Uttam Kshama Dharma संसार में प्रत्येक मानव प्राणी के लिए क्षमा रूपी शास्त्र इतना आवश्यक है कि जिनके पास यह क्षमा नहीं होती वह मनुष्य संसार में अपने इष्ट कार्य की सिद्धि नहीं कर सकता है।
🕊️ उत्तम क्षमा धर्म का अर्थ
“क्षमा” का अर्थ है – माफ करना और मन से द्वेष, घृणा और क्रोध को निकाल देना।
“उत्तम क्षमा” वह अवस्था है, जब व्यक्ति अपने प्रति किए गए अपमान, पीड़ा या अन्याय को भी सहन कर लेता है और मन में बदले की भावना नहीं रखता।
क्षमा यह आत्मा का धर्म है, इसलिए जो मानव अपना कल्याण चाहते हैं, उन्हें हमेशा इस भावना की रक्षा करनी चाहिए। क्षमावान् मनुष्य का इस लोक और परलोक में कोई शत्रु नहीं होता है। क्षमा ही सर्व धर्म का सार है। क्षमा ही सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र रूप आत्मा का मुख्य सच्चा भंडार है।
क्रोध के क्षणों में क्षमा धारण करना ही सच्चा पुरुषार्थ है ।
🌼 उत्तम क्षमा का महत्व
- यह आत्मा की मृदुता, करुणा और सहनशीलता का प्रतीक है।
- क्षमा क्रोध की अग्नि को शांत करती है और मन को शांति देती है।
- आत्मा को निर्मल बनाकर मोक्ष मार्ग की ओर अग्रसर करती है।
- दूसरों को क्षमा करने से स्वयं के भीतर का अहंकार और द्वेष समाप्त होता है।
जिसके ह्रदय में अहंकार है वह दुखी है और जिसने अपने अहंकार को विसर्जित किया, मात्र वही सुखी है। उत्तम क्षमा : ‘उत्तम क्षमा जहां मन होई, अंतर बाहर शत्रु न कोई।’– अर्थात् उत्तम क्षमा को धारण करने से जीवन की समस्त कुटिलताएं समाप्त हो जाती हैं तथा मानव का समस्त प्राणी जगत से एक अनन्य मैत्रीभाव जागृत हो जाता है।
✅ उत्तम क्षमा धर्म के लाभ
- मानसिक शांति और संतुलन प्राप्त होता है।
- पारिवारिक, सामाजिक और आध्यात्मिक संबंध मधुर होते हैं।
- क्रोध, जलन, घृणा जैसी दुर्भावनाएं समाप्त होती हैं।
- आत्मिक बल और आध्यात्मिक उन्नति होती है।
- मोक्ष मार्ग के लिए आवश्यक सयंम और विवेक जागृत होता है।
जैन धर्म में क्षमावाणी पर्व के माध्यम से हम सभी से यह कहते हैं:
“मिच्छामि दुक्कड़म्” – यदि जाने-अनजाने में मुझसे कोई भूल हुई हो, तो कृपया क्षमा करें।
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