तीर्थंकर भगवान धर्मनाथ का जीवन परिचय
पूर्व धातकीखंडद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में नदी के दक्षिण तट पर एक वत्स नाम का देश है, उसमें सुसीमा नाम का महानगर है। वहाँ पर राजा दशरथ राज्य करता था। एक बार वैशाख शुक्ला पूर्णिमा के दिन सब लोग उत्सव मना रहे थे उसी समय चन्द्रग्रहण पड़ा देखकर राजा दशरथ का मन भोगों से विरक्त हो गया। उसने दीक्षा लेकर ग्यारह अंगों का अध्ययन किया और तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध करके अन्त में सर्वार्थसिद्धि में अहमिन्द्र हो गया।
केवल ज्ञान की प्राप्ति
तदनन्तर छद्मस्थ अवस्था का एक वर्ष बीत जाने पर दीक्षावन में सप्तच्छद वृक्ष के नीचे पौष शुक्ल पूर्णिमा के दिन केवलज्ञान को प्राप्त हो गये।
भगवान धर्मनाथ का इतिहास
- भगवान का चिन्ह – उनका चिन्ह वज्रदंड है।
- जन्म स्थान – रत्नपुरी (जिला फैजाबाद)
- जन्म कल्याणक – माघ शु. १३
- केवल ज्ञान स्थान – पौष शु. १५, शालवन
- दीक्षा स्थान – शालवन
- पिता – महाराजा भानुराज
- माता – महारानी सुप्रभा
- देहवर्ण – तप्त स्वर्ण सदृश
- मोक्ष – ज्येष्ठ शु. ४, सम्मेद शिखर पर्वत
- भगवान का वर्ण – क्षत्रिय (इश्वाकू वंश)
- लंबाई/ ऊंचाई- ४५ धनुष (१३५ मीटर)
- आयु – २५,००,००० वर्ष
- वृक्ष – सप्तपर्ण
- यक्ष – किपुरुषदेव
- यक्षिणी – मानसी देवी
- प्रथम गणधर – श्री अरिष्टसेन
- गणधरों की संख्या – 43
🙏 धर्मनाथ का निर्वाण
अन्त में सम्मेदशिखर पर जाकर एक माह का योग निरोधकर छह हजार एक सौ मुनियों के साथ चैत्र कृष्ण अमावस्या के दिन परमपद को प्राप्त कर लिया।
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