siddha puja bhasha

(पं. द्यानतराय)

परमब्रह्म परमातमा, परमज्योति ‘परमेश ।
परम निरंजन परम शिव, नमो परम सिद्धेश ॥
        ॐ ह्रीं सिद्धचक्राधिपते सिद्धपरमेष्ठिन् अत्र अवतर अवतर संवौषट् ।
ॐ ह्रीं सिद्धचक्राधिपते सिद्धपरमेष्ठिन् अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः ।
ॐ ह्रीं सिद्धचक्राधिपते सिद्धपरमेष्ठिन् अत्र मम सन्निहितो भव

अष्टक
(सोरठा)
मोह तृषा दुख देइ, सो तुमने जीती प्रभो
जल-सौं पूजों नेह, मेरा रोग मिटाइयो |
ॐ ह्रीं सिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने जन्म-जरा-मृत्यु- विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ।

हम भव- आतप माहिं, तुम न्यारे संसार तैं
कीजे शीतल छाँहि, चन्दन सों पूजा करों ॥
ॐ ह्रीं सिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने संसारताप – विनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति०

हम औगुन समुदाय, तुम अक्षय सब गुण भरे ।
पूजों अक्षत ल्याय, दोष नाश गुण कीजिए ॥
ॐ ह्रीं सिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति०

काम अग्नि है मोहि, निश्चय शील स्वभाव तुम ।
पुष्प चढ़ाऊँ तोहि, सेवक की पावक हरो ॥
ॐ ह्रीं सिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने कामबाण – विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति० ।

हमें क्षुधा दुःख भूर, ज्ञान- खड्ग सों तुम हती ।
मेरी बाधा चूर, नेवज सों पूजों तुम्हें ॥
ॐ ह्रीं सिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति०

मोह-तिमिर हम पास, तुम पै चेतन ज्योति है ।
पूजों दीप प्रकाश, मेरो तम निरवारियो ॥
ॐ ह्रीं सिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति०

रुल्यो कर्म वन-जाल, मुक्ति माहिं तुम सुख करो ।
खेॐ धूप रसाल, अष्ट कर्म-वन जारियो ॥
ॐ ह्रीं सिद्धचक्राधिपतये सिद्धपमेष्ठिने अष्टकर्मविध्वंसनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।

अन्तराय दुखकार, तुम अनन्त थिरता लिये ।
पूजों फल धर सार, विघन टार शिवफल करो ॥
ॐ ह्रीं सिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा ।

हममें आठों दोष, जजों अरघ ले सिद्ध जी ।
वसु गुण दीजे ‘मोष, ‘धानत’ कर जोड़े खड़ो ||
ॐ ह्रीं सिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

जयमाला
दोहा

आठ कर्म दृढ़ बन्ध-सों, नख-शिख बन्धो जहान।
बन्ध रहित वसु गुण सहित, नमूँ सिद्ध भगवान॥

पद्धरि छन्द

सुख सम्यक् दर्शन ज्ञानधरं बलनन्त अगुरुलघु-बाधहरं।
अवगाह अमूरत नायक हैं, सब सिद्ध नमों सुखदायक हैं॥

अबलं अचलं अतुलं अटलं, अतलं अवचं अकुलं अमलं।
अजरं अमरं जगज्ञायक हैं, सब सिद्ध नमों सुखदायक है।

निरभोग स्वभोग अरोग परं, निरयोग असोग वियोगहरं।
अरमं स्वरमं दुखघायक हैं, सब सिद्ध नमों सुखदायक हैं।

सब कर्म कलंक अटंक अजं, नरनाथ सुरेश समूह जजं।
मुनि ध्यावत सज्जन-नायक हैं, सब सिद्ध नमों सुखदायक हैं।

अविरुद्ध विशुद्ध प्रबुद्धमयं, सब जानत लोक अलोक चयं।
परमं धरमं शिवलायक हैं, सब सिद्ध नमों सुखदायक हैं।

निरभेद अखेद अछेद लहा, निरद्वन्द सुछन्द अछन्द महा।
अक्षुधा अतृषा अकषायक हैं, सब सिद्ध नमों सुखदायक हैं।

असमं अजमं अतमं लहियं, अगमं सुखमं सुखदं गहियं।
यमराज की चोट बचायक हैं, सब सिद्ध नमों सुखदायक हैं॥

निरधाम सुधाम अकामयुतं, अविहार निहार-अहारच्युतं।
भवनाशन तीक्षण सायक हैं, सब सिद्ध नमों सुखदायक हैं॥

निरवर्ण अकर्ण अशर्ण नतं, अगतिं अमितं अक्षतं अरतं।
अस उत्तम भाव सुपायक हैं, सब सिद्ध नमों सुखदायक हैं॥

निररंग असंग अभंग सदा, अतयं अचयं अवयं सुखदा।
अमदं अगदं गुण ज्ञायक हैं, सब सिद्ध नमों सुखदायक हैं।

अविषाद अनादि अवाद परं, भगवन्त अनन्त महन्त तरं।
तुम ध्येय महामुनि ध्यायक हैं, सब सिद्ध नमों सुखदायक हैं।।

निरनेह अदेह अगेह सुखी, निरमोह अकोह अलोह तुखी’।
तहुँ लोक के नायक पायक हैं, सब सिद्ध नमों सुखदायक हैं।।

पन्द्रह सौ भाग महा निवसैं, नव लाख के भाग जघन्य लसैं।
तनुवात के अन्त सहायक हैं, सब सिद्ध नमों सुखदायक हैं।
ॐ ह्रीं सम्यग्दर्शन-ज्ञान-अनन्तदर्शन-वीर्य-सूक्ष्मत्व- अवगाहनत्व- अगुरुलघुत्व- अव्याबाधत्व-गुणविभूषित – सिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिनेऽर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।

सोरठा
बहुविधि नाम वखान, परमेश्वर सबही भजें।
ज्यों का त्यों सरधान, ‘द्यानत’ सेवें ते बढ़े ||

अडिल्ल छन्द
(अविनाशी अविकार परम रस धाम हो,
समाधान सर्वङ्ग सहज अभिराम हो
शुद्ध बुद्ध अविरुद्ध अनादि अनन्त हो,
जगत शिरोमणि सिद्ध सदा जयवन्त हो॥
ध्यान अगनि करि कर्म-कलंक सबै दहे,
नित्य निरंजन देव सरूपी हो रहे।
ज्ञायक के आकार ममत्व निवारिके,
सो परमातम सिद्ध नमूँ सिर नायके॥

दोहा
अविचल ज्ञान-प्रकाशतें, गुन अनन्त की खान
ध्यान धरै सो पाइये, परम सिद्ध भगवान॥)
इत्याशीर्वादः
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Note

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