कविश्री मनोहरलाल वर्णी ‘सहजानंद’
हूँ स्वतंत्र निश्चल निष्काम, ज्ञाता-दृष्टा आतम-राम|
मैं वह हूँ जो हैं भगवान्, जो मैं हूँ वह हैं भगवान्|
अन्तर यही ऊपरी जान, वे विराग मैं राग-वितान||१||
मम-स्वरूप है सिद्ध-समान, अमित-शक्ति-सुख-ज्ञान-निधान|
किन्तु आश-वश खोया ज्ञान, बना भिखारी निपट अजान||२||
सुख-दु:खदाता कोई न आन, मोह-राग ही दु:ख की खान|
निज को निज, पर को पर जान, फिर दु:ख का नहिं लेश निदान||३||
जिन,शिव,ईश्वर, ब्रह्मा, राम, विष्णु, बुद्ध, हरि जिसके नाम|
राग-त्याग पहुँचूं निज-धाम, आकुलता का फिर क्या काम||४||
होता स्वयं जगत् परिणाम, मैं जग का करता क्या काम|
दूर हटो पर-कृत परिणाम, सहजानन्द रहूँ अभिराम||५||
हूँ स्वतंत्र निश्चल निष्काम, ज्ञाता-दृष्टा आतम-राम|
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Note
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