जलाभिषेक वा प्रक्षाल-पाठ || Jalabhishek Path

Babhubali Bhagwan

जय-जय भगवंते सदा, मंगल मूल महान।वीतराग सर्वज्ञ प्रभु,नमौ जोरि जुगपान।। (ढाल मंगल की,छंद अडिल्ल और गीता) श्रीजिन जगमें ऐसो को बुधवंत जू। जो तुम गुण वरननि करि पावै अंत जू।।इंद्रादिक सुर चार ज्ञानधारी मुनी।कहि न सकै तुम गुणगण हे त्रिभुवनधनी।। अनुपम अमित तुम गुणनि-वारिधि,ज्यों अलोकाकाश है। किमि धरै हम उर कोषमें सो अकथ-गुण-मणि-राश है।पै निज … Read more

माघनन्दिमुनिकृताभिषेक-पाठ

Gomtesh bahubali

श्रीमन्नतामरशिरस्तट-रत्न-दीप्ति-तोयावभासि-चरणाम्बुज-युग्ममीशम् अर्हन्तमुन्नत-पद-प्रदमाभिनम्य, तन्मूर्तिषूद्यदभिषेक-विधिं करिष्ये ॥१॥अथ पौर्वाह्णिकदेव-वन्दनायां पूर्वाचार्यानुक्रमेण सकलकर्मक्षयार्थं भावपूजा- वन्दनास्तव-समेतं श्रीपञ्चगुरुभक्ति-पुरस्सरं कायोत्सर्गं करोम्यहम् ( यह पढ़कर नौ बार णमोकार मंत्र पढ़ें)याः कृत्रिमास्तदितराः प्रतिमा जिनस्य, संस्नापयन्ति पुरुहूत-मुखादयस्ताः । सद्भाव-लब्धि समयादि-निमित्तयोगात्, तत्रैवमुज्ज्वलधिया कुसुमं क्षिपामि ||२|| (यह पढ़कर थाली में पुष्पाञ्जलि छोड़कर अभिषेक की प्रतिज्ञा करें।) श्रीपीठक्लृप्ते विशदाक्षतौघैः, श्रीप्रस्तरे पूर्णशशाङ्क कल्पे । श्रीवर्तके चन्द्रमसीति वार्तां सत्यापयन्तीं श्रियमालिखामि ||३||ॐ … Read more

देव-स्तुति (अहो जगत-गुरु) || Dev Stuti

Samuchchay Puja

कविवर भूधरदास ढाल परमादी अहो जगत-गुरु! देव’ ! सुनिए अरज हमारी। तुम प्रभु दीनदयाल, मैं दुखिया संसारी ॥१॥ इस भव-वन में वादि, काल अनादि गमायो। भ्रभ्यो चहूँ गति माँहिं, सुख नहिं दुख बहु पायो ॥२॥ कर्म-महारिपु जोर, एक न कान करैं जी। मनमाने दुख देहिं, काहू सौं नाहिं डरैं जी ॥३॥ कबहुँ इतर निगोद, कबहूँ … Read more

Mangal Gaan || मंगल गान(आचार्य श्री विधासागर द्वारा रचित)

Acharya Shri Vidhya Sagar Ji Maharaj

मंगल गान (आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी द्वारा रचित) हे ! शान्त सन्त अरहन्त अनन्त ज्ञाता, हे ! शुद्ध-बुद्ध जिन सिद्ध अबद्ध धाता। आचार्यवर्य उवझाय सुसाधु सिन्धु, मैं बार-बार तुम पाद – पयोज बन्दूँ ।। १॥ है मूलमंत्र नवकार सुखी बनाता, जो भी पढ़े विनय से अघ को मिटाता। है आद्य मंगल यही सब मंगलों … Read more

दर्शन पच्चीसी(तुम निरखत) || Darshan Pacchisi

दर्शन - पच्चीसी (तुम निरखत)

तुम निरखत मोकों मिली, मेरी सम्पति आज। कहाँ चक्रवति-संपदा कहाँ स्वर्ग-साम्राज ॥१॥ तुम वन्दत जिनदेव जी, नित नव मंगल होय। विघ्न कोटि ततछिन टरैं, लहहि सुजस सब लोय ॥२॥ तुम जाने बिन नाथ जी, एक स्वास के माँहि। जन्म-मरण अठदस किये, साता पाई नाहि ॥३॥ आप बिना पूजत लहे, दुःख नरक के बीच। भूख प्यास … Read more

दर्शन-स्तुति (प्रभु पतित-पावन) || Darshan Stuti

Samuchchay Puja

कविवर बुधजन प्रभु पतित-पावन मैं अपावन चरन आयो सरन जी, यों विरद आप निहार स्वामी मेंट जामन मरन जी। तुम ना पिछान्यो आन मान्यो देव विविध प्रकार जी, या बुद्धि सेती निज न जान्यो भ्रम गिन्यो हितकार जी ॥१॥ भव-विकट-वन में करम वैरी ज्ञान-धन मेरो हर्यो, तब इष्ट भूल्यो भ्रष्ट होय अनिष्ट गति धरतो फिर्यो … Read more

दर्शन पाठ(दर्शनं देवदेवस्य) || Darshan Paath Sanskrit

दर्शनं देवदेवस्य दर्शनं पापनाशनम्

दर्शनं  देवदेवस्य  दर्शनं  पापनाशनम् दर्शनं स्वर्गसोपानं दर्शनं मोक्षसाधनम् ||१|| दर्शनेन  जिनेन्द्राणां  साधूनां  वन्दनेन च। न चिरं तिष्ठते पापं, छिद्रहस्ते यथोदकम् ॥२॥ वीतराग  मुखं  दृष्ट्वा,  पद्म-राग-  समप्रभम्। जन्म-जन्म कृतं पापं, दर्शनेन विनश्यति ||३|| दर्शनं  जिनसूर्यस्य,  संसारध्वान्त- नाशनम्। बोधनं चित्तपद्मस्य, समस्तार्थ- प्रकाशनम् ||४|| दर्शनं  जिनचन्द्रस्य,  सद्धर्मामृत- वर्षणम्। जन्मदाह विनाशाय, वर्धनं सुखवारिधेः ॥५॥ जीवादितत्त्वप्रतिपादकाय, सम्यक्त्वमुख्याष्ट-गुणार्णवाय’। प्रशान्तरूपाय दिगम्बराय, देवाधिदेवाय … Read more

दर्शन – स्तुति (अति पुण्य) || Darshan Stuti

Samuchchay Puja

सखी अति पुण्य उदय मम आया, प्रभु तुमरा दर्शन पाया। अब तक तुमको बिन जाने, दुख पाये निज गुण हाने। हरिगीतिका पाये अनन्ते दुःख अब तक, जगत को निज जानकर। सर्वज्ञ भाषित जगत हितकर, धर्म नहिं पहिचान कर॥ भव बंधकारक सुख प्रहारक, विषय में सुख मानकर। निज पर विवेचक ज्ञानमय, सुखनिधि सुधा नहिं पानकर ॥१॥ … Read more

णमोकार महामन्त्र || Namokar Mantra in Hindi Meaning

णमोकार महामन्त्र namokar mantra

Namokar Mantra Hindi Meaning णमो अरहंताणं, णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं। णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं॥ ‘चत्तारि मंगलं अरहंत मंगलं सिद्ध मंगलं साहु मंगलं केवलिपण्णत्तो धम्मो मंगलं। चत्तारि लोगुत्तमा अरहंत लोगुत्तमा सिद्ध लोगुत्तमा साहु लोगुत्तमा केवलिपण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमो। चत्तारि सरणं पव्वज्जामि अरहंत सरणं पव्वज्जामि सिद्ध सरणं पव्वज्जामि साहु सरणं पव्वज्जामि केवलिपण्णत्तो धम्मो सरणं पव्वज्जामि। एसो पंच … Read more

दर्शन – स्तुति (सकल-ज्ञेय) || Darshan Stuti

Samuchchay Puja

कविवर दौलतराम दोहा सकल-ज्ञेय-ज्ञायक   तदपि   निजानन्द-रस-लीन। सो जिनेन्द्र जयवन्त नित, अरि-रज-रहस-विहीन॥ पद्धरि जय वीतराग-विज्ञान पूर, जय मोह तिमिर को हरन सूर। जय ज्ञान अनन्तानन्त धार, दृग-सुख-वीरज-मण्डित अपार॥ जय परम शान्त मुद्रा समेत, भविजन को निज अनुभूति हेत। भवि भागन बच-जोगे वशाय, तुम धुनि है सुनि विभ्रम नशाय॥ तुम गुण चिन्तत निज-पर-विवेक, प्रगटै, विघटैं आपद अनेक। … Read more