प्रातः कालीन स्तुति
वीतराग सर्वज्ञ हितङ्कर, भविजन की अब पूरी आश।
ज्ञानभानु का उदय करो मम, मिथ्यातम का होय विनाश।।
जीवों की हम करुणा पाल, झूठ वचन नहि कह कदा।
परधन कबहूँ न हरहूँ स्वामी, ब्रह्मचर्य व्रत रखें सदा।।
तृष्णा लोभ बढ़े न हमारा, तोष सुधा नित पिया करें।
श्रीजिन धर्म हमारा प्यारा, तिसकी सेवा किया करें।।
दूर भगावें बुरी रीतियाँ, सुखद रीति का करें प्रचार।
मेल मिलाप बढावे हम सब, धर्मोन्नति का करें प्रसार।।
सुख-दुख में हम समता धारें, रहें अचल जिमि सदा अटल।
न्यायमार्ग को लेश न त्यागें, वृद्धि करें निज आतमबल।।
अष्ट कर्म जो दुख हेतु हैं, तिनके क्षय का करें उपाय।
नाम आपका जपें निरन्तर, विघ्न शोक सब ही टल जाय।।
आतम शुद्ध हमारा होवे, पाप मैल नहिं चढ़े कदा।
शिक्षा की हो उन्नति हममें, धर्म ज्ञान हू बढ़े सदा।।
हाथ जोड़कर शीश नवावें, तुमको भविजन खड़े खड़े।
यह सब पूरो आश हमारी, चरण शरण में आन पड़े।।
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Note
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