भगवान वासुपूज्य(Vasupujya)

तीर्थंकर भगवान वासुपूज्य का जीवन परिचय

इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में चम्पानगर में ‘अंग’ नाम का देश है जिसका राजा वसुपूज्य(Vasupujya) था और रानी जयावती थी। आषाढ़ कृष्ण षष्ठी के दिन रानी ने पूर्वोक्त इन्द्र को गर्भ में धारण किया और फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी के दिन पुण्यशाली पुत्र को उत्पन्न किया। इन्द्र ने जन्म उत्सव करके पुत्र का ‘वासुपूज्य’ नाम रखा। जब कुमार काल के अठारह लाख वर्ष बीत गये, तब संसार से विरक्त होकर भगवान जगत के यथार्थस्वरूप का विचार करने लगे।

केवल ज्ञान की प्राप्ति

छद्मस्थ अवस्था का एक वर्ष बीत जाने पर भगवान ने कदम्ब वृक्ष के नीचे बैठकर माघ शुक्ल द्वितीया के दिन सायंकाल में केवलज्ञान को प्राप्त कर लिया।

भगवान वासुपूज्य का इतिहास

  • भगवान का चिन्ह – उनका चिन्ह भैंसा है।
  • जन्म स्थान – चम्पापुर
  • जन्म कल्याणक – फाल्गुन कृष्णा १४, चम्पापुर
  • केवल ज्ञान स्थान – चम्पापुर मनोहर वन
  • दीक्षा स्थान – चम्पापुर मनोहर वन
  • पिता – महाराजा वसुपूज्य
  • माता – महारानी जयावती
  • देहवर्ण – पद्मरागमणि सदृश
  • मोक्ष – भाद्रपद शु.१४,चंपापुर (मंदारगिरि)
  • भगवान का वर्ण – क्षत्रिय (इश्वाकू वंश)
  • लंबाई/ ऊंचाई- 70 धनुष
  • आयु – ७२ लाख वर्ष
  • वृक्ष – कदंब वृक्ष
  • यक्ष – षण्णमुख यक्ष
  • यक्षिणी – गंधारी देवी
  • प्रथम गणधर – श्री धर्म
  • गणधरों की संख्या – 66

🙏 वासुपूज्य का निर्वाण

भगवान बहुत समय तक आर्यखंड में विहार कर चम्पानगरी में आकर एक वर्ष तक रहे। जब आयु में एक माह शेष रह गया, तब योग निरोध कर रजतमालिका नामक नदी के किनारे की भूमि पर वर्तमान चम्पापुरी नगरी में स्थित मन्दारगिरि के शिखर को सुशोभित करने वाले मनोहर उद्यान में पर्यंकासन से स्थित होकर भाद्रपद शुक्ला चतुर्दशी के दिन चौरानवे मुनियों के साथ मुक्ति को प्राप्त हुए।

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Note

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