निर्वाण कांड – Nirvan Kand

जैन धर्म निर्वाण कांड

(दोहा)
वीतराग वन्दौं सदा, भाव सहित सिर नाय|
कहूं काण्ड निर्वाण की, भाषा सुगम बनाये ||

(चौपाई)
अष्टापद आदीश्वर स्वामि, वासुपूज्य चम्पापुरि नामि|
नेमिनाथ स्वामी गिरनार, वन्दौं भाव भगति उर धार ||1||

चरम तीर्थकर चरम शरीर, पावापुरि स्वामि महावीर|
शिखर समेद जिनेसुर बीस, भावसहित वन्दौं निश दीस ||2||

वरदत्तराय रु इन्द मुनिंद, सायरदत्त आदि गुणवृन्द|
नगर तारवर मुनि उठकोडी, वन्दौं भाव सहित कर जोडी ||3||

श्रीगिरनार शिखर विख्यात, कोडी बहत्तर अरु सौ सात|
सम्बु प्रद्युम्न कुमर द्वै भाय, अनिरुध आदि नमूं तसु पाय ||4||

रामचन्द्र के सुत द्वै वीर, लाडनरिंद आदि गुणधीर|
पांच कोडी मुनि मुक्ति मंझार, पावागिरि वन्दौं निरधार ||5||

पांडव तीन द्रविड़ राजान, आठ कोडी मुनि मुक्ति पयान|
श्रीशत्रुंजय के सीस, भावसहित वन्दौं निश दीस ||6||

जे बलभद्र मुक्ति में गये, आठ कोडी मुनि औरहू भये|
श्रीगजपन्थ शिखर सुविशाल, तिनके चरण नमूं तिहूँ काल ||7||

राम हणु सुग्रीव सुडील, गव गवाख्य नील महानील|
कोडी निन्याणव मुक्ति पयान, तुंगीगिरि वन्दौं धरि ध्यान ||8||

नंग अनंग कुमार सुजान, पांच कोडी अरु अर्ध प्रमान|
मुक्ति गये सोनागिरि शीस, ते वन्दौं त्रिभुवन पति ईस ||9||

रावण के सुत आदिकुमार, मुक्ति गये रेवा तट सार|
कोटि पंच और लाख पचास, ते वन्दौंधरि परम हुलास ||10||

रेवानदी सिद्धवर कूट, पश्चिम दिशा देह जहँ छूट|
द्वे चक्री दश कामकुमार, उठकोडी वन्दौं भव पार ||11||

बडवानी बडनयर सुचंग, दक्षिण दिशि गिरि चूल उतंग|
इन्द्रजीत अरु कुम्भ जो कर्ण, ते वन्दौं भव सागर तरण ||12||

सुवरणभद्र आदि मुनि चार, पावागिरि वर शिखर मंझार|
चेलना नदी तीर के पास, मुक्ति गये नित वन्दौं नित तास ||13||

फलहोडी बडगाम अनूप, पश्चिम दिशा द्रोणगिरि रूप |
गुरुदत्तादी मुनिसुर जहाँ, मुक्ति गये वन्दौं नित तहां ||14||

बाल महाबाल मुनि दोय, नागकुमार मिले त्रय होय|
श्रीअष्टापद मुक्ति मंझार, ते वन्दौं नित सुरत सँभार ||15||

अचलापुर की दिश ईसान, तहां मेढगिरि नाम प्रधान|
साढ़े तीन कोडी मुनिराय, तिनके चरण नमूं चित लाय ||16||

वंसस्थल वन के ढिग होय, पश्चिम दिशा कुंथुगिरी सोय|
कुलभूषण दिशिभूषण नाम, तिनके चरणनि करूं प्रणाम ||17||

जसरथ राजा के सुत कहे, देश कलिंग पांच सौ लहे|
कोटिशिला मुनि कोडी प्रमान, वन्दन करूं जोरि जग पान ||18||

समवशरण श्री पार्श्व जिनन्द, रेसिन्दीगिरि नयनानंद|
वरदत्तादि पंच ऋषिराय, ते वन्दौं नित धरम जिहाज ||19||

सेठ सुदर्शन पटना जान, मथुरा से जम्बू निर्वाण।
चरम केवलि पंचमकाल, ते वंदौं नित दीनदयाल। ॥20॥

तीन लोक ते तीरथ जहाँ, नित प्रति वन्दन कीजै तहां|
मन-वच-काय सहित सिर नाय, वन्दन करहिं भविक गुण गाय ||21||

संवत सतरह सौ इकताल, आश्विन सुदि दशमी सुविशाल|
भक्त वन्दन करहिं त्रिकाल, जय निर्वाणकांड गुणमाल ||22||

*****

Note

Jinvani.in मे दिए गए सभी स्तोत्र, पुजाये, आरती आदि Nirvan Kand जिनवाणी संग्रह संस्करण 2022 के द्वारा लिखी गई है, यदि आप किसी प्रकार की त्रुटि या सुझाव देना चाहते है तो हमे Comment कर बता सकते है या फिर Swarn1508@gmail.com पर eMail के जरिए भी बता सकते है।

3 thoughts on “निर्वाण कांड – Nirvan Kand”

    1. Doha to hai, but wordings different hai.

      सेठ सुदर्शन पटना जान, मथुरा से जम्बू निर्वाण।
      चरम केवलि पंचमकाल, ते वंदौं नित दीनदयाल

      मथुरापुर पवित्र उद्यान, जम्बूस्वामीजी निर्वाण।
      चरम केवलि पंचमकाल, ते बन्दौं नित दीनदयाल

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