समपदी चौपाई
अरिहंतों को नमन हमारा, सिद्ध चक्र का जय-जयकारा ।
आचार्यों को वंदन प्यारा, पाठक मुनि का अर्चन न्यारा
आह्वानन कर हृदय बिठाना, सन्निधि पाकर पूज रचाना।
णमोकार व्रत एक सहारा, पापों से मिलता छुटकारा
ओं ह्रीं णमोकारमंत्रस्थित –अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् इति आह्वाननम्! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् ! अत्र मम सन्निहितो भव-भव वषट् सन्निधीकरणम्!
लय- नंदीश्वर पूजन
आदर्श पंच गुरुराज, जल सम गुणकारी ।
अर्पित करते जल आज, भविजन हितकारी ॥
परमेष्ठी पन सुखकार शिव सुख साधक हैं ।
व्रत मंगलमय णमोकार, पाप विनाशक है ॥
ह्रीं णमोकारमंत्रस्थित अर्हदादिपंचपरमेष्ठिभ्यो नमः जलं निर्वपामीति स्वाहा।
तुम वीतराग हो कार्य, कारण हो मेरे।
चंदन से अर्चित आर्य, तव गुण हों मेरे॥
परमेष्ठी पन सुखकार, शिव सुख साधक हैं।
व्रत मंगलमय णमोकार, पाप विनाशक है।
ओं ह्रीं णमोकारमंत्रस्थित अर्हदादिपंचपरमेष्ठिभ्यः चंदनं निर्वपामीति स्वाहा ।
जिनके सुमरन से नव्य, पुण्य बढ़ाते हैं।
अक्षत से अर्चें भव्य, पाप घटाते हैं।।
परमेष्ठी पन सुखकार, शिव सुख साधक हैं।
व्रत मंगलमय णमोकार, पाप विनाशक है।
ओं ह्रीं णमोकारमंत्रस्थित अर्हदादिपंचपरमेष्ठिभ्यो अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ।
यह मंत्र पंच णमोकार पाप गलाता है।
पुष्पों से पूजूँ सार, पुण्य बढ़ाता है।।
परमेष्ठी पन सुखकार, शिव सुख साधक हैं।
व्रत मंगलमय णमोकार, पाप विनाशक है।।
ॐ ह्रीं णमोकारमंत्रस्थित – अर्हदादिपंचपरमेष्ठिभ्यः पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
पन गुरु प्रथमाक्षर मेल, शुभ ओंकार नमूँ।
छूटे भव भव की जेल, चरुधर क्षुधा शर्मौ॥
परमेष्ठी पन सुखकार, शिव सुख साधक हैं।
व्रत मंगलमय णमोकार, पाप विनाशक है।।
ओं ह्रीं णमोकारमंत्रस्थित – अर्हदादिपंचपरमेष्ठिभ्यो नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
मुनि पाठक शास्त्र प्रदीप, भ्रम तम दूर करें।
धरूँ आज चरण में दीप, हित भरपूर करें ॥
परमेष्ठी पन सुखकार, शिव सुख साधक हैं।
व्रत मंगलमय णमोकार, पाप विनाशक है।।
ओं ह्रीं णमोकारमंत्रस्थित अर्हदादिपंचपरमेष्ठिभ्यो नमः दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।
नहिं आदि अन्त जिनराज, नादि अनंत रहो।
विधि धूप दहूँ मैं आज, ज्ञान अनंत लहो।।
परमेष्ठी पन सुखकार, शिव सुख साधक हैं।
व्रत मंगलमय णमोकार, पाप विनाशक है।।
ओं ह्रीं णमोकारमंत्रस्थित अर्हदादिपंचपरमेष्ठिभ्यो नमः धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
जिनवर के नोसंसार, सिद्ध असंसारी।
रत्नत्रय से भवपार, फलता गुणभारी॥
परमेष्ठी पन सुखकार, शिव सुख साधक हैं।
व्रत मंगलमय णमोकार, पाप विनाशक है॥
ओं ह्रीं णमोकारमंत्रस्थित अर्हदादिपंचपरमेष्ठिभ्यो नमः फलं निर्वपामीति स्वाहा ।
करूँ पूजा अर्घ सम्हार, सौख्य अनर्घ मिले।
अघ संवर कर विधि झार, अतिशय पुण्य खिले॥
परमेष्ठी पन सुखकार, शिव सुख साधक हैं।
व्रत मंगलमय णमोकार, पाप विनाशक॥
ओं ह्रीं णमोकारमंत्रस्थित अर्हदादिपंचपरमेष्ठिभ्यो नमः अर्धं निर्वपामीति स्वाहा ।
दोहा
वीतरागता पा चुके, परमेष्ठी पन देव।
णमोकार में राजते हरते सभी कुटेव॥
ज्ञानोदय
अरहंतादिक परमेष्ठी के, व्रत की पूजा करना है।
वीतरागता के दर्पण में, आतम दर्शन करना है
वीतराग सर्वज्ञ हितंकर, तीन गुणों से शोभित हैं,
भव्य जीव जिन के दर्शन कर, निसर्गता से बोधित हैं।
समवसरण में अरहंतों के, हमको प्रवचन सुनना है,
अरहंतादिक परमेष्ठी के, व्रत की पूजा करना है ॥1॥
अष्ट कर्म के क्षय से पायी, अष्ट गुणों की फुलवारी,
सदा सर्वथा एक रूप ही, गुण अनंत महके भारी
एकमेक रहते इक थल में, उनका सुमरण करना है,
अरहंतादिक परमेष्ठी के, व्रत की पूजा करना है ||2||
श्रेष्ठ गुणों के ज्येष्ठ गुणों के, रहें गणीश्वर अधिकारी,
दीक्षा शिक्षा दंड प्रदाता, सहनशील समता धारी।
संयत मन वच तन हैं जिनके, उनकी पूजा करना है,
अरहंतादिक परमेष्ठी के, व्रत की पूजा करना है ॥3॥
घोर घोर अज्ञान तिमिर में, भटक रहे भवि सभ्यों को,
सम्यग्ज्ञान ज्योति देते हैं, उपाध्याय मुनि भव्यों को।
अघ तम से अब बचने हमको, ज्ञान दीप अनुसरणा है,
अरहंतादिक परमेष्ठी के व्रत की पूजा करना है ॥4॥
सर्व काल में सर्व देश में करें साधना इक जैसी,
सर्व साधु तब कहलाते हैं, मुद्रा जिनेन्द्र प्रभु तैसी ।
ऐसे रत्नत्रय साधक की, हमको सेवा करना है,
अरहंतादिक परमेष्ठी के व्रत की पूजा करना है ॥5॥
णमोकार व्रत की पैंतीसी पन परमेष्ठी शुद्धों की,
अरहंतों की सप्त सप्तमी, पंच पंचमी सिद्धों की।
आचार्यों की सप्त सप्तमी, सत सातें उवझायों की,
सर्व साधु व्रत की नौ चौदस, पूजा पूज्य निकायों की ॥6॥
अरहंतादिक परमेष्ठी के, व्रत की पूजा करना है ।
णमोकार व्रत के दर्पण में, आतम दर्शन करना है ॥
ओं ह्रीं णमोकारमंत्रस्थित अर्हदादिपंचपरमेष्ठिभ्यो नमः पूर्णार्थं निर्वपामीति स्वाहा।
पंच वाक्य ग्यारह सुपद, हैं अक्षर पैंतीस ।
मात्रा अठ्ठावन रहीं, ‘ए’ लघु गिन नत शीश ।।
णमोकार पद वंदना, करती पाप विनाश
विद्यासागर सूरि से, मृदुमति करे विकास॥
॥ इति शुभम् भूयात् ॥
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