पूजा की सामग्री
१. प्रासुक जल (कुंए या बोरिंग का जल आवश्यक मात्रा में एक बड़े बर्तन में, दोहरे छन्ने से छान कर, जिवाणि वापिस कुएं में डालें, छने पानी को गर्म करके पुनः ठंडा होने छोड़ दें| (पानी गर्म करने की सुविधा न होने पर लौंग डाल कर भी जल को प्रासुक किया जाता है )|
२. द्रव्य-बर्तन: प्रासुक जल से धुली एक थाली, दो कलश, दो छोटी चम्मचें, चन्दन कटोरी, एक सूखा छन्ना|
३. पूजा-बर्तन: प्रासुक जल से धुली दूसरी थाली, एक ठोना (आसिका), एक कटोरा, धूपदान (धुपाडा)|
४. चन्दन लेप (सिल पर अथवा खरड में केशर के कुछ रेशे भिगोएँ और चन्दन की लकड़ी से घिसने से बना लेप चन्दन-कटोरी में समेट लें)|
५. अक्षत (छान-बीन कर भली-भांति साफ़ किये हुए जीव-जंतु रहित अखंड चावल प्रासुक जल से धो लें)|
६. पुष्प ( तीन चौथाई अक्षत खरड/सिल पर डाल कर केसरिया रंग का बना लें)|
७. नैवेद्य (छोटी छोटी चिटकें प्रसुक जल से धो लें)|
८. दीप (उपरोक्त कुछ चिटकें खरड में डाल कर केशरिया रंग की कर लें)|
९. धूप (नारियल के सूखे गोले की छीलन का बारीक चूर्ण)|
१०. फल (छिलके वाले सूखे बादाम, लौंग, छोटी इलायची, कमल गट्टा, पूजा की सुपारी आदि प्रासुक जल से धो लें)|
११. अर्घ्य ( ऊपरोक्त आठों द्रव्यों के कुछ अंशों का मिश्रण)|
१२. जाप्य-माला |
१३.एक छन्ना शुद्धता बनाये रखने के लिए |
१४.पूजा पुस्तक, स्वाध्याय ग्रन्थ आदि: जैन पूजा-साहित्य-ग्रन्थ भण्डार के दर्शन कर, कायोत्सर्ग–पूर्वक याचना कर इन्हें उठाएं व विनय पूर्वक पूजा-स्थल पर निर्जन्तु व सूखा स्थान देख कर रखें |
—-पूजा विधि प्रारम्भ—-
—-मंगल विधान—-
पंच कल्याणक अर्घ्य
उदक-चंदन-तंदुल-पुष्पकैश्चरु-सुदीप-सुधूप-फलार्घ्यकैः |
धवल-मंगल-गान-रवाकुले जिनगृहे कल्याणकमहं यजे ||
पंचपरमेष्ठी का अर्घ्य
धवल-मंगल-गान-रवाकुले जिनगृहे जिननाथमहं यजे ||
ॐ ह्रीं श्रीअर्हंत-सिद्धाचार्योपाध्याय-सर्वसाधुभ्योऽर्घ्यंनिर्वपामीति स्वाहा |2|
—-पूजा प्रतिज्ञा पाठ—-
—-स्वस्ति मंगल विधान—-
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Note
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