||

हरी द्रौपदी धातकीखंड माँही,
तुम्हीं वहाँ सहाई भला और नाहीं|
लियो नाम तेरो भलो शील पालो,
बचाई तहाँ ते सबै दु:ख टालो ||६||

जबै जानकी राम ने जो निकारी,
धरे गर्भ को भार उद्यान डारी |
रटो नाम तेरो सबै सौख्यदाई,
करी दूर पीड़ा सु क्षण न लगाई ||७||

व्यसन सात सेवे करे तस्कराई,
सु अंजन से तारे घड़ी न लगाई |
सहे अंजना चंदना दु:ख जेते,
गये भाग सारे जरा नाम लेते ||८||

घड़े बीच में सासु ने नाग डारो,
भलो नाम तेरो जु सोमा संभारो |
गई काढ़ने को भई फूलमाला,
भई है विख्यातं सबै दु:ख टाला ||९||

इन्हें आदि देके कहाँ लों बखानें,
सुनो विरद भारी तिहूँ-लोक जानें|
अजी नाथ! मेरी जरा ओर हेरो,
बड़ी नाव तेरी रती बोझ मेरो ||१०||

गहो हाथ स्वामी करो वेगि पारा,
कहूँ क्या अबै आपनी मैं पुकारा|
सबै ज्ञान के बीच भासी तुम्हारे,
करो देर नाहीं मेरे शांति प्यारे ||११||

(घत्ता)
श्री शांति तुम्हारी, कीरत भारी, सुर नर गावें गुणमाला|
‘बख्तावर’ ध्यावे, ’रतन’ सु गावे, मम दु:ख-दारिद सब टाला||
ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय जयमाला-पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

अजी एरानंदन छवि लखत ही आप अरणं|
धरै लज्जा भारी करत थुति सो लाग चरणं||
करै सेवा सोई लहत सुख सो सार क्षण में|
घने दीना तारे हम चहत हैं वास तिन में||
।।इत्याशीर्वाद: पु्ष्पांजलिं क्षिपेत्।।

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Note

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