“भक्ति बेकरार है, आनंद अपार है” एक भावपूर्ण जैन आरती है, जो भक्त के हृदय में उमड़ती गहन श्रद्धा और प्रेम की अभिव्यक्ति है। इस आरती में साधक प्रभु के चरणों में अपनी भक्ति और समर्पण अर्पित करते हुए अनुभव करता है कि प्रभु के सान्निध्य से मन में अद्भुत आनंद और शांति उत्पन्न होती है।
इस आरती में प्रभु के प्रति गहराई से जुड़ने की तड़प, श्रद्धा, और परम आनंद के भाव झलकते हैं। हर पंक्ति में साधना, स्नेह, विनय और अहोभाव है, जो हमें सांसारिक मोह से हटाकर प्रभु के चरणों में ले जाता है।
यह आरती केवल शब्द नहीं, बल्कि हृदय से निकली वह प्रार्थना है, जिसमें प्रभु के दर्शन से आत्मा में परम शांति, परमानंद और सच्चे सुख का अनुभव होता है।
भक्ति बेकरार है आनंद अपार है, आजा प्रभु पारस तेरा, जय जय जय जय कार है !
मंगल आरती लेकर स्वामी, आया तेरे द्वार जी,
दर्शन देना पार्श्वप्रभु जी, होवे आतम ज्ञान जी, भक्ति बेकरार है….
चंदा देखे, सूरज देखे और देखे तारागन जी,
तुम सम ज्ञान ज्योति ना देखे, हे पारस परमेश जी..भक्ति बेकरार है….
देव सभी दुनिया में देखे, देखे देश विदेश जी,
तुम सम सच्चा देव ना देखा, हे पारस परमेश जी…भक्ति बेकरार है….
यह तन मेरा एक दिन चेतन मिटटी में मिल जाएगा,
अर्पण करदू पारस चरण में, तू पारस बन जाएगा…भक्ति बेकरार है….
पारस प्रभु का द्वार है, भक्ति से भवपार है…
पटेरिया जी में जिन मंदिर की महिमा अपरम्पार है….भक्ति बेकरार है…

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Note
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Swarn Jain
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