तर्ज – सावन का महीना…
दुनिया से मैं हारी तो आई तेरे द्वार
यहां से जो मैं हारी कहां जाऊंगी भगवान (2)
सुख में प्रभुवर तेरी याद ना आई
दुख में प्रभुवर तुमसे प्रीत लगाई
सारा दोष है मेरा 2, मैं करती हूं स्वीकार
यहां से जो मैं हारी कहां जाऊंगी भगवान
दुनिया से मैं …
मेरा तो क्या है मैं तो दुनिया से हारा
तुझसे ही पूछेगा संसार ये सारा
डूब रही क्यों नैय्या 2, तेरे रहते खेवन हार
यहां से जो मैं हारी कहां जाऊंगी भगवान
दुनिया से मैं …
सबको सुनाया मैंने अपना फसाना
सब ने बताया प्रभुवर तेरा ठिकाना
तुमको मैंने माना 2, मात-पिता परिवार
यहां से जो मैं हारी कहां जाऊंगी भगवान
दुनिया से मैं …
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