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तीर्थंकर भगवान पुष्पदंतनाथ का जीवन परिचय

तीर्थंकर सुविधिनाथ, जो पुष्पदन्त(Puphpdant) के नाम से भी जाने जाते हैं, वर्तमान काल के 9वें तीर्थंकर है। इनका चिन्ह ‘मगर’ हैं। किसी दिन भूतहित जिनराज की वंदना करके धर्मोपदेश सुनकर विरक्तमना राजा दीक्षित हो गया। ग्यारह अंगरूपी समुद्र का पारगामी होकर सोलहकारण भावनाओं से तीर्थंकर प्रकृति का बंध कर लिया और समाधिमरण के प्रभाव से प्राणत स्वर्ग का इन्द्र हो गया। पंचकल्याणक वैभव-इस जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र की काकन्दी नगरी में इक्ष्वाकुवंशीय काश्यप गोत्रीय सुग्रीव नाम का क्षत्रिय राजा था, उनकी जयरामा नाम की पट्टरानी थी।

उन्होंने फाल्गुन कृष्ण नवमी के दिन ‘प्राणतेन्द्र’ को गर्भ में धारण किया और मार्गशीर्ष शुक्ला प्रतिपदा के दिन पुत्र को जन्म दिया। इन्द्र ने बालक का नाम ‘पुष्पदन्त’ रखा। पुष्पदन्तनाथ राज्य करते हुए एक दिन उल्कापात से विरक्ति को प्राप्त हुए तभी लौकान्तिक देवों से स्तुत्य भगवान इन्द्र के द्वारा लाई गई ‘सूर्यप्रभा’ पालकी में बैठकर मगसिर सुदी प्रतिपदा को दीक्षित हो गये। शैलपुर नगर के पुष्पमित्र राजा ने भगवान को प्रथम आहारदान दिया था।

केवल ज्ञान की प्राप्ति

छद्मस्थ अवस्था के चार वर्ष के बाद नागवृक्ष के नीचे विराजमान भगवान को कार्तिक शुक्ल द्वितीया के दिन केवलज्ञान प्राप्त हो गया। आर्यदेश में विहार कर धर्मोपदेश देते हुए भगवान अन्त में सम्मेदशिखर पहुँचकर भाद्रपद शुक्ला अष्टमी के दिन सर्व कर्म से मुक्ति को प्राप्त हो गए।

भगवान चंद्रप्रभु का इतिहास

  • भगवान का चिन्ह – उनका चिन्ह मगर है।
  • अन्य नाम – सुविधिनाथ
  • जन्म स्थान –काकन्दी (उत्तर प्रदेश)
  • जन्म कल्याणक – मगसिर शु.१
  • केवल ज्ञान स्थान – पुष्पकवन
  • दीक्षा स्थान – पुष्पकवन
  • पिता – महाराजा सुग्रीव
  • माता – महारानी जयरामा
  • देहवर्ण – सफ़ेद
  • मोक्ष – भाद्रपद शु.८, सम्मेद शिखर पर्वत
  • भगवान का वर्ण – क्षत्रिय (इश्वाकू वंश)
  • लंबाई/ ऊंचाई- १०० धनुष (३०० मीटर)
  • आयु – २,००,००० पूर्व
  • वृक्ष –नागवृक्ष
  • यक्ष –अजित देव
  • यक्षिणी –सुतारा
  • प्रथम गणधर –श्री विदर्भ
  • गणधरों की संख्या – 88

🙏 पुष्पदंतनाथ का निर्वाण

आर्यदेश में विहार कर धर्मोपदेश देते हुए भगवान अन्त में सम्मेदशिखर पहुँचकर भाद्रपद शुक्ला अष्टमी के दिन सर्व कर्म से मुक्ति को प्राप्त हो गए।

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Note

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