padmavati mata chalisa

श्री पद्मावती माता चालीसा: Padmavati Chalisa

श्री पद्मावती माता चालीसा जैन धर्म में पूज्य देवी पद्मावती देवी को समर्पित एक भक्ति भजन है। उन्हें जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ की रक्षक देवी (यक्षिणी) माना जाता है। जो लोग उनके गुणों की प्रशंसा करते हैं। 

Shri Padmavati Mata Chalisa एक भक्तिमय स्तोत्र है जो देवी पद्मावती के अद्भुत स्वरूप, गुणों और कृपा का गुणगान करता है। यह चालीसा श्रद्धालुओं को माता के प्रति अपनी भक्ति प्रकट करने और मानसिक शांति प्राप्त करने का माध्यम प्रदान करती है।

पद्मावती माता को धन, वैभव और समृद्धि की देवी माना जाता है, और उनकी आराधना जीवन में सुख-समृद्धि, सफलता और रक्षा प्रदान करती है। यह चालीसा भक्तों को आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करती है और जीवन की कठिनाइयों में आशा की किरण बनती है। सरल भाषा और प्रभावशाली छंदों के माध्यम से यह पाठ हर आयु वर्ग के भक्तों के लिए उपयुक्त है।

दोहा


पार्श्वनाथ भगवान को मन मंदिर में ध्याय
 लिखने का साहस करूं चालीसा सुखदाय ||१||

उन प्रभुवर श्री पार्श्व की, यक्षी मात महान
पद्मावति जी नाम है, सर्व गुणों की खान ||२||

जिनशासन की रक्षिका, के गुण वरणू आज
चालीसा विधिवत पढ़े , पूर्ण होय सब काज ||३||

चौपाई


जय जय जय पद्मावति माता, सच्चे मन से जो भी ध्याता ||१||

सर्व मनोरथ पूर्ण करें माँ ,विघ्न सभी भागें पल भर मा ||२||

जिनशासन की रक्षा करतीं,धर्मप्रभावन में रत रहतीं ||३||

श्री धरणेन्द्र देव की भार्या ,दिव्य है माता तेरी काया ||४||

एक बार श्री पार्श्वनाथ जी ,घोर तपस्या में रत तब ही ||५||

संवर देव देख प्रभुवर को,करे स्मरण पूर्व भवों को ||६||

घोरोपसर्ग किया प्रभुवर पर, आंधी,वर्षा ,फेके पत्थर ||७||

अविचल ध्यानारूढ़ प्रभूजी ,आसन कंपा माँ पद्मावति ||८||

यक्ष-यक्षिणी दोनों आये, प्रभु के ऊपर छत्र लगाए ||९||

कर में धारण कर पद्मावति , छत्र लगाएं श्री धरणेन्द्र जी ||१०||

प्रभु को केवलज्ञान हो गया,समवसरण निर्माण हो गया ||११||

संवरदेव बहुत लज्जित था,क्षमा-क्षमा कह द्ववार खड़ा था ||१२||

वह स्थल उस ही क्षण से बस, अहिच्छत्र कहलाए बन्धुवर ||१३||

श्री धरणेन्द्र देव पद्मावति, कहलाए प्प्रभु यक्ष-यक्षिणी ||१४||

बड़ी प्रसिद्धी उन दोनों की,उस स्थल पर भव्य मूरती ||१५||

जो विधिवत तुम पूजन करता,मनवांछा सब पूरी करता ||१६||

धन का इच्छुक धन को पाता , सुत अर्थी सुत पा हर्षाता |१७||

राज्य का अर्थी राज्य को पाए , लौकिक सुख सब ही मिल जाएँ ||१८||

हे माता !तुम सम्यग्द्रष्टी ,मुझ पर हो करूणा की वृष्टी ||१९||

प्रियकारिणि धरणेन्द्र देव की,भक्तों की सब पीड़ा हरतीं ||२०||

जहां धर्म पर संकट आवे, ध्यान आपका कष्ट मिटावे ||२१||

इसी हेतु अनुराग आपसे,जय जय जय स्याद्वाद की प्रगटे ||२२||

दीप दान करते विधान जो,पा निधान अरु तेज पुंज वो ||२३||

तुम भय संकट हरणी माता, नाम से तेरे मिटे असाता ||२४||

एक सहस अठ नाम जपे जो, पुत्र पौत्र धन-धान्य लहे वो ||२५||

कुंकुम अक्षत पुष्प चढ़ावे,कर श्रृंगार भक्त हर्षावे ||२६||

मस्तक पर प्रभु पार्श्व विराजें , ऐसी मूरत मन को साजे ||२७||

मुखमंडल पर दिव्य प्रभा है, नयनों में दिखती करुणा है ||२८||

वत्सलता तव उर से झलके,ब्रम्हण्डिनि सुखमंडिनि वर दे ||२९||

कभी होय जिनधर्म से डिगना,ले लेना माँ अपनी शरणा ||३०||

सम्यग्दर्शन नित दृढ होवे, जिह्वा पर प्रभु नाम ही होवे ||३१||

रोग,शोकअरु संकट टारो, हे माता इक बार निहारो ||३२||

तू माता मैं बालक तेरा, फिर क्यों कर मन होय अधीरा ||३३||

मेरी सारी बात सुधारो, पूर्ण मनोरथ विघ्न विदारो ||३४||

बड़ी आश ले द्वारे आया, सांसारिक दुःख से अकुलाया ||३५||

अगम अकथ है तेरी गाथा, गुण गाऊँ पर शब्द न पाता ||३६||

हे जगदम्बे !मंगलकरिणी ,शीलवती सब सुख की भरिणी ||३७||

चौबिस भुजायुक्त तव प्रतिमा, अतिशायी है दिव्य अनुपमा ||३८||

बार-बार मैं तुमको ध्याऊँ, दृढ सम्यक्त्व से शिवपुर जाऊं ||३९||

जब तक मोक्ष नहीं मैं पाऊँ,श्री जिनधर्म सदा उर लाऊँ ||४०||


दोहा


श्री पद्मावति मात की, भक्ति करे जो कोय
रोग,शोक,संकट टले , वांछा पूरण होय ||१||

कर विधान मंत्रादि अरु श्रंगारादिक ठाठ
जिनशासन की रक्षिका, नित देवें सौभाग्य ||२||

चालीसा चालीस दिन , पढ़े सुने जो प्राणि
‘इंदु‘ मात पद्मावति, भक्तन हित कल्याणि ||३||

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Note

Jinvani.in मे दिए गए सभी श्री पद्मावती मात चालीसा स्तोत्र, पुजाये और आरती जिनवाणी संग्रह के द्वारा लिखी गई है, यदि आप किसी प्रकार की त्रुटि या सुझाव देना चाहते है तो हमे Comment कर बता सकते है या फिर Swarn1508@gmail.com पर eMail के जरिए भी बता सकते है।

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Swarn Jain

My name is Swarn Jain, A blog scientist by the mind and a passionate blogger by heart ❤️, who integrates my faith into my work. As a follower of Jainism, I see my work as an opportunity to serve others and spread the message of Jainism.

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