कुसुमलता छन्द
महाशुक्र हरि विमान तजकर, जम्बूद्वीप भरत में आय।
चम्पापुर वसुपूज्य भूप की रानी जया गर्भ सुखदाय॥
वासुपूज्य है नाम तुम्हारा, प्रथम बाल ब्रह्मचारी ईश।
द्वादशवें तीर्थंकर जिनवर, मेरे हृदय बसो जगदीश॥
ओं ह्रीं तीर्थंकरवासुपूज्यजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम् ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् । अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणम् ।
जिनगीतिका छन्द
पंचम उदधि सम नीर निर्मल, कनक झारी में भरूँ ।
जन्मादि जर मरणादि पूरित, अमित भव सागर तरूँ ॥
हे वासुपूज्य जिनेश भगवन्, खबर मेरी लीजिए ।
कब से भ्रमित हूँ भव विपिन में, राह मुझको दीजिए ॥
ओं ह्रीं श्री वासुपूज्यजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
यह मलय चन्दन गन्ध वासित, भ्रमर गण गुंजन करें।
भव ताप हरने भक्त हम सब गन्ध प्रभु पद में धरें ॥
हे वासुपूज्य जिनेश भगवन्, खबर मेरी लीजिए।
कब से भ्रमित हूँ भव विपिन में, राह मुझको दीजिए ॥
ओं ह्रीं श्री वासुपूज्यजिनेन्द्राय संसारतापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा।
शशि किरण सम उज्ज्वल अखण्डित, पुण्य राशि समान हैं।
उन तन्दुलों से भक्ति युत हम, पूजते भगवान हैं ॥
हे वासुपूज्य जिनेश भगवन्, खबर मेरी लीजिए।
कब से भ्रमित हूँ भव विपिन में, राह मुझको दीजिए ॥
ओं ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ।
निर्मल सलिल सम मन सुमन को, जिन पदों में अर्पते ।
मन्दिर बने मन भक्ति करने, चित्त से जिन अर्चते ॥
हे वासुपूज्य जिनेश भगवन्, खबर मेरी लीजिए ।
कब से भ्रमित हूँ भव विपिन में, राह मुझको दीजिए ॥
ओं ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
बाधा क्षुधा की मेटने हम, जिन चरण चरुवर धरें।
उपवास ऊनोदर तपों से, भूख की बाधा हरें ॥
हे वासुपूज्य जिनेश भगवन्, खबर मेरी लीजिए।
कब से भ्रमित हूँ भव विपिन में, राह मुझको दीजिए ॥
ओं ह्रीं श्री वासुपूज्यजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
घृत पूर दीपक जिन चरण में, भक्ति पूर्वक हम धरें।
परिपूर्ण बोध सुज्ञान पाने, मोह मिथ्यातम हरें ॥
हे वासुपूज्य जिनेश भगवन्, खबर मेरी लीजिए।
कब से भ्रमित हूँ भव विपिन में, राह मुझको दीजिए ॥
ओं ह्रीं श्री वासुपूज्यजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
सुरभित दशों दिश अगरु गन्धित, धूप जिनपद में धरूँ।
ध्यानाग्नि में वसु कर्म ईंधन, डाल गुण सुरभित करूँ ॥
हे वासुपूज्य जिनेश भगवन्, खबर मेरी लीजिए।
कब से भ्रमित हूँ भव विपिन में, राह मुझको दीजिए ॥
ओं ह्रीं श्री वासुपूज्यजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
बादाम एला द्राक्ष फल ले, बालयति जिन को यजें ।
सुख दुःख में सम भाव धरके, मोक्ष के फल को भजें ॥
हे वासुपूज्य जिनेश भगवन्, खबर मेरी लीजिए।
कब से भ्रमित हूँ भव विपिन में, राह मुझको दीजिए ॥
ओं ह्रीं श्री वासुपूज्यजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
जल आदि वसु विध द्रव्य लेकर, वासुपूज्य जिनेश को ।
पूजूँ सदा निर्वाण पाऊँ, बालयति ब्रह्मेश को 11
हे वासुपूज्य जिनेश भगवन्, खबर मेरी लीजिए।
कब से भ्रमित हूँ भव विपिन में, राह मुझको दीजिए ॥
ओं ह्रीं श्री वासुपूज्यजिनेन्द्राय अनर्घपदप्राप्तये अर्धं निर्वपामीति स्वाहा।
पंचकल्याणक अर्घ
चौपाई
कलि आषाढ़ी छठी सुहाई, गर्भस्था माता हर्षाई ।
सुर नर पति मन में हर्षाये, धनपति देव रत्न बरसाये ॥
ओं ह्रीं आषाढ़ कृष्णाषष्ठ्यां गर्भकल्याणमण्डित श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय अर्ध।
फाल्गुन कृष्णा चौदस आयी, जन्म वासु जिन का अतिशायी।
सुरगिरि पे हरि न्हवन कराते, वर्ष अठारह लख गृह भाते ॥
ओं ह्रीं फाल्गुनकृष्णाचतुर्दश्यां जन्मकल्याणमण्डित श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय अर्घं।
तिथि चौदस श्यामा फाल्गुन को, वासुपूज्य पहुँचे तप वन को ।
छै सौ छिहत्तर नृप तव साथी, सुन्दर नृप घर पारण भाती ॥
ओं ह्रीं फाल्गुनकृष्णाचतुर्दश्यां तपः कल्याणमण्डित श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय अर्थं।
वर्ष बाद तप का फल पाया, केवलज्ञान वासु प्रकटाया।
माघ सिता दोयज सुखकारी, समवसरण रचना हितकारी ॥
ॐ ह्रीं माघशुक्लाद्वितीयायां ज्ञानकल्याणमण्डित श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय अर्धं।
भाद्र सिता चौदस सुखदायी, प्रभु ने मोक्ष रमा परिणायी।
चम्पापुर से मोक्ष पधारे, चौरान्नव मुनि साथ तुम्हारे॥
ओं ह्रीं भाद्रशुक्लाचतुर्दश्यां मोक्षकल्याणमण्डितश्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय अर्थं।
जयमाला (यशोगान)
दोहा
चौवन सागर बीतते श्रेयो जिन शिव बाद।
गये पल्य के भाग त्रय, वासुपूज्य उत्पाद ॥
चौपाई
सत्तर धनुष उँचाई गायी, लाख बहत्तर आयु सुहायी।
कुंकुम वर्ण देह का माना, तन के दश अतिशय परिधाना॥
पूज्य रत्नमाला पर शोभे, लौकान्तिक सुर का मन लोभे ।
तप कर केवलज्ञानी होते, उपदेशों से विधि मल धोते ॥
पूर्ण ज्ञान के दस अतिशय हैं, देवोंकृत चौदह अतिशय हैं।
आठों प्रातिहार्य प्रतिहारी, चार अनन्त स्वगुण अविकारी ॥
कर विहार चम्पापुर आये, वर्ष सहस जिन यहाँ बिताये ।
धर्म आदि छ्यासठ गणधर थे, सहस बहत्तर सब मुनिवर थे ।
सेना प्रमुख आर्यिका प्यारी, छह हजार इक लख गुणधारी
गिरि मन्दार मोक्ष पद पाते, मृदु गुणधर पद पूजे जाते ॥
ओं ह्रीं श्री वासुपूज्यजिनेन्द्राय अनर्घपदप्राप्तये पूर्णार्थं निर्वपामीति स्वाहा।
दोहा
महिष चिन्ह से शोभते, वासुपूज्य जिनराज।
विद्यासागर सूरि हैं, मृदुमति के गुरुराज॥
॥ इति शुभम् भूयात् ॥
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Note
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