श्री देव शास्त्र गुरु पूजा || Dev Shastra Guru Pooja

Dev Shastra Guru Pooja

Jain Pooja Dev Shastra Guru केवल-रवि किरणों से जिसका, सम्पूर्ण प्रकाशित है अन्तर, उस श्री जिनवाणी में होता, तत्त्वों का सुंदरतम दर्शन । सद्दर्शन-बोध-चरण-पथ पर, अविरल जो बढ़ते हैं मुनिगण, उन देव परम आगम गुरु को, शत शत वंदन शत शत वंदन ॥         ॐ ह्रीं श्री देव शाष्त्र गुरुसमूह अत्र अवतर … Read more

सिद्ध पूजा (भाषा) द्यानतराय || Siddha Puja

siddha puja bhasha

(पं. द्यानतराय) परमब्रह्म परमातमा, परमज्योति ‘परमेश । परम निरंजन परम शिव, नमो परम सिद्धेश ॥         ॐ ह्रीं सिद्धचक्राधिपते सिद्धपरमेष्ठिन् अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं सिद्धचक्राधिपते सिद्धपरमेष्ठिन् अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः । ॐ ह्रीं सिद्धचक्राधिपते सिद्धपरमेष्ठिन् अत्र मम सन्निहितो भव अष्टक (सोरठा) मोह तृषा दुख देइ, सो तुमने जीती … Read more

सिद्धपूजा (भावाष्टक) हीराचंद जी | SiddhaPuja Heerachand Ji

Siddhapuja hirachand

(अडिल्ल छन्द) अष्ट-करम करि नष्ट अष्ट-गुण पाय के, अष्टम-वसुधा माँहिं विराजे जाय के | ऐसे सिद्ध अनंत महंत मनाय के, संवौषट् आह्वान करूँ हरषाय के || ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं सिद्धपरमेष्ठिन्! अत्र अवतर! अवतर! संवौषट्! (इति आह्वाननम्) ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं सिद्धपरमेष्ठिन्! अत्र तिष्ठ! तिष्ठ! ठ:! ठ:! (इति स्थापनम्) ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं सिद्धपरमेष्ठिन्! अत्र … Read more

सिद्धपूजा (भावाष्टकम्) || SiddhaPuja

Bhavashtakam

निज-मनो-मणि-भाजनभारया शम-रसैक-सुधारसधारया । सकल-बोध-कला-रमणीयकं सहज – सिद्धमहं परिपूजये ॥ ॐ ह्रीं श्रीसिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्व० सहज-कर्म-कलङ्क-विनाशनै-रमल भाव- सुवासित-चन्दनैः । अनुपमान-गुणावलि-नायकं      सहज-सिद्धमहं परिपूजये ॥ ॐ ह्रीं श्रीसिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने भवातापविनाशनाय चन्दनं निर्व० सहज-भाव- सुनिर्मलतण्डुलैः सकलदोष- ‘विलास – विशोधनैः । अनुपरोध-सुबोध-निधानकं    सहज-सिद्धमहं    परिपूजये ॥ ॐ ह्रीं श्रीसिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्व. स्वाहा समयसार … Read more

सिद्धपूजा (द्रव्याष्टकम्) || SiddhaPuja

सिद्धपूजा (द्रव्याष्टकम्) siddhapuja

ऊर्ध्वाधरयुतं     सबिन्दु-सपरं,    ब्रह्मस्वरावेष्टितं, वर्गापूरित-दिग्गताम्बुजदलं, तत्सन्धि-तत्त्वान्वितम् । अन्तःपत्रतटेष्वनाहतयुतं,             ह्रींकारसंवेष्टितं, देवं   ध्यायति यः स मुक्तिसुभगो, वैरीभकण्ठीरवः ॥   ॐ ह्रीं श्रीसिद्धचक्राधिपते सिद्धपरमेष्ठिन् अत्र अवतर अवतर संवौषट्। ॐ ह्रीं श्रीसिद्धचक्राधिपते सिद्धपरमेष्ठिन् अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः । ॐ ह्रीं श्रीसिद्धचक्राधिपते सिद्धपरमेष्ठिन् अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् । अनुष्टुप् निरस्तकर्मसम्बन्धं सूक्ष्मं … Read more

लघु चैत्यभक्ति (वर्षेषु वर्षान्तरपर्वतेषु)

Acharya Shri Vidhya Sagar Ji Maharaj

इन्द्रवज्रा वर्षेषु वर्षान्तरपर्वतेषु, नन्दीश्वरे यानि च मन्दरेषु । यावन्ति चैत्यायतनानि लोके, सर्वाणि वन्दे जिनपुङ्गवानाम् ॥ मालिनी अवनितल-गतानां कृत्रिमाकृत्रिमाणां, वन-भवन-गतानां दिव्य-वैमानिकानाम्। इह मनुज – कृतानां देवराजार्चितानां जिनवर-निलयानां भावतोऽहं स्मरामि॥ शार्दूलविक्रीडितम् जम्बूधातकि- पुष्करार्ध-वसुधा क्षेत्रत्रये ये भवा – श्चन्द्राम्भोजशिखण्डिकण्ठकनक प्रावृड्घनाभा जिनाः। सम्यग्ज्ञान – चरित्र – लक्षणधरा, ‘दग्धाष्टकर्मेन्धनाः, भूतानागत-वर्तमानसमये, तेभ्यो जिनेभ्यो नमः॥ स्रग्धरा श्रीमन्मेरौ कुलाद्रौ, रजतगिरिवरे, शाल्मलौ जम्बुवृक्षे वक्षारे … Read more

बीस तीर्थंकर पूजा (दीप अढ़ाई मेरु) || Bees Tirthankar Puja

Samuchchay Puja

पं. द्यानतराय दीप अढ़ाई मेरु पन ‘अब तीर्थंकर बीस । तिन सबकी पूजा करूँ मन वच तन धरि शीस ॥ ॐ ह्रीं श्रीविद्यमानविंशतितीर्थङ्कराः ! अत्र अवतरत अवतरत संवौषट् । ॐ ह्रीं श्रीविद्यमानविंशतितीर्थङ्कराः ! अत्र तिष्ठत तिष्ठत ठः ठः । ॐ ह्रीं श्रीविद्यमानविंशतितीर्थङ्कराः ! अत्र मम सन्निहिता भवत भवत वषट् । रोला इन्द्र फणीन्द्र नरेन्द्र, वंद्य … Read more

देवशास्त्र गुरु पूजन(प्रथम देव अरहंत) || Dev Shastra Guru Pujan

devshastra guru pujan

पं. द्यानतराय अडिल्ल प्रथम देव अरहंत सुश्रुत सिद्धान्त जू गुरु निर्ग्रथ महंत मुकतिपुर-पंथ जू । तीन रतन जगमाँहिं सु “ये भवि ध्याइये, तिनकी भक्ति प्रसाद परम पद पाइये ॥ दोहा पूजों पद अरहंत के, पूजों गुरुपद सार । पूजों देवी सरस्वती, नित प्रति अष्ट प्रकार ।। ॐ ह्रीं श्रीदेव-शास्त्र-गुरुसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ … Read more

देव-स्तुति (अहो जगत-गुरु) || Dev Stuti

Samuchchay Puja

कविवर भूधरदास ढाल परमादी अहो जगत-गुरु! देव’ ! सुनिए अरज हमारी। तुम प्रभु दीनदयाल, मैं दुखिया संसारी ॥१॥ इस भव-वन में वादि, काल अनादि गमायो। भ्रभ्यो चहूँ गति माँहिं, सुख नहिं दुख बहु पायो ॥२॥ कर्म-महारिपु जोर, एक न कान करैं जी। मनमाने दुख देहिं, काहू सौं नाहिं डरैं जी ॥३॥ कबहुँ इतर निगोद, कबहूँ … Read more

दर्शन-स्तुति (प्रभु पतित-पावन) || Darshan Stuti

Samuchchay Puja

कविवर बुधजन प्रभु पतित-पावन मैं अपावन चरन आयो सरन जी, यों विरद आप निहार स्वामी मेंट जामन मरन जी। तुम ना पिछान्यो आन मान्यो देव विविध प्रकार जी, या बुद्धि सेती निज न जान्यो भ्रम गिन्यो हितकार जी ॥१॥ भव-विकट-वन में करम वैरी ज्ञान-धन मेरो हर्यो, तब इष्ट भूल्यो भ्रष्ट होय अनिष्ट गति धरतो फिर्यो … Read more