Gomtesh bahubali

दोहा

वृषभदेव को आदि दे, शीतल जिन पर्यन्त ।
मंगलकर जिनवर नमूँ, होवे भव का अन्त ||१||

जिन शासन में व्रत कहे, एक शतक वसु जान ।
उनके उत्तम फल कहे, गति विधि को पहचान ॥२॥

व्रत सुगंध दशमी महा उनमें एक सुजान ।
जिनकी महिमा अमित है, श्रुतगोचर सुख खान ॥३॥

यह व्रत मुझको स्वपद दे, पर पद में रति भान ।
जिस प्रभाव शिवपद लहूँ, पाऊँ भव अवसान ॥४॥

वृषभ आदि शीतल जिना, यहाँ पधारो आप ।
अहो हमारे मन बसो, मिटे जगत संताप ||५||
ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिशीतलनाथपर्यन्तसर्वजिनेन्द्रसमूह ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम् । ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिशीतलनाथपर्यन्तसर्वजिनेन्द्रसमूह ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् । ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिशीतलनाथपर्यन्तसर्वजिनेन्द्रसमूह ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम् ।

अष्टक
उज्ज्वल निर्मल नीर क्षीर सम, कंचन भृंग भरा लायो ।
जन्म जरा मृत्यु रोग निवारक, प्रभु सम्मुख लेकर धायो ||
वृषभ आदि शीतलजिनेन्द्र-लौ, जो भविजन पूजें ध्यावें ।
कर सुगन्ध दशमी व्रत भविजन, कर्मनाश शिवपुर जावें ॥
ॐ ह्रीं सुगन्धदशमीव्रताचरणे श्रीवृषभादिशीतलनाथपर्यन्तसर्वजिनेन्द्रेभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ||१||

घिस केसर घनसार विमिश्रित, कदली नन्दन शुद्ध मना ।
भव आताप निवारण कारण, जिन चरणन में ला वरना ॥
वृषभ आदि शीतलजिनेन्द्र-लौ, जो भविजन पूजें ध्यावें ।
कर सुगन्ध दशमी व्रत भविजन, कर्मनाश शिवपुर जावें ॥
ॐ ह्रीं सुगन्धदशमीव्रताचरणे श्रीवृषभादिशीतलनाथपर्यन्तसर्वजिनेन्द्रेभ्यः संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा ॥२॥

अक्षत उज्ज्वल परिमल खासे, बासमती सुखदास गिना ।
अक्षत पद पाने के हेतु, श्री जिनवर सम्मुख धरना ॥
वृषभ आदि शीतलजिनेन्द्र-लौ, जो भविजन पूजें ध्यावें ।
कर सुगन्ध दशमी व्रत भविजन, कर्मनाश शिवपुर जावें ॥
ॐ ह्रीं सुगन्धदशमीव्रताचरणे श्रीवृषभादिशीतलनाथपर्यन्तसर्वजिनेन्द्रेभ्यो अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ||३||

कमल केतली जुही चमेली, अरु गुलाब चम्पा लाके ।
समर शूल निर्मूल करन को, प्रभु के चरण धरूँ आके ॥
वृषभ आदि शीतलजिनेन्द्र-लौ, जो भविजन पूजें ध्यावें ।
कर सुगन्ध दशमी व्रत भविजन, कर्मनाश शिवपुर जावें ॥
ॐ ह्रीं सुगन्धदशमीव्रताचरणे श्रीवृषभादिशीतलनाथपर्यन्तसर्वजिनेन्द्रेभ्यः कामवाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ||४||

नानाविधि पकवान मनोहर, रसना रंजित शुद्ध किये ।
क्षुधा वेदनी दूर करन को, श्री जिनवर पूजा करिये ॥
वृषभ आदि शीतलजिनेन्द्र-लौ, जो भविजन पूजें ध्यावें ।
कर सुगन्ध दशमी व्रत भविजन, कर्मनाश शिवपुर जावें ॥
ॐ ह्रीं सुगन्धदशमीव्रताचरणे श्रीवृषभादिशीतलनाथपर्यन्तसर्वजिनेन्द्रेभ्यः क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥५॥

कंचन भाजन में मणि दीपक, लेकर प्रभु आगे आयो ।
मोह तिमिर के नाशकरन को, इतर नहीं कोई पायो ॥
वृषभ आदि शीतलजिनेन्द्र-लौ, जो भविजन पूजें ध्यावें ।
कर सुगन्ध दशमी व्रत भविजन, कर्मनाश शिवपुर जावें ॥
ॐ ह्रीं सुगन्धदशमीव्रताचरणे श्रीवृषभादिशीतलनाथपर्यन्तसर्वजिनेन्द्रेभ्यो मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ||६||

अगर- तगर कृष्णागुरु आदिक, चूर दशांग बनाया है ।
श्री जिनवर सम्मुख खेने से, अष्टकर्म नशवाया है ॥
वृषभ आदि शीतलजिनेन्द्र-लौ, जो भविजन पूजें ध्यावें ।
कर सुगन्ध दशमी व्रत भविजन, कर्मनाश शिवपुर जावें ॥
ॐ ह्रीं सुगन्धदशमीव्रताचरणे श्रीवृषभादिशीतलनाथपर्यन्तसर्वजिनेन्द्रेभ्यो ज्ञानावरणाद्यष्टकर्मविध्वंसनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ||७||

श्रीफल लौंग बदाम सुपारी, एला केला मन भाये ।
मोक्ष महाफल पावन कारन, श्रीजिनवर सम्मुख लाये ॥
वृषभ आदि शीतल जिनेन्द्रलौ, जो भविजन पूजे ध्यावे ।
कर सुगन्ध दशमी व्रत भविजन, कर्म नाश शिवपुर जावे ॥
ॐ ह्रीं सुगन्धदशमीव्रताचरणे श्रीवृषभादिशीतलनाथपर्यन्तसर्वजिनेन्द्रेभ्यो मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा ||८||

जल चंदन आदिक वसुविधि के, द्रव्य मनोहर भर थारी ।
पद अनर्घ के हेतु चढ़ाऊँ, श्री जिनवर पद दे तारी ॥
वृषभ आदि शीतलजिनेन्द्र-लौ, जो भविजन पूजें ध्यावें ।
कर सुगन्ध दशमी व्रत भविजन, कर्मनाश शिवपुर जावें ॥
ॐ ह्रीं सुगन्धदशमीव्रताचरणे श्रीवृषभादिशीतलनाथपर्यन्तसर्वजिनेन्द्रेभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||९||

जयमाला
दोहा

वृषभदेव को आदि दे, शीतल जिन पर्यन्त ।
ये दश ही जिनराज मम, करो भवार्णव अंत ॥

पद्धरि छन्द
जय वृषभनाथ वृषको प्रकाश, कर तारे भविजन ताप नाश ।
हे अजित जिनेश्वर कर्मनाश, प्रगटायो केवल भानु खास ॥

जिन संभव भवहर्ता सुजान, उपदेश दिया जिन तत्त्वज्ञान ।
अभिनंदन आनंदकरन जान, जिन पूजे होवे कर्म हान ॥

सुमति जिन सुमति देन हार, जिससे उतरे संसार पार ।
पद्मप्रभ जिनपदकमल जान, भविजन जिनसे वे नित्य आन ।

जय जय सुपार्श्व भवपाश नाश, हे प्रभुवर हमरी भरी आश ।
चंद्रप्रभ इंदुवत महान, आल्हाद करन हारे सुजान ॥

जय पुष्पदंत भगवान आप, पुष्पक को मार्यो अति प्रताप ।
शीतलता पाने हे जिनेन्द्र, आया हूँ मैं तुम चरण शरण ॥

तुम पूजे मम सब दुःख जाय, रोगादिक सब नशते सुभाय ।
तुमने प्रभु केवलज्ञान पाय, सब लख्यो चराचर सुक्खदाय ॥

इन्द्रादिदेव आये महान तुम पूजा कीनी दुःखहान ।
यह व्रत सुगंध दशमी महान करते ही होवे पाप हान ॥

फिर उद्यापन कीजे महान जिससे पावे व्रत फल महान ।
वर धूप दशांगी लो बनाय दस धूप घटों में दो खिवाय ॥

दश स्तोत्र पढ़े मनवचनकाय, अभिषेक दशम जिनवर कराय ।
उपकरण देय दश ही प्रकार, दश छत्र चंवर चंदवा लगार ॥

पाठकगण को दो शास्त्र सार, कर पात्र दान मन हर्ष धार ।
कर यथाशक्ति तब ही बनाय, नहि शक्ति को अपनी छिपाय ॥

व्रत थकी होय आनंद ठाट, दश दिशि में हो कीरति विराट ।
मिल रहे भोग सब व्रत प्रभाव, सामग्री भोगादिक बनाय ॥

दुर्गति नाशे नहिं रोग होय, सुर सेव करे चक्रेश होय ।
वर पुत्र मित्र बान्धव मनोग्य, व्रत के प्रभाव से मिले योग्य ॥

ये व्रत सुगन्ध दशमी महान, पालो भविजन सुखका निधान ।
इससे पावे यदि स्वर्गवास, इससे हो भवि शिव निवास ॥

व्रत से दुख दारिद्र रोग शोक, मिट जाता मिलता सब सुयोग ।
इससे पावे भवि स्वर्गवास, इससे ही होवे शिव निवास ॥
ॐ ह्रीं सुगन्धदशमीव्रताचरणे श्रीवृषभादिशीतलनाथपर्यन्तसर्वजिनेन्द्रभ्यो जयमालापूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।

दोहा
भव्य जीव मन वचन से, व्रत करिये सुप्रमाण
इस भव यश पर सुख मिले, अंत लहे निर्वाण ॥
इत्याशीर्वादः पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत्

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Note

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