।। पार्श्वनाथाष्टकम् ।। Jain Parshvanath Ashtak

यह रहा पार्श्वनाथाष्टकम् (Parshvanathashtakam) – जो भगवान पार्श्वनाथ (24 में से 23वें तीर्थंकर) को समर्पित एक अत्यंत पवित्र जैन स्तोत्र है। यह स्तोत्र उनके गुणों का स्तवन करता है और भक्ति, शांति एवं मोक्ष की भावना जाग्रत करता है।

Parshvanath Ashtakam

“अरहंत नाम स्मरण विमुक्तिमार्ग द्योषकम्।
धरणेन्द्र चक्र फणधरं नमामि पार्श्व जिनवरम्॥”

हिंदी अर्थ:
जो अरिहंत (सर्वविजयी) भगवान का नाम स्मरण ही मोक्ष का मार्ग प्रकाशित कर देता है,
जिनके चरणों की सेवा में धर्म-रक्षक नागधरेन्द्र, चक्र और फणधारी (सर्प) सेवक रूप में हैं,
ऐसे भगवान पार्श्वनाथ जिनेन्द्र को मैं नमस्कार करता हूँ।

“विधाय लक्ष्मी सुखधरं भवाब्धिनीर शोषणं
धरणेन्द्र चक्र फणधरं नमामि पार्श्व जिनवरम्॥”

हिंदी अर्थ:
जो भगवान लक्ष्मी (समृद्धि) और सुख के दाता हैं, और संसार रूपी दुख-सागर को सुखा देने में समर्थ हैं,
जिनके चारों ओर धरणेन्द्र, चक्र तथा फणधारी सर्प सेवा में तत्पर रहते हैं,
ऐसे भगवान पार्श्वनाथ को मैं नमस्कार करता हूँ।

“वृहद्धृहस्पतेर्गुरुं तेइसवे तीर्थंकर।
अनीष्टघन प्रभंजनं नमामि पार्श्व जिनवरम्॥”

हिंदी अर्थ:
जो गुरुओं में महान, बृहस्पति जैसे ज्ञानी हैं, 23वें तीर्थंकर के रूप में प्रसिद्ध हैं,
जो सभी अशुभ और संकटों का नाश करते हैं,
ऐसे भगवान पार्श्वनाथ को मैं नमस्कार करता हूँ।

“महाविशाल अतिशय महाअखण्ड गुणधरं।
धरेन्द्र चक्र फणधरं नमामि पार्श्व जिनवरम्॥”

हिंदी अर्थ:
जो महाविशाल स्वरूप वाले, अद्भुत और निरंतर श्रेष्ठ गुणों से परिपूर्ण हैं,
जिनकी सेवा में धर्मरक्षक धरेन्द्र, चक्र और फणधारी सर्प रहते हैं,
ऐसे भगवान पार्श्वनाथ को मैं नमस्कार करता हूँ।

“प्रगाढ़ कर्म चूरणं कमठोपसर्ग भस्मनं।
धरेन्द्र चक्र फणधरं नमामि पार्श्व जिनवरम्॥”

हिंदी अर्थ:
जो भगवान गहरे और मजबूत कर्मों का विनाश करने वाले हैं,
जिन्होंने अपने तप से कमठ (दुष्ट असुर) के उत्पात को भस्म कर दिया था,
धरेन्द्र, चक्र और फणधारी की सेवा से युक्त उन पार्श्वनाथ जिनेन्द्र को नमस्कार करता हूँ।

“सुसाधुदेव वंदनं मनुष्य देव वंदनं।
धरेन्द्र चक्र फणधरं नमामि पार्श्व जिनवरम्॥”

हिंदी अर्थ:
जिनका सच्चे साधु, देवता तथा मनुष्यों द्वारा भी वंदन किया जाता है,
जिनके चरणों में धरेन्द्र, चक्र और फणधारी नाग सदा उपस्थित रहते हैं,
ऐसे भगवान पार्श्वनाथ को मैं नमस्कार करता हूँ।
अंतिम पंक्ति:

॥ इति श्री पार्श्वनाथाष्टकम् ॥

“वात्सल्य ऋषि मुनि श्री 108 साध्य सागर जी गुरुदेव ॐ साध्यम्”

हिंदी अर्थ:
इस स्तुति के रचयिता वात्सल्य भाव से युक्त मुनि श्री 108 साध्य सागर जी हैं, जो ‘ॐ साध्यम्’ (जिनेंद्र की साधना में लीन) के प्रतीक हैं।

पार्श्वनाथाष्टकम् के लाभ:

  • मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति मिलती है।
  • भगवान पार्श्वनाथ की कृपा से संकटों का नाश होता है।
  • यह स्तोत्र मोक्षमार्ग में स्थिरता लाता है।
  • प्रतिदिन पाठ करने से पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है।

निष्कर्ष

Jinvani.in मे दिए गए सभी  स्तोत्र, पुजाये और आरती जिनवाणी संग्रह के द्वारा लिखी गई है, यदि आप किसी प्रकार की त्रुटि या सुझाव देना चाहते है तो हमे Comment कर बता सकते है या फिर Swarn1508@gmail.com पर eMail के जरिए भी बता सकते है। 

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