दोहा
पार्श्वनाथ भगवान को मन मंदिर में ध्याय
लिखने का साहस करूं चालीसा सुखदाय ||१||
उन प्रभुवर श्री पार्श्व की, यक्षी मात महान
पद्मावति जी नाम है, सर्व गुणों की खान ||२||
जिनशासन की रक्षिका, के गुण वरणू आज
चालीसा विधिवत पढ़े , पूर्ण होय सब काज ||३||
चौपाई
जय जय जय पद्मावति माता, सच्चे मन से जो भी ध्याता ||१||
सर्व मनोरथ पूर्ण करें माँ ,विघ्न सभी भागें पल भर मा ||२||
जिनशासन की रक्षा करतीं,धर्मप्रभावन में रत रहतीं ||३||
श्री धरणेन्द्र देव की भार्या ,दिव्य है माता तेरी काया ||४||
एक बार श्री पार्श्वनाथ जी ,घोर तपस्या में रत तब ही ||५||
संवर देव देख प्रभुवर को,करे स्मरण पूर्व भवों को ||६||
घोरोपसर्ग किया प्रभुवर पर, आंधी,वर्षा ,फेके पत्थर ||७||
अविचल ध्यानारूढ़ प्रभूजी ,आसन कंपा माँ पद्मावति ||८||
यक्ष-यक्षिणी दोनों आये, प्रभु के ऊपर छत्र लगाए ||९||
कर में धारण कर पद्मावति , छत्र लगाएं श्री धरणेन्द्र जी ||१०||
प्रभु को केवलज्ञान हो गया,समवसरण निर्माण हो गया ||११||
संवरदेव बहुत लज्जित था,क्षमा-क्षमा कह द्ववार खड़ा था ||१२||
वह स्थल उस ही क्षण से बस, अहिच्छत्र कहलाए बन्धुवर ||१३||
श्री धरणेन्द्र देव पद्मावति, कहलाए प्प्रभु यक्ष-यक्षिणी ||१४||
बड़ी प्रसिद्धी उन दोनों की,उस स्थल पर भव्य मूरती ||१५||
जो विधिवत तुम पूजन करता,मनवांछा सब पूरी करता ||१६||
धन का इच्छुक धन को पाता , सुत अर्थी सुत पा हर्षाता |१७||
राज्य का अर्थी राज्य को पाए , लौकिक सुख सब ही मिल जाएँ ||१८||
हे माता !तुम सम्यग्द्रष्टी ,मुझ पर हो करूणा की वृष्टी ||१९||
प्रियकारिणि धरणेन्द्र देव की,भक्तों की सब पीड़ा हरतीं ||२०||
जहां धर्म पर संकट आवे, ध्यान आपका कष्ट मिटावे ||२१||
इसी हेतु अनुराग आपसे,जय जय जय स्याद्वाद की प्रगटे ||२२||
दीप दान करते विधान जो,पा निधान अरु तेज पुंज वो ||२३||
तुम भय संकट हरणी माता, नाम से तेरे मिटे असाता ||२४||
एक सहस अठ नाम जपे जो, पुत्र पौत्र धन-धान्य लहे वो ||२५||
कुंकुम अक्षत पुष्प चढ़ावे,कर श्रृंगार भक्त हर्षावे ||२६||
मस्तक पर प्रभु पार्श्व विराजें , ऐसी मूरत मन को साजे ||२७||
मुखमंडल पर दिव्य प्रभा है, नयनों में दिखती करुणा है ||२८||
वत्सलता तव उर से झलके,ब्रम्हण्डिनि सुखमंडिनि वर दे ||२९||
कभी होय जिनधर्म से डिगना,ले लेना माँ अपनी शरणा ||३०||
सम्यग्दर्शन नित दृढ होवे, जिह्वा पर प्रभु नाम ही होवे ||३१||
रोग,शोकअरु संकट टारो, हे माता इक बार निहारो ||३२||
तू माता मैं बालक तेरा, फिर क्यों कर मन होय अधीरा ||३३||
मेरी सारी बात सुधारो, पूर्ण मनोरथ विघ्न विदारो ||३४||
बड़ी आश ले द्वारे आया, सांसारिक दुःख से अकुलाया ||३५||
अगम अकथ है तेरी गाथा, गुण गाऊँ पर शब्द न पाता ||३६||
हे जगदम्बे !मंगलकरिणी ,शीलवती सब सुख की भरिणी ||३७||
चौबिस भुजायुक्त तव प्रतिमा, अतिशायी है दिव्य अनुपमा ||३८||
बार-बार मैं तुमको ध्याऊँ, दृढ सम्यक्त्व से शिवपुर जाऊं ||३९||
जब तक मोक्ष नहीं मैं पाऊँ,श्री जिनधर्म सदा उर लाऊँ ||४०||
दोहा
श्री पद्मावति मात की, भक्ति करे जो कोय
रोग,शोक,संकट टले , वांछा पूरण होय ||१||
कर विधान मंत्रादि अरु श्रंगारादिक ठाठ
जिनशासन की रक्षिका, नित देवें सौभाग्य ||२||
चालीसा चालीस दिन , पढ़े सुने जो प्राणि
‘इंदु‘ मात पद्मावति, भक्तन हित कल्याणि ||३||
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