Dev Shastra Guru Pooja

श्री कैलासगिरि पूजा || Shri Kailas Giri Pooja

रोला छन्द

श्री कैलाश पहाड़ जगत परधान कहा।
आदिनाथ भगवान जहां शिववास लहा है।
नागकुमार महाबाल व्याल आदि मुनिराई।
गये तिहिं गिरिसों मोक्ष थाप पूजों शिर नाई||

दोहा – श्री कैलाश पहाड़ सों आदिनाथ जिनदेव।
मुनी आदि जे शिव गये, थापि करों पद सेव॥
ॐ ह्रीं कैलाशपर्वततः मुक्तिपदप्राप्तश्री आदिनाथस्वामिन् वा नागकुमारादिमुनिसमूह ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं । अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं । अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणं।

अष्टक (पद्धरि छन्द मात्रा १६ )
नद गङ्ग सु निर्मल नीर लाय, करि प्रासुक मरुकुम्भन भराय।
जिन आदि मोक्ष कैलाश थान, मुन्यादि पाद जजुं जोरि पानि॥
ॐ ह्रीं कैलाशपर्वततः मुक्तिपदप्राप्तश्री आदिनाथस्वामिने नागकुमारादिमुनिभ्यश्च जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ।

मलयागिरि चन्दन को घसाय, कुंकुम युत मरुकुंभन भराय।
जिन आदि मोक्ष कैलाश थान, मुन्यादि पाद जजुं जोरि पानि॥
ॐ ह्रीं कैलाशपर्वततः मुक्तिपदप्राप्तश्री आदिनाथस्वामिने नागकुमारादिमुनिभ्यश्च भवातापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।

झितवा कमोद वर शालि लाय, खण्डहीन धोय थारा भराय।
जिन आदि मोक्ष कैलाश थान, मुन्यादि पाद जजुं जोरि पानि॥
ॐ ह्रीं कैलाशपर्वततः मुक्तिपदप्राप्तश्री आदिनाथस्वामिने नागकुमारादिमुनिभ्यश्च अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।

सुबेल चमेली जुही लेय, पाटिल वारिज थारी भरेय।
जिन आदि मोक्ष कैलाश थान, मुन्यादि पाद जजुं जोरि पानि॥
ॐ ह्रीं कैलाशपर्वततः मुक्तिपदप्राप्तश्री आदिनाथस्वामिने नागकुमारादिमुनिभ्यश्च कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।

मोदक घेवर खाजे बनाय, गोंझा सुहाल भरि थाल लाय।
जिन आदि मोक्ष कैलाश थान, मुन्यादि पाद जजुं जोरि पानि॥
ॐ ह्रीं कैलाशपर्वततः मुक्तिपदप्राप्तश्री आदिनाथस्वामिने नागकुमारादिमुनिभ्यश्च क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।

घृत कपूर मणि के दीप जोय, तिनसे प्रकाश तम क्षीण होय।
जिन आदि मोक्ष कैलाश थान, मुन्यादि पाद जजुं जोरि पानि॥
ॐ ह्रीं कैलाशपर्वततः मुक्तिपदप्राप्तश्री आदिनाथस्वामिने नागकुमारादिमुनिभ्यश्च मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।

वर धूप दशांगी अग्नि धार, जस धूम घटा छावे अपार।
जिन आदि मोक्ष कैलाश थान, मुन्यादि पाद जजुं जोरि पानि॥
ॐ ह्रीं कैलाशपर्वततः मुक्तिपदप्राप्तश्री आदिनाथस्वामिने नागकुमारादिमुनिभ्यश्च अष्टकर्मविध्वंसनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।

फल चोच मोच नरियार जेय, दाडिम नारंग भर थाल लेय ।
जिन आदि मोक्ष कैलाश थान, मुन्यादि पाद जजुं जोरि पानि ॥
ॐ ह्रीं कैलाशपर्वततः मुक्तिपदप्राप्तश्री आदिनाथस्वामिने नागकुमारादिमुनिभ्यश्च मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा ।

जल आदिक आठों द्रव्य लेय, भरि स्वर्णथार अर्धहि करेय ।
जिन आदि मोक्ष कैलाश थान, मुन्यादि पाद जजुं जोरि पानि ॥
ॐ ह्रीं कैलाशपर्वततः मुक्तिपदप्राप्तश्री आदिनाथस्वामिने नागकुमारादिमुनिभ्यश्च अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

जयमाला
छन्द त्रिभंगी
कैलाश पहारा, जग उजियारा, जन शिव गाया, ध्यान धरो ।
वसु द्रव्यन लाई, तिहिं थल जाई, जिनगुण गाई, पूज करो ॥

(पद्धरि छन्द मात्रा १६ )
अयोध्यापुरी बहु शोभमान, है आदिनाथ जिन जन्म थान ।
भये भोग भूमि को अन्तजान, प्रभु कर्मभूमि रचना करान ॥

असि मसि कृषि वाणिज्य वृत्ति ज्ञान, पशु पालन बतलायो जनान ।
करि राज जगत सों है उदास, दे सुतहि कियो जा वन निवास ॥

तप धारत मनपर्यय लहाय, रिपु घाति नाश केवल लहाय ।
हरि आज्ञा सों धन देव आय, तिन समवसरण रचना कराय ॥

ता मध्य सुगन्ध-कुटी बनाय, मणि सिंहासन तापर दिपाय ।
ता ऊपर वारिज हेम मान, अन्तरीक्ष विराजै देव जान ॥

प्रभु वाणि खिरै वृष वृष्टि होय, सुनि-सुनि समझें सब जीव सोय ।
निज वैभवयुत भरतेश आय, है पूजो जिनपद शीष नाय ॥

हरि आन जजत जिन चरण कीन, करवे विहार हित विनय कीन ।
प्रभु विहरे आरज देश जान, कैलाश शैल द्वय ध्यान आन ॥

प्रभु कर्म अघाती घात कीन, पञ्चम गति स्वामी प्राप्त कीन ।
हरि आन चिता रचि दाह दीन, धरि क्षार शीश सुर गमन कीन ॥

ह्या सों ओरहुं मुनि सुजान, हनि कर्म लह्यो है मोक्षथान ।
गिरि को बेढ़े खातिक सुजान, अरु मानसरोवर झील मान ॥

तासों यात्रा है कठिन जान, नहिं सुलभ किसी दिशिसों बखान ।
है आठ सहस्र पैडी प्रमान, तासों अष्टापद नाम जान ॥

सुत कन्हईलाल भगवानदास, कर जोरि नमे थल शिव निवास ।
मांगत जिनवर मुनिवर दयाल, भव भ्रमण काट द्यो शिव बिठाल ||

घत्ता
आदीश्वर ध्यावे, भाव जगावे, पूज रचावे चावन सों ।
सो होय निरोगी, बहुसुख भोगी, पुण्य उपावे भावन सों ॥
ॐ ह्रीं कैलाशपर्वततः मुक्तिपदप्राप्तश्रीआदिनाथस्वामिने नागकुमारादिमुनिभ्यश्च अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।

अडिल्ल
जे पूजें कैलाश आदि जिनराय को,
पढ़ें पाठ बहुभांति सुभाव लगाय को ।
ते धन धान्यहि पुत्र पौत्र सम्पत्ति लहैं,
नर सुर सुखको भोगि अनन्त शिवपुर लहै ॥

इत्याशीर्वादः पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत्

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Note

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