श्रीअकम्पनाचार्यादि सप्तशत मुनि पूजा
चाल जोगीरासा
पूज्य अकम्पन साधु-शिरोमणि सात- शतक मुनि ज्ञानी ।
आ हस्तिनापुर के कानन में हुये अचल दृढ़ ध्यानी ॥
दुखद सहा उपसर्ग भयानक सुन मानव घबराये।
आत्म-साधना के साधक वे, तनिक नहीं अकुलाये॥
योगिराज श्री विष्णु त्याग तप, वत्सलता-वश आये।
किया दूर उपसर्ग, जगत-जन मुग्ध हुए हर्षाये॥
सावन शुक्ला पन्द्रस पावन शुभ दिन था सुख दाता।
पर्व सलूना हुआ पुन्यप्रद यह गौरवमय गाथा।।
शान्ति, दया, समता का जिनसे नव आदर्श मिला है।
जिनका नाम लिये से होती जागृत पुण्य-कला है।
करूँ वन्दना उन गुरुपद की वे गुण मैं भी पाऊँ ।
आह्वानन संस्थापन सन्निधिकरण करूँ हर्षाऊँ ॥
ॐ हूँ ह्रौं ह्रः श्रीअकम्पनाचार्यादिसप्तशतमुनिसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् ।
ॐ हूँ ह्रौं ह्रः श्रीअकम्पनाचार्यादिसप्तशतमुनिसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः ।
ॐ हूँ ह्रौं ह्रः श्रीअकम्पनाचार्यादिसप्तशतमुनिसमूह ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् ।
अष्टक
(गीता छन्द)
मैं उर-सरोवर से विमल जल भाव का लेकर अहो ।
नत पाद-पद्मों में चढ़ाऊँ मृत्यु जनम जरा न हो ॥
श्रीगुरु अकम्पन आदि मुनिवर मुझे साहस शक्ति दें ।
पूजा करूँ पातक मिटें, वे सुखद समता भक्ति दें ॥
ॐ हूँ ह्रौं ह्रः श्रीअकम्पनाचार्यादि-सप्तशतमुनिभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्व.।
सन्तोष मलयागिरिय चन्दन निराकुलता सरस ले ।
नत पादपद्मों में चढ़ाऊँ विश्वताप नहीं जले ||
श्रीगुरु अकम्पन आदि मुनिवर मुझे साहस शक्ति दें ।
पूजा करूँ पातक मिटें, वे सुखद समता भक्ति दें ॥
ॐ हूँ ह्रौं ह्रः श्रीअकम्पनाचार्यादि सप्तशतमुनिभ्यो भवातापविनाशनाय चन्दनं निर्व.
तंदुल अखंडित शुद्ध आशा के नवीन सुहावने ।
नत पादपद्मों में चढ़ाऊँ दीनता क्षयता हने ॥
श्रीगुरु अकम्पन आदि मुनिवर मुझे साहस शक्ति दें ।
पूजा करूँ पातक मिटें, वे सुखद समता भक्ति दें ॥
ॐ हूँ ह्रौं ह्रः श्रीअकम्पनाचार्यादि-सप्तशतमुनिभ्योऽक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति ।
ले विविध विमल विचार सुन्दर सरस सुमन मनोहरे ।
नत पादपद्मों में चढ़ाऊँ काम की बाधा हरे ॥
श्रीगुरु अकम्पन आदि मुनिवर मुझे साहस शक्ति दें ।
पूजा करूँ पातक मिटें, वे सुखद समता भक्ति दें ॥
ॐ हूँ ह्रौं ह्रः श्रीअकम्पनाचार्यादि सप्तशतमुनिभ्यः कामबाणविनाशनाय पुष्पं निर्व.।
शुभ भक्ति घृत में विनय के पकवान पावन मैं बना ।
नत पादपद्मों में चढ़ा मेदूँ क्षुधा की यातना ||
श्रीगुरु अकम्पन आदि मुनिवर मुझे साहस शक्ति दें ।
पूजा करूँ पातक मिटें, वे सुखद समता भक्ति दें ॥
ॐ हूँ ह्रौं ह्रः श्रीअकम्पनाचार्यादि- सप्तशतमुनिभ्यः क्षुधारोगविनाशाय नैवेद्यं निर्वपामीति ।
उत्तम कपूर विवेक का ले आत्म-दीपक में जला ।
कर आरती गुरु की हटाऊँ मोह-तम की यह बला ॥
श्रीगुरु अकम्पन आदि मुनिवर मुझे साहस शक्ति दें ।
पूजा करूँ पातक मिटें, वे सुखद समता भक्ति दें ॥
ॐ हूँ ह्रौं ह्रः श्रीअकम्पनाचार्यादिसप्तशतमुनिभ्यो मोहान्धकारविनाशाय दीपं निर्व.।
ले त्याग तप की यह सुगन्धित धूप मैं खेऊँ अहो ।
गुरुचरण-करुणा से करम का कष्ट यह मुझको न हो ॥
श्रीगुरु अकम्पन आदि मुनिवर मुझे साहस शक्ति दें ।
पूजा करूँ पातक मिटें, वे सुखद समता भक्ति दें ॥
ॐ हूँ ह्रौं ह्रः श्रीअकम्पनाचार्यादि-सप्तशतमुनिभ्योऽष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति ।
शुचि -साधना के मधुरतम प्रिय सरस फल लेकर यहाँ ।
नत पादपद्मों में चढ़ाऊँ मुक्ति मैं पाऊँ यहाँ ॥
श्रीगुरु अकम्पन आदि मुनिवर मुझे साहस शक्ति दें ।
पूजा करूँ पातक मिटें, वे सुखद समता भक्ति दें ॥
ॐ हूँ ह्रौं ह्रः श्रीअकम्पनाचार्यादि- सप्तशतमुनिभ्यो मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति।
यह आठ द्रव्य अनूप श्रद्धा स्नेह से पुलकित हृदय ।
नत पादपद्मों में चढ़ाऊँ भव-पार मैं होऊं अभय ॥
श्रीगुरु अकम्पन आदि मुनिवर मुझे साहस शक्ति दें ।
पूजा करूँ पातक मिटें, वे सुखद समता भक्ति दें ॥
ॐ हूँ ह्रौं ह्रः श्रीअकम्पनाचार्यादि-सप्तशतमुनिभ्योऽनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति।
जयमाला
सोरठा
पूज्य अकम्पन आदि, सात शतक साधक सुधी।
यह उनकी जयमाल, वे मुझको निज भक्ति दें ॥
पद्धरि छन्द
वे जीव दया पालें महान,वे पूर्ण अहिंसक ज्ञानवान।
उनके न रोष उनके न राग,वे करें साधना मोह त्याग ॥
अप्रिय असत्य बोलें न बैन,मन-वचन-काय में भेद है न।
वे महासत्य धारक ललाम,हैं उनके चरणों में प्रणाम ॥
वे लें न कभी तृणजल अदत्त, उनके न धनादिक में ममत्त ।
वे व्रत अचौर्य दृढ़ धरें सार,है उनको सादर नमस्कार ॥
वे करें विषय की नहीं चाह,उनके न हृदय में काम-दाह ।
वे शील सदा पालें महान, सब मग्न रहें निज आत्मध्यान ॥
सब छोड़ वसन भूषण निवास, माया ममता रु स्नेह आस।
वे धरें दिगम्बर वेश शान्त, होते न कभी विचलित न भ्रान्त ॥
नित रहें साधना में सुलीन, वे सहैं परीषह नित नवीन।
वे करें तत्त्व पर नित विचार, है उनको सादर नमस्कार॥
पंचेन्द्रिय दमन करें महान, वे सतत बढ़ावें आत्म ज्ञान।
संसार देह सब भोग त्याग, वे शिव-पथ साधें सतत जाग॥
‘कुमरेश’ साधु वे हैं महान,उनसे पाये जग नित्य त्राण।
मैं करूँ वन्दना बार-बार वे करें भवार्णव मुझे पार ॥
घत्ता
मुनिवर गुणधारक पर उपकारक, भव दुखहारक सुख-कारी।
वे करम नशायें सुगुण दिलायें, मुक्ति मिलायें भय-हारी॥
ॐ हूँ ह्रौं ह्रः श्रीअकम्पनाचार्यादि – सप्तशतमुनिभ्यो महार्घं निर्वपामीति स्वाहा ।
सोरठा – श्रद्धा भक्ति समेत, जो जन यह पूजा करे।
वह पाये निज ज्ञान, उसे न व्यापे जगत दुख॥
इत्याशीर्वादः पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत्
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Note
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