श्री गिरनार पूजा || Shri Girnar Pooja

Samuchchay Puja

दोहा बंदौं नेमि जिनेश पद, नेमि-धर्म-दातार । नेम धुरंधर परम गुरु, भविजन सुख कर्तार ||१|| जिनवाणीको प्रणम कर, गुरु गणधर उर धार । सिद्धक्षेत्र पूजा रचौं, सब जीवन हितकार ॥२॥ उर्जयंतगिरि नाम तस, कह्यो जगत विख्यात । गिरिनारी तासें कहत, देखत मन हर्षात ||३|| द्रुतविलंबित तथा सुन्दरी छन्द गिरि सु उन्नत सुभगाकार है, पंचकूट उत्तंग … Read more

जैन स्तुति पाठ – Stuti Paath

siddha puja bhasha

तुम तरणतारण भवनिवारण भविक मन आनन्दनो। श्रीनाभिनन्दन जगतवंदन आदिनाथ निरञ्जनो॥१॥ तुम आदिनाथ अनादि सेऊँ सेय पद पूजा करूँ। कैलाशगिरि पर रिषभ जिनवर पदकमल हिरदै धरूं॥२॥ तुम अजितनाथ अजीत जीते अष्टकर्म महाबली। यह विरद सुनकर सरन आयो कृपा कीज्यो नाथजी॥३॥ तुम चन्द्रवदन सु चन्द्रलच्छन चन्द्रपुरी परमेश्वरो। महासेननन्दन जगतवंदन चन्द्रनाथ जिनेश्वरो॥४॥ तुम शान्ति पाँच कल्याण पूजूं शुद्ध … Read more

विसर्जन पाठ(हिन्दी) – Visarjan Paath

Dev Shastra Guru Pooja

दोहा बिन जाने वा जानके, रही टूट जो कोय। तुम प्रसाद तैं परमगुरु, सो सब पूरन होय॥ पूजनविधि जानूँ नहीं, नहिं जानूँ आह्वान। और विसर्जन हू नहीं, क्षमा करहु भगवान॥ मन्त्रहीन धनहीन हूँ, क्रियाहीन जिनदेव। क्षमा करहु राखहु मुझे, देहु चरण की सेव॥ आये जो जो देवगण, पूजे भक्ति प्रमान। ते अब जावहू कृपाकर, अपने … Read more

शांतिपाठ – Jain Shanti Path

Samuchchay Puja

Shanti Path in Hindi ॐ ह्रीं श्रीमन्तं भगवन्तं कृपा-लसन्तं श्रीवृषभादिमहावीरपर्यन्त- चतुर्विंशतितीर्थङ्करपरमदेवं आद्यानां आद्ये जम्बूद्वीपे भरतक्षेत्रे आर्यखण्डे . …….नाम्नि नगरे मासानामुत्तमे …… मासे …… शुभपक्षे …….. तिथौ …….. वासरे मुन्यार्यिका श्रावक-श्राविकाणां सकलकर्मक्षयार्थं अनर्घ्यपद- प्राप्तये सम्पूर्णार्घं निर्वपामीति स्वाहा। शांतिनाथ ! मुख शशि-उनहारी, शील-गुण-व्रत, संयमधारी | लखन एकसौ-आठ विराजें, निरखत नयन-कमल-दल लाजें ||१|| अर्थ– हे शांतिनाथ भगवान् ! … Read more

अर्ध्यावली पूजा – Arghyawali Puja

Siddhapuja hirachand

बीस तीर्थंकर जल फल आठों दर्व अरघ कर प्रीति धरी है, गणधर इन्द्रनिहू-तैं श्रुति पूरी न करी है। धानत सेवक जानके (हो) जगतें लेहु निकार, सीमन्धर जिन आदि दे बीस विदेह मँझार। (श्री जिनराज हो भव तारण तरण जहाज॥) ॐ ह्रीं श्रीसीमन्धरादिविद्यमानविंशतितीर्थङ्करेभ्यो अनर्घपदप्राप्तये अर्घं निर्वपामीति०। कृत्रिमाकृत्रिम जिनबिम्ब कृत्याकृत्रिमचारुचैत्यनिलयान् नित्यं त्रिलोकीगतान्, वन्दे भावन-व्यन्तरान् द्युतिवरान् कल्पामरावासगान्।। सद्-गन्धाक्षत-पुष्पदामचरुकैः … Read more

श्री बाहुबली पूजा – Shri Bahubali Swami Pooja

Gomtesh bahubali

कर्म-अरिगण जीत के, दरशायो शिव-पंथ | सिद्ध-पद श्रीजिन लह्यो, भोगभूमि के अंत || समर-दृष्टि-जल जीत लहि, मल्लयुद्ध जय पाय | वीर-अग्रणी बाहुबली, वंदौं मन-वच-काय || ॐ ह्रीं श्रीबाहुबलीजिनेन्द्र! अत्र अवतर! अवतर! संवौषट्! (आह्वाननं) ॐ ह्रीं श्रीबाहुबलीजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ! तिष्ठ! ठ:! ठ:! (स्थापनम्)। ॐ ह्रीं श्रीबाहुबलीजिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्! (सन्निधिकरणम्)। (अष्टक) जन्म-जरा-मरणादि तृषा … Read more

श्री पंच परमेष्ठी पूजा (णमोकारमंत्रव्रतसहित्) | Shri Panch Parmesthi Puja

Siddhapuja hirachand

समपदी चौपाई अरिहंतों को नमन हमारा, सिद्ध चक्र का जय-जयकारा । आचार्यों को वंदन प्यारा, पाठक मुनि का अर्चन न्यारा आह्वानन कर हृदय बिठाना, सन्निधि पाकर पूज रचाना। णमोकार व्रत एक सहारा, पापों से मिलता छुटकारा ओं ह्रीं णमोकारमंत्रस्थित –अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् इति आह्वाननम्! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् ! अत्र मम … Read more

णामोकार महामंत्र पूजा || Namokar MahaMantra Puja

णमोकार महामन्त्र namokar mantra

आर्यिका ज्ञानमति माता जी गीता छन्दअनुपम अनादि अनंत है, यह मंत्रराज महान् है |सब मंगलों में प्रथम मंगल, करता अघ की हान है ||अरिहन्त सिद्धाचार्य पाठक, साधुओं की वंदना |इस शब्दमय परब्रह्म को, थापूँ करूँ नित अर्चना ||१||          ओं ह्रीं श्री अनादिऽनिधनपंचनमस्कारमंत्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट्! (आह्वाननम्)ओं ह्रीं श्री अनादिऽनिधन … Read more

नवदेवता जिनपूजा || Nav Devta JinPuja

Gomtesh bahubali

जिनगीतिका (तर्ज-प्रभु पतित पावन……!) अरहंत सिद्धाचार्य पाठक, साधु जन के पद नमूँ, जिनधर्म जैनागम जिनेश्वर, मूर्ति जिनगृह में रमूँ । नवदेव मुझको वैद्य सम हों, जन्म मृति जर रुज हरें, जिन नाम पद मम औषधी हों, माथ पर पद रज धरें ॥ ओं ह्रीं अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुजिनधर्मजिनागमजिनचैत्य चैत्यालय देवताः अत्र अव अवतरत संवौषट् आह्वाननम् ! अत्र तिष्ठत … Read more

देव शास्त्र गुरु पूजा – 1 || Dev Shastra Guru Puja

Acharya Shri Vidhya Sagar Ji Maharaj

जिनगीतिका शुचि ध्यान से  त्रेसठ  प्रकृति  हन,  वीतरागी हो गये, दृग ज्ञान सुख वीरज चतुष्टय, गुण अनंत  निजी  लिये। तीर्थेश बन उपदेश दे, अनगिन भविक निज सम किये, जिनदेव  श्रुत  गुरु  बोध  डालो, आज  मेरे  भी  हिये ॥ ओं ह्रीं देवशास्त्रगुरु समूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम् अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्! अत्र मम … Read more