Shri Vardhman Stotra – श्री वर्धमान स्तोत्र

Mahaveer Bhagwan pooja

श्री वर्धमान स्तोत्र (संस्कृत) (1) अदृश्य को दिखाने वाली स्तुति श्री वर्धमान जिनदेव पदारविन्द – युग्म-स्थितांगुलिनखांशु-समूहभासि। प्रद्योततेऽखिल-सुरेन्द्रकिरीट-कोटि र्भक्त्या ‘प्रणम्य’ जिनदेव-पदं स्तवीमि ||1|| –o– (2) चित्त एकाग्र करने वाली स्तुति नाहंकृतेऽहमिति नात्र चमत्कृतेऽपि, बुद्धे: प्रकर्षवशतो न च दीनतोऽहम्। श्रीवीरदेव-गुण-पर्यय-चेतनायां संलीन-मानस-वशः स्तुतिमातनोमि ||2|| –o– (3) उत्कृष्ट पुण्य फल प्रदायी स्तुति उच्चैः कुल-प्रभवता सुखसाधनानि सोन्दर्य-देह-सुभग-द्रविण-प्रभूतम्। मन्ये न मोक्ष-पथ-पुण्यफलं … Read more

शास्त्र स्वाध्याय का मंगलाचरण – Shastra Mangalacharan

Shri Bade Baba Vidhan

ॐ नमः सिद्धेभ्यः ॐ जय जय जय नमोऽस्तु ! नमोऽस्तु !! नमोऽस्तु !!! णमो अरहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं। णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं ।। ॐ कारं बिन्दुसंयुक्तं, नित्यं ध्यायन्ति योगिनः । कामदं मोक्षदं चैव, ॐकाराय नमो नमः ।। अविरल – शब्दघनौघ प्रक्षालित सकलभूतल – कलङ्का। मुनिभिरुपासित – तीर्थ सरस्वती हरतु नो दुरितान् ।। अज्ञान … Read more

मंगलाचरण (चौबीस तीर्थंकर) | Mangalacharan 24 Thirthankar

Jainism flag jain dharm

उसहमजियं च वंदे, संभवमभिणंदणं च सुमइं च । पउमप्पहं सुपासं , जिणं च चंदप्पहं वंदे ।। सुविहिं च पुप्फयंतं,‌ सीयल सेयंस वासुपुज्जं च। विमलमणंत-भयवं धम्मं संतिं च वंदामि ।। कुंथुं च जिणवरिंदं , अरं च मल्लिं च सुव्वयं च णमिं । वंदामि रिट्ठणेमि , तह पासं वड्ढ माणं च ।। चंदेहि णिम्मलयरा , आइच्चेहिं अहियं … Read more

समाधि भक्ति पाठ (तेरी छत्र छाया)

bhagwan shantinath

समाधि भक्ति तेरी छत्रच्छाया भगवन्! मेरे शिर पर हो। मेरा अन्तिम मरणसमाधि, तेरे दर पर हो॥ जिनवाणी रसपान करूँ मैं, जिनवर को ध्याऊँ। आर्यजनों की संगति पाऊँ, व्रत-संयम चाहू ॥ गुणीजनों के सद्गुण गाऊँ, जिनवर यह वर दो। मेरा अन्तिम मरणसमाधि, तेरे दर पर हो॥ १॥ तेरी.. ॥ परनिन्दा न मुँह से निकले, मधुर वचन … Read more

मंगलाष्टक मराठी – Mangalashtak in Marathi

स्वस्ति श्री गणनायकं गजमुखम, मोरेश्वरम सिद्धीधम । बल्लाळो मुरुडम विनायकमहम चिन्तामणि स्थेवरम। लेण्याद्री गिरीजात्मकम सुरवरदम विघ्नेश्वरम् ओझरम । ग्रामो रांजण संस्थीतम गणपति। कुर्या सदा मंगलम शुभ मंगल सावधान।।१।। गंगा सिंधु सरस्वतीच यमुना,गोदावरी नर्मदा । कावेरी शरयू महेंद्रतनया शर्मण्वति वेदीका । शिप्रा वेञवती महासूर नदी,ख्याता गया गंडकी। पुर्णा पुर्ण जलै, समुद्र सरीता। कुर्या सदा मंगलम शुभ … Read more

निर्वाण कांड – Nirvan Kand

Dev Shastra Guru Pooja

जैन धर्म निर्वाण कांड (दोहा) वीतराग वन्दौं सदा, भाव सहित सिर नाय| कहूं काण्ड निर्वाण की, भाषा सुगम बनाये || (चौपाई) अष्टापद आदीश्वर स्वामि, वासुपूज्य चम्पापुरि नामि| नेमिनाथ स्वामी गिरनार, वन्दौं भाव भगति उर धार ||1|| चरम तीर्थकर चरम शरीर, पावापुरि स्वामि महावीर| शिखर समेद जिनेसुर बीस, भावसहित वन्दौं निश दीस ||2|| वरदत्तराय रु इन्द … Read more

श्री पारसनाथ स्तोत्रं संस्कृत – Shri Parasnath Stotra

Parasnath Bhagwan

Parasnath Stotra Sanskrit Lyrics नरेन्द्रं फणीन्द्रं सुरेन्द्रं अधीशं, शतेन्द्रं सु पुजै भजै नाय शीशं।मुनीन्द्रं गणीन्द्रं नमे जोड़ि हाथं, नमो देव देवं सदा पार्श्वनाथं ॥१॥ गजेन्द्रं मृगेन्द्रं गह्यो तू छुडावे, महा आगतै नागतै तू बचावे।महावीरतै युद्ध में तू जितावे, महा रोगतै बंधतै तू छुडावे ॥२॥ दुखी दुखहर्ता सुखी सुखकर्ता, सदा सेवको को महा नन्द भर्ता।हरे यक्ष … Read more

MAHAVIRASHTAK STOTRA – महावीराष्टक स्तोत्र

Mahaveer Bhagwan pooja

यदीये चैतन्ये मुकुर इव भावाश्चिदचित:, समं भान्ति ध्रौव्य-व्यय-जनि-लसन्तोन्तरहिता:| जगत्साक्षी मार्ग-प्रकटनपरो भानुरिव यो, महावीर-स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे ||१|| अताम्रं यच्चक्षु: कमल-युगलं स्पन्द-रहितम्, जनान्कोपापायं प्रकटयति बाह्यान्तरमपि| स्फुटं मूर्तिर्यस्य प्रशमितमयी वातिविमला, महावीर-स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे ||२|| नमन्नाकेन्द्राली-मुकुट-मणि-भा-जाल-जटिलम्, लसत्पादाम्भोज-द्वयमिह यदीयं तनुभृताम्| भवज्ज्वाला-शान्त्यै प्रभवति जलं वा स्मृतमपि, महावीर-स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे||३|| यदर्चा-भावेन प्रमुदित-मना दर्दुर इह, क्षणादासीत्स्वर्गी गुण-गण-समृद्ध: सुख-निधि:| लभन्ते सद्भक्ता: … Read more

श्री मंगलाष्टक स्तोत्रं(अर्थ के साथ) || Shri Mangalashtak Stotram

Samuchchay Puja

श्री पंचपरमेष्ठी वंदन अरिहन्तो-भगवन्त इन्द्रमहिता: सिद्धाश्च सिद्धीश्वरा:,आचार्या: जिनशासनोन्नतिकरा: पूज्या उपाध्यायका:|श्रीसिद्धान्त-सुपाठका: मुनिवरा: रत्नत्रयाराधका:,पंचैते परमेष्ठिन: प्रतिदिनं कुर्वन्तु ते मंगलम्|| श्रीमन्नम्र – सुरासुरेन्द्र – मुकुट – प्रद्योत – रत्नप्रभाभास्वत्पाद – नखेन्दव: प्रवचनाम्भोधीन्दव: स्थायिन:|ये सर्वे जिन-सिद्ध-सूर्यनुगतास्ते पाठका: साधव:,स्तुत्या योगीजनैश्च पंचगुरव: कुर्वन्तु ते मंगलम् ||१||अर्थ- शोभायुक्त और नमस्कार करते हुए देवेन्द्रों और असुरेन्द्रों के मुकुटों के चमकदार रत्नों की कान्ति … Read more