ओम् जय आदिनाथ देवा, स्वामी आदिनाथ देवा।
सुर नर किन्नर ऋषिगण, करते तब सेवा।। ओम् जय०
नगर अयोध्या जन्म लिया प्रभु, वैभव था भारी।
नाभिराय पितु माँ मरु देवी, तुम भव दुख हारी।। ओम् जय०
धनुष पांच सौ काय आपकी, स्वर्ण वर्णधारी।
प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव तुम हो जग अघहारी।। ओम् जय०
वीतराग निर्ग्रथ भये तुम, तप कीना भारी।
वर्ष सहत तप के प्रभाव से मिली मुक्ति नारी।। ओम् जय०
गौमुख यक्ष यक्षी चक्रेश्वरी, तव मंगल गाये।
अक्षय तरु तल ध्यान लीन हो, तुम केवल पाये। ओम् जय०
माघ कृष्ण शुभ चतुर्दशी को हुए मुक्ति स्वामी।
धन्य हुआ कैलाश शिखर प्रभु, तुम अन्तर्यामी। ओम् जय०
ऋषभ देव की आरती पढ़े सुने जो कोय।
दुख संकट सारे टरै, क्रम से शिव सुख होय।। ओम् जय०
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