Chandrapabhu

तीर्थंकर भगवान चंद्रप्रभु का जीवन परिचय

श्री चंद्रप्रभु(Chandrapabhu) भगवान जैन धर्म के २४ तीर्थकरो में से वर्तमान काल के आठवें तीर्थंकर है। श्री चंदा प्रभु भगवान का गर्भ कल्याणक चैत्र कृष्णा पंचमी को ज्येष्ठा नक्षत्र में, चंद्र प्रभु का जन्म चन्द्रपुर नगर के राजपरिवार में पौष कृष्णा ग्यारस को अनुराधा नक्षत्र में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री महासेन राजा और माता का नाम श्रीमती लक्ष्मण देवी था। चंद्र प्रभु का चिह्न चन्द्रमा है। श्री चंद्र प्रभु भगवान का जन्म इक्ष्वाकु वंश में हुआ। श्री चंद्र प्रभु भगवान के शरीर का वर्ण चन्द्रमा के समान श्वेत है, श्री चंद्र प्रभु भगवान के शरीर की ऊंचाई एक सौ पचास धनुष। 

श्री चंद्र प्रभु भगवान की आयु दश लाख वर्ष पूर्व की थी। श्री चंद्र प्रभु भगवान का कुमार काल ढाई लाख वर्ष पूर्व का तथा श्री चंदा प्रभु भगवान का राज्य काल साढ़े छह लाख वर्ष पूर्व 24 पूर्वांग। श्री चंद्र प्रभु भगवान के वैराग्य का कारण अध्रुवादि भावनाओं के चिंतवन करने से हुआ।श्री चंदा प्रभु भगवान का दीक्षा कल्याणक पौष कृष्णा गयारस को हुआ। श्री चंद्र प्रभु भगवान की पूर्व पर्याय का नाम राजा श्री श्रीषेण था। श्री श्रीषेण सुगंध देश के राजा थे। श्री श्रीषेण श्रीपुर नाम नगर के राजा थे पूर्व पूष्करार्ध द्वीप में सीता नदी के उत्तर तट पर सुगंधा देश के आर्यखंड में श्रीपुर नगर है।

केवल ज्ञान की प्राप्ति

तीन माह का छद्मस्थ काल व्यतीत कर भगवान दीक्षावन में नागवृक्ष के नीचे फाल्गुन कृष्ण सप्तमी के दिन केवलज्ञान को प्राप्त हो गये।

भगवान चंद्रप्रभु का इतिहास

  • भगवान का चिन्ह – उनका चिन्ह चन्द्रमा है।
  • जन्म स्थान – चन्द्रपुरी(जिला-बनारस)
  • जन्म कल्याणक – पौष कृ. ११
  • केवल ज्ञान स्थान –फाल्गुन कृ.७
  • दीक्षा स्थान –सर्वर्तुकवन
  • पिता –महाराजा महासेन
  • माता –महारानी लक्ष्मणा
  • देहवर्ण –सफ़ेद
  • मोक्ष – फाल्गुन शु. ७, सम्मेद शिखर पर्वत
  • भगवान का वर्ण – क्षत्रिय (इश्वाकू वंश)
  • लंबाई/ ऊंचाई- १५० धनुष (४५० मीटर)
  • आयु –१०,००,००० पूर्व
  • वृक्ष –नागवृक्ष
  • यक्ष –विजयदेव
  • यक्षिणी –ज्वालामालिनी देवी
  • प्रथम गणधर –श्री श्रीदत्त
  • गणधरों की संख्या – 93

🙏 चंद्रप्रभु का निर्वाण

ये चन्द्रप्रभ भगवान समस्त आर्य देशों में विहार कर धर्म की प्रवृत्ति करते हुए सम्मेदशिखर पर पहुँचे। एक माह तक प्रतिमायोग से स्थित होकर फाल्गुन शुक्ला सप्तमी के दिन ज्येष्ठा नक्षत्र में सायंकाल के समय शुक्लध्यान के द्वारा सर्वकर्म को नष्ट कर सिद्धपद को प्राप्त हो गये।

*****

Note

Jinvani.in मे दिए गए सभी स्तोत्र, पुजाये और आरती जिनवाणी संग्रह के द्वारा लिखी गई है, यदि आप किसी प्रकार की त्रुटि या सुझाव देना चाहते है तो हमे Comment कर बता सकते है या फिर Swarn1508@gmail.com पर eMail के जरिए भी बता सकते है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here