uttam kshama dharma

संसार में प्रत्येक मानव प्राणी के लिए क्षमा रूपी शास्त्र इतना आवश्यक है कि जिनके पास यह क्षमा नहीं होती वह मनुष्य संसार में अपने इष्ट कार्य की सिद्धि नहीं कर सकता है।

क्षमा यह आत्मा का धर्म है, इसलिए जो मानव अपना कल्याण चाहते हैं, उन्हें हमेशा इस भावना की रक्षा करनी चाहिए। क्षमावान् मनुष्य का इस लोक और परलोक में कोई शत्रु नहीं होता है। क्षमा ही सर्व धर्म का सार है। क्षमा ही सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र रूप आत्मा का मुख्य सच्चा भंडार है।

क्रोध के क्षणों में क्षमा धारण करना ही सच्चा पुरुषार्थ है ।

जिसके ह्रदय में अहंकार है वह दुखी है और जिसने अपने अहंकार को विसर्जित किया, मात्र वही सुखी है। उत्तम क्षमा : ‘उत्तम क्षमा जहां मन होई, अंतर बाहर शत्रु न कोई।’– अर्थात्‌ उत्तम क्षमा को धारण करने से जीवन की समस्त कुटिलताएं समाप्त हो जाती हैं तथा मानव का समस्त प्राणी जगत से एक अनन्य मैत्रीभाव जागृत हो जाता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here