रचियता – लालचन्द जी जैन (राकेश)
ॐ जय आदिनाथ बाबा, स्वामी आदिनाथ बाबा।
साँगानेर वाले बाबा की, देव करें सेवा।। ॐ जय…….
पिता प्रभु के नाभिराय हैं, मरुदेवी माता।
नगर अयोध्या जन्म लिया हैं, सुख वैभवदाता।। ॐ जय……..
पंचकल्याणक हुए आपके, सबको सुख दाई।
चतुर्थकाल की प्रतिमा है यह, मेरे मन भाई ।। ॐ जय……
वैसाख सुदि की तीज तिथि को, अतिशय दिखलाया।
गजरथ में प्रभु आये यहाँ पर, तब दर्शन पाया।। ॐ जय …….
संघी जी भगवानदास ने मंदिर बनवाया।
धर्म दिगम्बर अनुयायी थे, अक्षय थी माया।। ॐ जय…….
सात मंजिला मंदिर है यह, देव यहाँ आते।
पांच मंजिला भूमि भीतर, नागराज रहते।। ॐ जय……..
चार दिशा में चार जिनालय शोभा है न्यारी।
फेरी भीतर प्रतिमा बैठी, भक्तों को प्यारी।। ॐ जय …….
अतिशयकारी चौबीसी है, सुधा सिन्धु महिमा ।
इन्द्रशिरासन चौमुखी प्रतिमा, बहुत बड़ी गरिमा।। ॐ जय……
ऊँचे ऊँचे शिखरो वाला, बाबा का मंदिर।
वास्तुकला का कीर्तिमान है, कला बहुत सुन्दर।। ॐ जय……
तीन लोक के स्वामी प्रभु जी, तीन छत्र धारी।
कमलासन पर प्रभुजी बैठे, पद्मासन धारी।। ॐ जय …….
रत्नमयी भूगर्भ जिनालय, यक्ष करें रक्षा।
भक्तगणों की झोली भर दे, हमको दो भिक्षा।। ॐ जय…….
तीजे तल से प्रथम जिनालय, शान्ति सिन्धु लाये।
दूजा जिनालय चौथे तल से, सुधा गुरु लाये।। ॐ जय…….
पूज्य सुधासागर गुरुवर ने, अतिशय दिखलाये।
तेरी चमत्कार बाबा के अद्भुत, जग को बतलाये।। ॐ जय……
गुरूकृपा से हमने समझी, प्रभु माया।
तुम भी किरपा कर दो बाबा, चरण शरण आया।। ॐ जय ……
छत्र चढ़ाकर आरती करते, भक्तों की श्रद्धा।
दर्शन से इच्छित फल मिलता है मेरी श्रद्धा।। ॐजय…….
भूत – पलीतों के संकट सब, आरती से टलते।
दुख – दारिद्र मिटे भक्तों के सुख वैभव पाते।। ॐ जय……
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Note
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