दर्शन-स्तुति (प्रभु पतित-पावन) || Darshan Stuti

कविवर बुधजन

प्रभु पतित-पावन मैं अपावन चरन आयो सरन जी,
यों विरद आप निहार स्वामी मेंट जामन मरन जी।
तुम ना पिछान्यो आन मान्यो देव विविध प्रकार जी,
या बुद्धि सेती निज न जान्यो भ्रम गिन्यो हितकार जी ॥१॥

भव-विकट-वन में करम वैरी ज्ञान-धन मेरो हर्यो,
तब इष्ट भूल्यो भ्रष्ट होय अनिष्ट गति धरतो फिर्यो ।
धन घड़ी यों धन दिवस यों ही धन जनम मेरो भयो,
अब भाग मेरो उदय आयो दरस प्रभु जी को लख लयो ॥२॥

छबि वीतरागी नगन मुद्रा दृष्टि नासा पै धरैं,
वसु प्रातिहार्य अनन्त गुणजुत कोटि रवि – छबि को हरैं ।
मिट गयो तिमिर मिथ्यात मेरो उदय रवि आतम भयो,
मो उर हरष ऐसो भयो मनु रंक चिन्तामणि लयो ||३||

मैं हाथ जोड़ नवाऊँ मस्तक वीनऊँ तुम चरन जी,
सर्वोत्कृष्ट त्रिलोक-पति जिन सुनहुँ तारन-तरन जी
जाचूँ नहीं सुर-वास पुनि नर-राज परिजन साथ जी,
‘बुध’ जाचहूँ तुव भक्ति भव-भव दीजिए शिवनाथ ! जी ॥४॥

इत्याशीर्वादः

*****

Note

Jinvani.in मे दिए गए सभी Prabhu Patit Pawanदर्शन स्तुति स्तोत्र, पुजाये और आरती जिनवाणी संग्रह के द्वारा लिखी गई है, यदि आप किसी प्रकार की त्रुटि या सुझाव देना चाहते है तो हमे Comment कर बता सकते है या फिर Swarn1508@gmail.com पर eMail के जरिए भी बता सकते है। 

Leave a Comment