तीर्थंकर भगवान अनन्तनाथ का जीवन परिचय
धातकीखंडद्वीप के पूर्व मेरू से उत्तर की ओर अरिष्टपुर नगर में पद्मरथ राजा राज्य करता था। किसी दिन उसने स्वयंप्रभ जिनेन्द्र के समीप जाकर वंदना-भक्ति आदि करके धर्मोपदेश सुना और विरक्त हो दीक्षा ले ली। ग्यारह अंगरूपी सागर का पारगामी होकर तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध किया। अन्त में सल्लेखना से मरण कर अच्युत स्वर्ग के पुष्पोत्तर विमान में इन्द्रपद प्राप्त किया।
केवल ज्ञान की प्राप्ति
छद्मस्थावस्था के दो वर्ष बीत जाने पर चैत्र कृष्ण अमावस्या के दिन केवलज्ञान उत्पन्न हो गया।
भगवान अनन्तनाथ का इतिहास
- भगवान का चिन्ह – उनका चिन्ह सेही है।
- जन्म स्थान – अयोध्या (उ.प्र.)
- जन्म कल्याणक – ज्येष्ठ कृ.१२
- केवल ज्ञान स्थान – चैत्र कृ. अमावस, सहेतुक वन
- दीक्षा स्थान – सहेतुक वन
- पिता – महाराजा सिहसेन
- माता – महारानी सुयशा
- देहवर्ण – तप्त स्वर्ण
- मोक्ष – चैत्र कृ. अमावस, सम्मेद शिखर पर्वत
- भगवान का वर्ण – क्षत्रिय (इश्वाकू वंश)
- लंबाई/ ऊंचाई- ५० धनुष (१५० मीटर)
- आयु – 30,00,000 पूर्व
- वृक्ष –पीपल वृक्ष
- यक्ष – पाताल
- यक्षिणी – अंकुशा
- प्रथम गणधर – श्री जय
- गणधरों की संख्या – 50
🙏 अनन्तनाथ का निर्वाण
अन्त में सम्मेदशिखर पर जाकर एक माह का योग निरोधकर छह हजार एक सौ मुनियों के साथ चैत्र कृष्ण अमावस्या के दिन परमपद को प्राप्त कर लिया।
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