Jinvani Stuti जिनवाणी स्तुति
जिनवाणी स्तुति जैन धर्म की पवित्र वाणी के प्रति श्रद्धा और भक्ति प्रकट करने का माध्यम है। इसमें जिनवाणी को […]
स्तुति अक्सर धार्मिक अथवा आध्यात्मिक सन्दर्भ में भगवान, देवी-देवताओं, गुरु, या पवित्र वस्तु के साथ की जाती है और धार्मिक पूजा और आदर के भाव से की जाती है।
जिनवाणी स्तुति जैन धर्म की पवित्र वाणी के प्रति श्रद्धा और भक्ति प्रकट करने का माध्यम है। इसमें जिनवाणी को […]
पारसनाथ स्तुति जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ के प्रति श्रद्धा और भक्ति प्रकट करने वाला एक पवित्र स्तोत्र
पूज्य आर्यिका श्री विज्ञानमति माताजी कृत (दोहा) पूज्य बड़े बाबा तुम्हें, कोटि-कोटि परणाम। थुति करता हूँ चाव से, मिट जावे
श्रीसिद्धभक्ति अथ पौर्वाह्निक (अपराह्निक) आचार्य-वन्दना-क्रियायां पूर्वाचार्यानुक्रमेण, सकलकर्मक्षयार्थं भाव-पूजा-वन्दना-स्तव-समेतं श्रीसिद्धभक्तिकायोत्सर्गं कुर्वेऽहम्। (९ बार णमोकार ) सम्मत्त-णाण-दंसण-वीरिय-सुहुमं तहेव अवगहणं। अगुरुलहु-मव्वावाहं, अ_गुणा होंति
ॐ नमः सिद्धेभ्यः| ॐ नमः सिद्धेभ्यः| ॐ नमः सिद्धेभ्यः|चिदानन्दैकरुपाय जिनाय परमात्मने|परमात्मप्रकाशाय नित्यं सिद्धात्मने नमः|| अर्थ – उन श्री जिनेन्द्र परमात्मा
(कवि जौहरिलाल) वंदौं पाँचों परम गुरु, चौबीसों जिनराज। करूँ शुद्ध आलोचना, शुद्धिकरण के काज॥१॥ सुनिये जिन अरज हमारी, हम दोष
परमर्षि स्वस्ति मंगल पाठ (प्रत्येक श्लोक के बाद पुष्प क्षेपण करें ) (उपजातिच्छन्दः) नित्याप्रकम्पाद्भुतकेवलौघाः, स्फुरन्मनःपर्ययशुद्धबोधाः दिव्यावधि-ज्ञानबलप्रबोधाः, स्वस्ति क्रियासुः परमर्षयो नः॥१॥
ओं ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं वं मं हं सं तं पं वंवं मंमं हंहं संसं तंतं पंपं झंझं झ्वीं
इह विधि ठाडो होय के, प्रथम पढ़ै जो पाठ; धन्य जिनेश्वर देव तुम, नाशे कर्म जु आठ. |1| अनंत चतुष्टय