Acharya Shri Vidhya Sagar Ji Maharaj

कविश्री भूध्ररदास

(अनित्य भावना)

राजा राणा छत्रपति, हाथिन के असवार|
मरना सबको एक दिन, अपनी-अपनी बार ||१||

(अशरण भावना)

दल-बल देवी-देवता, मात-पिता-परिवार|
मरती-बिरिया जीव को, कोई न राखनहार ||२||

(संसार भावना)

दाम-बिना निर्धन दु:खी, तृष्णावश धनवान|
कहूँ न सुख संसार में, सब जग देख्यो छान ||३||

(एकत्व भावना)

आप अकेला अवतरे, मरे अकेला होय|
यों कबहूँ इस जीव को, साथी-सगा न कोय ||४||

(अन्यत्व भावना)

जहाँ देह अपनी नहीं, तहाँ न अपना कोय|
घर-संपति पर प्रगट ये, पर हैं परिजन लोय ||५||

(अशुचि भावना)

दिपे चाम-चादर-मढ़ी, हाड़-पींजरा देह|
भीतर या-सम जगत् में, अवर नहीं घिन-गेह||६||

(आस्रव भावना)

मोह-नींद के जोर, जगवासी घूमें सदा|
कर्म-चोर चहुँ-ओर, सरवस लूटें सुध नहीं||७||

(संवर भावना)

सतगुरु देय जगाय, मोह-नींद जब उपशमे|
तब कछु बने उपाय, कर्म-चोर आवत रुकें||

(निर्जरा भावना)

ज्ञान-दीप तप-तेल भर, घर शोधें भ्रम-छोर|
या-विध बिन निकसे नहीं, पैठे पूरब-चोर||८||

पंच-महाव्रत संचरण, समिति पंच-परकार|
प्रबल पंच-इन्द्रिय-विजय, धार निर्जरा सार||९||

(लोक भावना)

चौदह राजु उतंग नभ, लोक-पुरुष-संठान|
तामें जीव अनादि तें, भरमत हैं बिन-ज्ञान ||१०||

(बोधिदुर्लभ भावना)

धन-कन-कंचन राज-सुख, सबहि सुलभकर जान|
दुर्लभ है संसार में, एक जथारथ-ज्ञान ||११||

(धर्म भावना)

जाँचे सुर-तरु देय सुख, चिंतत चिंतारैन|
बिन जाँचे बिन चिंतये, धर्म सकल-सुख देन ||१२||

*****

Note

Jinvani.in मे दिए गए सभी स्तोत्र, पुजाये, आरती आदि, BARAH BHAVNA जिनवाणी संग्रह संस्करण 2022 के द्वारा लिखी गई है, यदि आप किसी प्रकार की त्रुटि या सुझाव देना चाहते है तो हमे Comment कर बता सकते है या फिर Swarn1508@gmail.com पर eMail के जरिए भी बता सकते है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here