siddha puja bhasha

श्री धर्मनाथ जिन पूजा 2022 || New Shri Dharmnath Jin Pooja

भारत छन्द -सात भगण दो गुरु

धर्म जिनेन्द्र नमो कर जोड़, सुमात प्रभा प्रभु गर्भ सुहाये।
भानु पितांगण में सुर इन्दर, गर्भ सुमंगल गान सुनाये॥
काश्यप गोत्र सुवंश महाकुरु देव घनी धन वृष्टि कराये।
रत्नपुरी तज दीक्षित धर्म, महाभगवन्त हृदै पधराये॥
ओं ह्रीं तीर्थंकरधर्मनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम् ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् । अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणम् ।

लय-लावनी
श्री धर्मनाथ जिनराज मेरी अरज सुनो,
कर दो भव दुख से पार, मेरी अरज सुनो।
जीवानी कर छना कूप जल, प्रासुक कलश भराय।
जन्म जरा मृति रोग निवारन, जिनवर चरण चढ़ाय॥
मेरी ओं ह्रीं श्री धर्मनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।

मलयागिरि चन्दन अलि गुँजित, कुमकुम संग घसाय ।
भवाताप हरने पद पूजूँ, धर्मनाथ गुण गाय ॥ मेरी….
ओं ह्रीं श्री धर्मनाथजिनेन्द्राय संसारतापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा।

शालि अखण्डित सौरभ मण्डित, शशि सम द्युति दमकाय ।
जिनके पुंज धरूँ प्रभु पद में, अक्षय पद मिल जाय ॥ मेरी..
ओं ह्रीं श्री धर्मनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।

मुनि मन सम मन सुमन बनाऊँ, भक्त भ्रमर मँडराय ।
काम महामद भंजन कारण, मन सुमरे जिनराय ॥ मेरी..
ओं ह्रीं श्री धर्मनाथजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।

शुचि मेवा का सुचरु सुहाया, जिनवर चरण चढ़ाय ।
अनशन कर क्षुध रोग हरन को, वीतराग गुण गाय ॥ मेरी….
ओं ह्रीं श्री धर्मनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।

कंचन दीप वाति कर्पूरी, उज्ज्वल ज्योति जगाय ।
मोह महातम हरने भगवन्, तुम पद में धरवाय ॥ मेरी….
ओं ह्रीं श्री धर्मनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।

दश विधि गन्ध बन्ध विधि नाशन, ध्यान धनञ्जय भाय।
अष्ट कर्म नश अष्ट सुगुण की, सौरभ जग महकाय ॥ मेरी….
ओं ह्रीं श्री धर्मनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।

श्रीफल पूग बदाम द्राक्ष को, जिनवर चरण चढ़ाय ।
महामोक्षफल पाने भगवन्, जिन पद श्रद्धा लाय ॥ मेरी…
ओं ह्रीं श्री धर्मनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।

जल चन्दन आदिक द्रव्यों की, सुन्दर थाल सजाय ।
अनर्घ पद पाने को भगवन्, आठों द्रव्य चढ़ाय ॥
मेरी अरज सुनो, श्री धर्मनाथ जिनराज मेरी अरज सुनो।
ओं ह्रीं श्री धर्मनाथजिनेन्द्राय अनर्घपदप्राप्तये अर्धं निर्वपामीति स्वाहा।

पंचकल्याणक अर्घ – ज्ञानोदयार्द्ध छंद

वैशाख त्रयोदश सिता गर्भ लसि, मात सुप्रभा गुणवन्ती ।
विजय अनुत्तर तज जितारि नृप, रत्नपुरी यश जयवन्ती ॥
ओं ह्रीं वैशाख शुक्ल त्रयोदश्यां गर्भकल्याणमण्डित श्रीधर्मनाथजिनेन्द्राय अर्थं ।

माघ त्रयोदश सिता जन्म लसि, इन्द्र महोत्सव रचवाये।
सुरगिरि जाकर बाल स्नान कर, शचि आभूषण पहनाये॥
ओं ह्रीं माघशुक्लत्रयोदश्यां जन्मकल्याणमण्डितश्रीधर्मनाथजिनेन्द्राय अर्धं।

जन्म दिवस पर दीक्षा लेकर, दो दिन का उपवास किया।
धन्यसेन घर मुनि अहार कर, धर्मनाथ निज वास किया॥
ॐ ह्रीं माघशुक्लत्रयोदश्यां तपः कल्याणमण्डितश्रीधर्मनाथजिनेन्द्राय अर्घ।

पौष पूर्णिमा पूर्ण ज्ञान पा, लोकालोक निहार लिया।
भव दुख हरने जग हित करने, देश विदेश विहार किया॥
ओं ह्रीं पौषशुक्लपूर्णिमायां ज्ञानकल्याणमण्डितश्रीधर्मनाथजिनेन्द्राय अर्ध।

ज्येष्ठ चतुर्थी सिता शुभा तिथि, मुक्ति रमा परिणायी है।
आठ कर्म हन मेरे भगवन्, धर्मनाथ सुखदायी हैं ॥
ओं ह्रीं ज्येष्ठशुक्लचतुर्थ्यां मोक्षकल्याणमण्डितश्रीधर्मनाथजिनेन्द्राय अर्ध।

जयमाला (यशोगान)
दोहा

वर्ष उदधि चउ बीतते, आधा पल्य बिताय।
प्रभु अनन्त के बाद तब, धर्मनाथ जिन आय॥

सन्मति छन्द-लय पद्धरी
कुण्डिनपुर नृपति प्रताप तात, श्रृंगारमती कन्या सुहात।
व्याही कन्या वर धर्मनाथ, ढाई लख वर्ष प्रजा सनाथ॥
उल्का प्रपतन लख तजा राज्य, नृप सहस्त्र पाते तप स्वराज्य।
तत्क्षण मनपर्यय ज्ञान पाय, छद्मस्थ काल इक वर्ष जाय॥
तप कर पाया प्रभु पूर्ण ज्ञान, द्वादश गण को दे ज्ञान दान।
सुर नर मुनि गण से वन्द्य आप, धारे अनन्त गुण चार माप॥
सुअरिष्ठसेन आदिक गणीश, सैंतालिस थे सब गणि मुनीश।
चौसठ हजार थे सब यतीश, सातों विध मुनि सम्मिलित ईश॥
सुव्रता आर्या सबमें प्रधान, बासठ हजार चउ शतक जान।
दो लख श्रावक फिर दुगुण जान, अणुव्रतिकायें थीं गुण निधान॥
अणुव्रतधर थे तिर्यञ्च संख्य, सुर सुरी सभासद थे असंख्य।
उपदेश दिया फिर कर विहार, सम्मेद शिखर से शिव निहार॥
ओं ह्रीं श्री धर्मनाथजिनेन्द्राय अनर्घपदप्राप्तये पूर्णाधं निर्वपामीति स्वाहा।

सर्वारथ से उतर कर, बने धर्म भगवान|
वज्रदण्ड पद में लसा, मृदुल धर्म पहचान॥
॥ इति शुभम् भूयात् ॥

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Note

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Swarn Jain

My name is Swarn Jain, A blog scientist by the mind and a passionate blogger by heart ❤️, who integrates my faith into my work. As a follower of Jainism, I see my work as an opportunity to serve others and spread the message of Jainism.

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