श्री नाकोड़ा भैरव चालीसा
पार्श्वनाथ भगवान की, मूरत चित बसाए ॥
भैरव चालीसा लिखू, गाता मन हरसाए ॥
नाकोडा भैरव सुखकारी, गुण गाये ये दुनिया सारी ॥
भैरव की महिमा अति भारी, भैरव नाम जपे नर नारी ॥
जिनवर के हैं आज्ञाकारी, श्रद्धा रखते समकित धारी ॥
प्रातःउठ जो भैरव ध्याता, ऋद्धि सिद्धि सब संपत्ति पाता ॥
भैरव नाम जपे जो कोई, उस घर में निज मंगल होई ॥
नाकोडा लाखों नर आवे, श्रद्धा से परसाद चढावे ॥
भैरव–भैरव आन पुकारे, भक्तों के सब कष्ट निवारे ॥
भैरव दर्शन शक्ति–शाली, दर से कोई न जावे खाली ॥
जो नर नित उठ तुमको ध्यावे, भूत पास आने नहीं पावे ॥
डाकण छूमंतर हो जावे, दुष्ट देव आडे नहीं आवे ॥
मारवाड की दिव्य मणि हैं, हम सब के तो आप धणी हैं ॥
कल्पतरु है परतिख भैरव, इच्छित देता सबको भैरव ॥
आधि व्याधि सब दोष मिटावे, सुमिरत भैरव शान्ति पावे ॥
बाहर परदेशे जावे नर, नाम मंत्र भैरव का लेकर ॥
चोघडिया दूषण मिट जावे, काल राहु सब नाठा जावे ॥
परदेशा में नाम कमावे, धन बोरा में भरकर लावे ॥
तन में साता मन में साता, जो भैरव को नित्य मनाता ॥
मोटा डूंगर रा रहवासी, अर्ज सुणन्ता दौड्या आसी ॥
जो नर भक्ति से गुण गासी, पावें नव रत्नों की राशि ॥
श्रद्धा से जो शीष झुकावे, भैरव अमृत रस बरसावे ॥
मिल जुल सब नर फेरे माला, दौड्या आवे बादल–काला ॥
वर्षा री झडिया बरसावे, धरती माँ री प्यास बुझावे ॥
अन्न–संपदा भर भर पावे, चारों ओर सुकाल बनावे ॥
भैरव है सच्चा रखवाला, दुश्मन मित्र बनाने वाला ॥
देश–देश में भैरव गाजे, खूटँ–खूटँ में डंका बाजे ॥
हो नहीं अपना जिनके कोई, भैरव सहायक उनके होई ॥
नाभि केन्द्र से तुम्हें बुलावे, भैरव झट–पट दौडे आवे ॥
भूख्या नर की भूख मिटावे, प्यासे नर को नीर पिलावे ॥
इधर–उधर अब नहीं भटकना, भैरव के नित पाँव पकडना ॥
इच्छित संपदा आप मिलेगी, सुख की कलियाँ नित्य खिलेंगी ॥
भैरव गण खरतर के देवा, सेवा से पाते नर मेवा ॥
कीर्तिरत्न की आज्ञा पाते, हुक्म–हाजिरी सदा बजाते ॥
ऊँ ह्रीं भैरव बं बं भैरव, कष्ट निवारक भोला भैरव ॥
नैन मूँद धुन रात लगावे, सपने में वो दर्शन पावे ॥
प्रश्नों के उत्तर झट मिलते, रस्ते के संकट सब मिटते ॥
नाकोडा भैरव नित ध्यावो, संकट मेटो मंगल पावो ॥
भैरव जपन्ता मालम–माला, बुझ जाती दुःखों की ज्वाला ॥
नित उठे जो चालीसा गावे, धन सुत से घर स्वर्ग बनावे ॥
भैरु चालीसा पढे, मन में श्रद्धा धार ।
कष्ट कटे महिमा बढे, संपदा होत अपार ॥
जिन कान्ति गुरुराज के,शिष्य मणिप्रभ राय ।
भैरव के सानिध्य में,ये चालीसा गाय ॥
॥ श्री भैरवाय शरणम् ॥
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