Padmastakam Stotra (Padamprabhu Bhagwan)

श्री 1008 सध्य सागर जी महाराज द्वारा रचित

पद्माष्टकम् स्तोत्र 

।। साध्यपद्माष्टकम् ।।

पद्मसनातन साध्यं रूपम् चिन्तीतकार्य महासुःख पुर्णम्
निर्मलभाव सुपुजित देवं तत्प्रणमामि सदा जिनपद्यं ॥1॥

विश्वविभुति विहंगम् रूपम् विश्वव्यापिने विश्वभूतेशं
विश्वमूर्तये विश्वविधेशं तत्प्रणमामि सदा जिनपद्यं ॥2॥

मुक्तस्वरूप दमेश्वर पद्म परमेष्ठी त्वं स्वयं स्वरूपम्
भगवत् पूजाहार्य महेशं तत्प्रणमामि सदा जिनपद्यं ॥3॥

अतिशय दश्य महार्चित पुष्पम् शक्तिमहा मनोवेग सु दिव्यम्
पद्मसंभूते पद्मविष्टरम् तत्प्रणमामि सदा जिनपद्यं ॥4॥

कीर्ति प्रदेय सुबुद्धि सहितं विघ्नहराय समार्चित पद्म
भविजन भक्ति सुकिर्ति सुहितं तत्प्रणमामि सदा जिनपद्यं ।॥5॥

मंत्रविदे फलपुरित देवं मंत्रक ते मृत्युञ्जय देयं
महापराक्रम पुण्य ग्रहीतं तत्प्रणमामि सदा जिनपद्यं ।॥6॥

निरबंराय तमोपह देवं ज्योति अपार प्रकाशक देवं
सुर्य कोटि समप्रभ जिन देवं तत्प्रणमामि सदा जिनपद्मं ॥7॥

विमल शांतिक्रतै युगमुख्यम् कर्मठ प्रांशव वरप्रद देवं
सुगुरू नाथ सुवन्दित देवं तत्प्रणमामि सदा जिनपद्मं ॥8॥

॥ साध्यपद्मष्टकमिदं पाएं सः गरेन जिनसन्नीधौ शिवलोक मवाप्नोतिः सहेव सः मोदते ॥

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Note

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