(दोहा)
जनम-जरा-मृतु क्षय करे, हरे कुनय जड़-रीति |
भवसागर सों ले तिरे, पूजे जिनवच-प्रीति ||
ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भवसरस्वतीदेवि ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् ।
ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भवसरस्वतीदेवि ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः ।
ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भवसरस्वतीदेवि ! अत्र मम सन्निहिता भव भव वषट् ।
(त्रिभंगी)
क्षीरोदधि गंगा, विमल तरंगा, सलिल अभंगा सुख संगा |
भरि कंचनझारी, धार निकारी, तृषा निवारी हित चंगा ||
तीर्थंकर की ध्वनि, गणधर ने सुनि, अंग रचे चुनि ज्ञानमर्इ |
सो जिनवरवानी, शिवसुखदानी, त्रिभुवनमानी पूज्य भर्इ ||
ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूत-सरस्वतीदेव्यै जन्म-जरा-मृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ।१।
करपूर मंगाया, चंदन आया, केशर लाया रंग भरी |
शारदपद वंदूं, मन अभिनंदूं, पाप निकंदूं दाह हरी ||
तीर्थंकर की ध्वनि, गणधर ने सुनि, अंग रचे चुनि ज्ञानमर्इ |
सो जिनवरवानी, शिवसुखदानी, त्रिभुवनमानी पूज्य भर्इ ||
ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूत -सरस्वतीदेव्यै संसारताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा ।२।
सुखदास कमोदं, धारक मोदं, अति अनुमोदं चंद समं |
बहु भक्ति बढ़ार्इ, कीरति गार्इ, होहु सहार्इ मात ममं ||
तीर्थंकर की ध्वनि, गणधर ने सुनि, अंग रचे चुनि ज्ञानमर्इ |
सो जिनवरवानी, शिवसुखदानी, त्रिभुवनमानी पूज्य भर्इ ||
ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूत-सरस्वतीदेव्यै अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ।३।
बहु फूल सुवासं, विमल प्रकाशं, आनंदरासं लाय धरे |
मम काम मिटायो, शील बढ़ायो, सुख उपजायो दोष हरे ||
तीर्थंकर की ध्वनि, गणधर ने सुनि, अंग रचे चुनि ज्ञानमर्इ |
सो जिनवरवानी, शिवसुखदानी, त्रिभुवनमानी पूज्य भर्इ ||
ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूत-सरस्वतीदेव्यैकामबाण-विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।४।
पकवान बनाया, बहुघृत लाया, सब विध भाया मिष्टमहा |
पूजूँ थुति गाऊँ, प्रीति बढ़ाऊँ, क्षुधा नशाऊँ हर्ष लहा ||
तीर्थंकर की ध्वनि, गणधर ने सुनि, अंग रचे चुनि ज्ञानमर्इ |
सो जिनवरवानी, शिवसुखदानी, त्रिभुवनमानी पूज्य भर्इ ||
ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूत-सरस्वतीदेव्यै क्षुधरोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।५।
कर दीपक जोतं, तमक्षय होतं, ज्योति उदोतं तुमहिं चढ़े |
तुम हो परकाशक भरमविनाशक, हम घट भासक ज्ञान बढ़े ||
तीर्थंकर की ध्वनि, गणधर ने सुनि, अंग रचे चुनि ज्ञानमर्इ |
सो जिनवरवानी, शिवसुखदानी, त्रिभुवनमानी पूज्य भर्इ ||
ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूत-सरस्वतीदेव्यै मोहांधकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।६।
शुभगंध दशों कर, पावक में धर, धूप मनोहर खेवत हैं |
सब पाप जलावें, पुण्य कमावें, दास कहावें सेवत हैं ||
तीर्थंकर की ध्वनि, गणधर ने सुनि, अंग रचे चुनि ज्ञानमर्इ |
सो जिनवरवानी, शिवसुखदानी, त्रिभुवनमानी पूज्य भर्इ ||
ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूत-सरस्वतीदेव्यै अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।७।
बादाम छुहारे, लोंग सुपारी, श्रीफल भारी ल्यावत हैं |
मनवाँछित दाता, मेट असाता, तुम गुन माता ध्यावत हैं ||
तीर्थंकर की ध्वनि, गणधर ने सुनि, अंग रचे चुनि ज्ञानमर्इ |
सो जिनवरवानी, शिवसुखदानी, त्रिभुवनमानी पूज्य भर्इ ||
ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूत-सरस्वतीदेव्यै मोक्षफल-प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा ।८।
नयनन सुखकारी, मृदु गुनधारी, उज्ज्वल भारी मोलधरें |
शुभगंध सम्हारा, वसन निहारा, तुम तन धारा ज्ञान करें ||
तीर्थंकर की ध्वनि, गणधर ने सुनि, अंग रचे चुनि ज्ञानमर्इ |
सो जिनवरवानी, शिवसुखदानी, त्रिभुवनमानी पूज्य भर्इ ||
ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूत-सरस्वतीदेव्यै दिव्यज्ञान-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।९।
जल चंदन अक्षत, फूल चरु अरु, दीप धूप अति फल लावे |
पूजा को ठानत, जो तुम जानत, सो नर ‘द्यानत’ सुखपावे ||
तीर्थंकर की ध्वनि, गणधर ने सुनि, अंग रचे चुनि ज्ञानमर्इ |
सो जिनवरवानी, शिवसुखदानी, त्रिभुवनमानी पूज्य भर्इ ||
ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूत-सरस्वतीदेव्यै अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।१०।
जयमाला
(सोरठा छन्द)
ओंकार ध्वनिसार, द्वादशांग वाणी विमल |
नमूं भक्ति उर धार, ज्ञान करे जड़ता हरे ||
(चौपाई)
पहलो ‘आचारांग’ बखानो, पद अष्टादश-सहस प्रमानो |
दूजो ‘सूत्रकृतं’ अभिलाषं, पद छत्तीस सहस गुरुभाषं ||
तीजो ‘ठाना अंग’ सुजानं, सहस बयालिस पद सरधानं |
चौथो ‘समवायांग’ निहारं, चौंसठ सहस लाख-इक धारं ||
पंचम ‘व्याख्याप्रज्ञप्ति’ दरसं, दोय लाख अट्ठाइस सहसं |
छट्ठो ‘ज्ञातृकथा’ विस्तारं, पाँच लाख छप्पन हज्जारं ||
सप्तम ‘उपासकाध्ययनांगं’, सत्तर सहस ग्यारलख भंगं |
अष्टम ‘अंतकृतं’ दस र्इसं, सहस अठाइस लाख तेर्इसं ||
नवम ‘अनुत्तरदश’ सुविशालं, लाख बानवे सहस चवालं |
दशम ‘प्रश्नव्याकरण’ विचारं, लाख तिरानवे सोल हजारं ||
ग्यारम ‘सूत्रविपाक’ सु भाखं, एक कोड़ चौरासी लाखं |
चार कोड़ि अरु पंद्रह लाखं, दो हजार सब पद गुरु भाखं ||
द्वादश ‘दृष्टिवाद पन भेदं, इकसौ आठ कोड़ि पन वेदं |
अड़सठ लाख सहस छप्पन हैं, सहित पंचपद मिथ्याहन हैं||
इक सौ बारह कोड़ि बखानो, लाख तिरासी ऊपर जानो |
ठावन सहस पंच अधिकाने, द्वादश अंग सर्व पद माने ||
कोड़ि इकावन आठ हि लाखं, सहस चुरासी छह सौ भाखं |
साढ़े इकीस श्लोक बताये, एक-एक पद के ये गाये ||
ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूत-सरस्वतीदेव्यै जयमाला-पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
(दोहा)
जा बानी के ज्ञान तें, सूझे लोकालोक |
‘द्यानत’ जग-जयवंत हो, सदा देत हूँ धोक ||
||इत्याशिर्वाद||
||पुष्पांजलि क्षिपित||
*****
- ये भी पढे – श्री ऋषि मण्डल पूजा Shri Rishi Mandal Pooja
- ये भी पढे – Jain Das Lakshan Pooja
- ये भी पढे – Nirvan Kshetra Pooja – निर्वाण क्षेत्र पूजा
- ये भी पढे – देव शास्त्र गुरु पूजा 1, Dev Shastra Guru Pooja 2
- ये भी पढे – नन्दीश्वर द्वीप पूजा Nandishwar Dweep Pooja
Note
Jinvani.in मे दिए गए सभी Jain Saraswati Pooja स्तोत्र, पुजाये और आरती जिनवाणी संग्रह के द्वारा लिखी गई है, यदि आप किसी प्रकार की त्रुटि या सुझाव देना चाहते है तो हमे Comment कर बता सकते है या फिर Swarn1508@gmail.com पर eMail के जरिए भी बता सकते है।