Bhagwan Sheetalnath

तीर्थंकर भगवान शीतलनाथ का जीवन परिचय

पुष्करवरद्वीप के पूर्वार्ध भाग में मेरू पर्वत के पूर्व विदेह में सीता नदी के दक्षिण तट पर ‘वत्स’ नाम का एक देश है, उसके सुसीमा नगर में पद्मगुल्म नाम का राजा रहता था। किसी समय बसन्त ऋतु की शोभा समाप्त होने के बाद राजा को वैराग्य हो गया और आनन्द नामक मुनिराज के पास दीक्षा लेकर विपाकसूत्र तक अंगों का अध्ययन किया, तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध करके आरण नामक स्वर्ग में इन्द्र हो गया।

इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में मलयदेश के भद्रपुर नगर का स्वामी दृढ़रथ राज्य करता था, उनकी महारानी का नाम सुनन्दा था। रानी सुनन्दा ने चैत्र कृष्णा अष्टमी के दिन उस आरणेन्द्र को गर्भ में धारण किया एवं माघ शुक्ल द्वादशी के दिन भगवान शीतलनाथ(Sheetalnath) को जन्म दिया।

केवल ज्ञान की प्राप्ति

अनन्तर छद्मस्थ अवस्था के तीन वर्ष बिताकर पौष कृष्ण चतुर्दशी के दिन बेल वृक्ष के नीचे केवलज्ञान को प्राप्त कर लिया।

भगवान शीतलनाथ का इतिहास

  • भगवान का चिन्ह – उनका चिन्ह कल्पवृक्ष है।
  • अन्य नाम – शीतलनाथ जिन
  • जन्म स्थान –भद्रपुरी
  • जन्म कल्याणक – माघ कृ. १२
  • केवल ज्ञान स्थान – सहेतुक वन
  • दीक्षा स्थान – सहेतुक वन
  • पिता – महाराजा दृढ़रथ
  • माता – महारानी सुनन्दा
  • देहवर्ण – तप्त स्वर्ण
  • मोक्ष – आश्विन शु. ८, सम्मेद शिखर पर्वत
  • भगवान का वर्ण – क्षत्रिय (इश्वाकू वंश)
  • लंबाई/ ऊंचाई- 90 धनुष (२७० मीटर)
  • आयु – 1,००,००० पूर्व
  • वृक्ष – बेलवृक्ष
  • यक्ष – ब्रह्मेश्वर देव
  • यक्षिणी – सुतारा
  • प्रथम गणधर – श्री अनगार 
  • गणधरों की संख्या – 81

🙏 शीतलनाथ का निर्वाण

अन्त में सम्मेदशिखर पहुँचकर एक माह का योग निरोध कर आश्विन शुक्ला अष्टमी के दिन कर्म शत्रुओं को नष्ट कर मुक्तिपद को प्राप्त हो गये।

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Note

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