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दसलक्षण पर्व – उत्तम संयम धर्म🙏 Uttam Sanyam Dharma –

स्पर्शन, रसना, घ्राण, नेत्र, कर्ण और मन पर नियंत्रण (दमन, कन्ट्रोल) करना इन्द्रिय-संयम है। पृथ्वीकाय, जलकाय, अग्निकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय और त्रसकाय जीवों की रक्षा करना प्राणी संयम है इन दोनों संयमों में इन्द्रिय संयम मुख्य है क्योंकि इन्द्रिय संयम प्राणी संयम का कारण है, इन्द्रिय संयम होने पर भी प्राणी संयम होता हैं, बिना इन्द्रिय संयम के प्राणी संयम नहीं हो सकता। महान आत्माएँ सदैव संयम धारण कृति है
इंद्रियों पर संयम नियंत्रण रखना ही उत्तम संयम धर्म है🌸🙏

दसलक्षण पर्व: उत्तम संयम धर्म – आत्म-नियंत्रण का पथ

दसलक्षण पर्व जैन धर्म के सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण आयोजनों में से एक है, जो आत्मा की शुद्धि और नैतिक उत्थान पर केंद्रित है. इन दस दिनों के दौरान, जैन अनुयायी दस उत्तम धर्मों का पालन करते हैं, जिनमें उत्तम संयम धर्म का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है. संयम का अर्थ है अपनी इंद्रियों और मन पर नियंत्रण रखना, जो आध्यात्मिक प्रगति और मोक्ष मार्ग के लिए अनिवार्य है.


संयम का गहरा अर्थ

संयम केवल बाहरी व्यवहार को नियंत्रित करने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मन, वचन और शरीर पर पूर्ण अनुशासन स्थापित करने की कला है. यह हमें सिखाता है कि कैसे हम अपनी अनियंत्रित इच्छाओं, आवेगों और प्रवृत्तियों को साधकर एक संतुलित और सदाचारी जीवन जी सकते हैं. संयम के बिना, हमारी इंद्रियाँ और मन हमें सांसारिक मोह-माया में उलझाए रखते हैं, जिससे आत्म-ज्ञान और आंतरिक शांति की प्राप्ति कठिन हो जाती है.


उत्तम संयम के मुख्य आयाम

उत्तम संयम धर्म को कई स्तरों पर अभ्यास किया जाता है, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं को कवर करते हैं:

  • इंद्रिय संयम: यह पाँचों इंद्रियों – आँख, कान, नाक, जीभ और त्वचा – को उनके विषयों (जैसे रूप, शब्द, गंध, स्वाद और स्पर्श) में अत्यधिक आसक्ति से रोकना है. इसका तात्पर्य इंद्रियों का उपयोग न करना नहीं, बल्कि उनके विषयों में लिप्त न होकर उन पर नियंत्रण रखना है. उदाहरण के लिए, स्वादिष्ट भोजन के प्रति अत्यधिक लालसा न रखना या अनावश्यक रूप से दूसरों की बातों पर ध्यान न देना.
  • मन संयम: मन की चंचलता को नियंत्रित करना और उसे शुभ तथा सकारात्मक विचारों में लगाना मन संयम कहलाता है. इसमें अनावश्यक चिंतन, नकारात्मकता, और मानसिक विकारों जैसे क्रोध, लोभ और मोह पर नियंत्रण रखना शामिल है. एक शांत और एकाग्र मन ही सही निर्णय ले सकता है.
  • वचन संयम: सोच-समझकर बोलना, कम बोलना, सत्य बोलना और दूसरों के प्रति प्रिय तथा हितकारी वचन बोलना वचन संयम का हिस्सा है. कटु वचन, असत्य, निंदा और चुगली से बचना इस धर्म का महत्वपूर्ण पहलू है, क्योंकि वाणी का प्रभाव गहरा होता है.
  • काय संयम (शारीरिक संयम): यह शरीर की गतिविधियों पर नियंत्रण रखने से संबंधित है. इसमें अनावश्यक शारीरिक हलचल से बचना, हिंसा से दूर रहना और तपस्या के माध्यम से शरीर को साधना शामिल है. यह हमें शारीरिक सुखों से ऊपर उठने में मदद करता है.
  • प्राणियों के प्रति संयम (अहिंसा): सभी जीवों के प्रति दया और अहिंसा का भाव रखना संयम का एक मूलभूत सिद्धांत है. इसका अर्थ है किसी भी जीव को – चाहे वह कितना भी छोटा क्यों न हो – मन, वचन या काय से कष्ट न पहुँचाना. यह सार्वभौमिक प्रेम और करुणा का प्रतीक है.

संयम का फल

उत्तम संयम धर्म का पालन करने से व्यक्ति को अपार मानसिक शांति, आंतरिक शक्ति और आत्म-नियंत्रण प्राप्त होता है. यह आत्मा को नए कर्मों के बंधन से बचाता है और पुराने कर्मों को क्षय करने में मदद करता है, जिससे अंततः मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है. संयमी व्यक्ति अपने जीवन में संतुलन स्थापित करता है और समाज में भी एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करता है.

दसलक्षण पर्व के दौरान उत्तम संयम धर्म का अभ्यास हमें एक अनुशासित, संतुलित और आध्यात्मिक जीवन जीने की प्रेरणा देता है, जो हमें सच्चे सुख और आत्म-ज्ञान की ओर ले जाता है.

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