भगवान मेरी नैया, उस पार लगा देना – Jain Bhajan

“भगवान मेरी नैया, उस पार लगा देना” एक अत्यंत भावपूर्ण और आत्मा को स्पर्श करने वाला जैन भजन है, जो जीवन की अनिश्चितताओं, संघर्षों और मोह-माया से मुक्ति की कामना को दर्शाता है। यह भजन परमात्मा से एक भक्त की प्रार्थना है कि वह उसे संसार-सागर से पार कर मोक्ष के परम धाम तक पहुँचा दे।

Jain Bhajan जैन दर्शन में आत्मा की शुद्धि, अहिंसा और मोक्ष की प्राप्ति को जीवन का अंतिम लक्ष्य माना गया है, और यह भजन उन्हीं भावनाओं का सजीव प्रतिबिंब है। इस लेख के माध्यम से हम इस भजन के शब्दों की गहराई, उसके भावार्थ और आध्यात्मिक संदेश को समझने का प्रयास करेंगे। यह रचना न केवल संगीतात्मक रूप से मधुर है, बल्कि हर जैन श्रद्धालु के हृदय में एक गूढ़ आत्मिक चेतना का संचार करती है।

भगवान मेरी नैया,
उस पार लगा देना,
अब तक तो निभाया है,
आगे भी निभा देना।।



हम दीन दुखी निर्बल,

नित नाम रहे प्रतिपल,
यह सोच दरश दोगे,
प्रभु आज नही तो कल,
जो बाग़ लगाया है,
फूलों से सजा देना,
भगवान मेरी नईया,
उस पार लगा देना,
अब तक तो निभाया है,
आगे भी निभा देना।।



तुम शांति सुधाकर हो,

तुम ज्ञान दिवाकर हो,
मम हँस चुगे मोती,
तुम मान सरोवर हो,
दो बूंद सुधारस की,
हमको भी पिला देना,
भगवान मेरी नईया,
उस पार लगा देना,
अब तक तो निभाया है,
आगे भी निभा देना।।



रोकोगे भला कबतक,

दर्शन को मुझे तुमसे,
चरणों से लिपट जाऊं,
वृक्षों से लता जैसे,
अब द्वार खड़ी तेरे,
मुझे राह दिखा देना,
भगवान मेरी नईया,
उस पार लगा देना,
अब तक तो निभाया है,
आगे भी निभा देना।।



मजधार पड़ी नैया,

डगमग डोले भव में,
आओ त्रिशला नंदन,
हम ध्यान धरे मन में,
अब ‘तनवर’ करे विनती,
मुझे अपना बना लेना,
भगवान मेरी नईया,
उस पार लगा देना,
अब तक तो निभाया है,
आगे भी निभा देना।।



भगवान मेरी नैया,

उस पार लगा देना,
अब तक तो निभाया है,
आगे भी निभा देना।।

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Note

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